मानवता की सारी हदें पार कर दी: बॉम्बे हाईकोर्ट ने मानसिक रूप से दिव्यांग लड़की से बलात्कार के लिए व्यक्ति की सजा बरकरार रखी

Update: 2024-09-11 06:21 GMT

यह देखते हुए कि उसने मानवता की सारी हदें पार की, नागपुर में बॉम्बे हाईकोर्ट की बेंच ने हाल ही में व्यक्ति की सजा बरकरार रखी, जो डाउन सिंड्रोम से पीड़ित पड़ोस की लड़की से बलात्कार करने और उसे गर्भवती करने के लिए दोषी था।

एकल जज जस्टिस गोविंद सनप ने रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से नोट किया कि उचित संदेह से परे यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत थे कि यह अपीलकर्ता था, जिसने मानसिक दिव्यांगता (90 प्रतिशत) वाली पीड़िता के साथ बलात्कार किया था। जज ने कहा कि आरोपी जो पीड़िता का पड़ोसी है उसने स्थिति का अनुचित लाभ उठाया।

जज ने 19 अगस्त के आदेश में कहा,

"पीड़िता अपना नाम भी नहीं बता पा रही थी। आरोपी द्वारा किया गया अपराध मानवता की सभी सीमाओं को पार कर गया। यह न केवल पीड़िता के खिलाफ बल्कि समाज के खिलाफ भी अपराध था। आरोपी को यह अच्छी तरह पता था कि पीड़िता मानसिक रूप से विक्षिप्त है। फिर भी उसने उसके साथ ऐसा जघन्य अपराध किया। आरोपी द्वारा किया गया अपराध दर्शाता है कि अपनी हवस को शांत करने के लिए उसने पीड़िता की मानसिक स्थिति का फायदा उठाया। यह अपराध निंदनीय है। इस तरह के अपराध से समाज की सामूहिक चेतना को झकझोरना तय है। आरोपी ने मानवता की सभी सीमाओं को पार कर दिया।"

यह टिप्पणियां अपीलकर्ता द्वारा दायर अपील पर विचार करते हुए की गईं, जिसमें विशेष अदालत के 24 दिसंबर 2020 के फैसले को चुनौती दी गई। इसमें उसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (2) (जे) और 376 (2) (एल) के तहत दोषी ठहराया गया।

अभियोजन पक्ष के अनुसार पीड़िता की मां जो मामले में शिकायतकर्ता है उसने नवंबर 2016 में शिकायत दर्ज कराई कि उसकी दिव्यांग बेटी को अगस्त से लगातार चार महीने तक मासिक धर्म नहीं आया। इसके बाद वह पीड़िता को सरकारी अस्पताल ले गई जहां यूरिन टेस्ट से पता चला कि वह लगभग 16 सप्ताह की गर्भवती है। डॉक्टरों ने मां को एफआईआर दर्ज कराने का सुझाव दिया। बाद में चंद्रपुर के मूल पुलिस स्टेशन में एक एफआईआर दर्ज कराई गई।

मां ने अपनी शिकायत में अपीलकर्ता सहित कम से कम तीन लोगों का नाम लिया, जिनके बारे में उसने कहा कि वे अक्सर उसकी अनुपस्थिति में भी उसके घर आते थे, क्योंकि वह सुबह से शाम तक काम पर जाती थी।

इस बीच डॉक्टरों ने पीड़िता पर टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी की प्रक्रिया की और भ्रूण को DNA टेस्ट के लिए सुरक्षित रखा गया। बाद में तीनों संदिग्धों के ब्लड के सैंपल DNA टेस्ट के लिए भेजे गए, जिनकी रिपोर्ट 4 फरवरी, 2017 को प्राप्त हुई। DNA टेस्ट ने अपीलकर्ता को भ्रूण का बॉयोलॉजिकल पिता होने की पुष्टि की और साथ ही पीड़िता को भ्रूण की बॉयोलॉजिकल मां पाया गया।

DNA रिपोर्ट के आधार पर अपीलकर्ता को गिरफ्तार किया गया और यहां तक ​​कि ट्रायल कोर्ट ने भी अपीलकर्ता को दोषी ठहराने के लिए उसी पर भरोसा किया।

जस्टिस सनप ने भी साक्ष्य की सराहना करते हुए DNA रिपोर्ट के लिए सैंपल प्राप्त करने परीक्षण आदि की प्रक्रिया का पालन करने में कोई कमी नहीं पाई।

जस्टिस सनप ने कहा,

"मुझे ट्रायल कोर्ट के सुविचारित निर्णय और आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता। तदनुसार अपील खारिज किए जाने योग्य है, इसे खारिज किया जाता है।"

केस टाइटल- दिलखुश श्रीगिरिवार बनाम महाराष्ट्र राज्य

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