आम नागरिक निजी कार पर इस्तेमाल के लिए MLA स्टिकर कैसे प्राप्त कर पाया? हाईकोर्ट ने मुंबई पुलिस से जांच करने को कहा

Update: 2024-08-10 06:30 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को मुंबई पुलिस को निर्देश दिया कि वह जांच करे कि एक स्थानीय निवासी ने महाराष्ट्र में विधान सभा के सदस्यों (विधायकों) के लिए बने अधिकृत स्टिकर को अपनी निजी कार के लिए कैसे प्राप्त किया।

जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस डॉ नीला गोखले की खंडपीठ ने मुंबई पुलिस के जोन VI के पुलिस उपायुक्त (DCP) को उपनगरीय मुंबई के तिलक नगर निवासी चंद्रकांत गांधी के निजी वाहन पर मिले स्टिकर के स्रोत का पता लगाने का आदेश दिया।

जस्टिस गडकरी ने सवाल किया,

"DCP साहब, हमारी मुख्य चिंता यह है कि वे स्टिकर असली थे या नहीं। अब तक की जांच से हमें पता चला है कि इस पहलू की अभी तक जांच नहीं हुई। अगर स्टिकर असली थे तो उन्हें विधानसभा सचिवालय द्वारा जारी किया गया होगा। आपको उन स्टिकर के स्रोत का पता लगाना चाहिए? वे स्टिकर केवल मौजूदा या पूर्व विधायकों को जारी किए जाते हैं और अभियोजन पक्ष का कहना है कि आरोपी के परिवार में कोई भी विधायक नहीं है। तो उन्हें ऐसे स्टिकर कहां से मिले?"

जजों ने आगे बताया कि इन स्टिकरों का अनधिकृत उपयोग जिसमें राज्य विधानसभा का लोगो और राष्ट्रीय प्रतीक भी शामिल है। एक बहुत बड़ा मुद्दा बन सकता है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति इन स्टिकरों का उपयोग वाहनों पर कर सकता है अपराध कर सकता है या किसी कार्रवाई से बच सकता है आदि।

जस्टिस गडकरी ने DCP से कहा,

"मुद्दा यह है कि ऐसे स्टिकरों का दुरुपयोग रोका जाना चाहिए।"

उन्होंने आगे उदाहरण देते हुए कहा,

"आप नीचे जाकर देखें, इस न्यायालय के गेट से लेकर सीएसएमटी रेलवे स्टेशन तक आपको सैकड़ों मोटरसाइकिलें मिलेंगी, जिन पर महाराष्ट्र पुलिस या मुंबई पुलिस का स्टिकर लगा होगा। दुर्भाग्य से उन बाइकों पर सवार एक भी व्यक्ति, यहां तक ​​कि कांस्टेबल भी नहीं होगा। यह ऐसे स्टिकरों के दुरुपयोग की पराकाष्ठा है। आपको इन चीजों पर कार्रवाई करने की आवश्यकता है।"

खंडपीठ ने आगे इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि यदि स्टिकर फर्जी हुए तो क्या होगा?

खंडपीठ ने कहा,

"यदि ऐसा है तो कोई भी व्यक्ति इसे कहीं से भी आसानी से प्राप्त कर सकता है। फिर इसे अपने वाहनों पर लगा सकता है और कार्रवाई से बच सकता है या यहां तक ​​कि अपराध भी कर सकता है, इसलिए फर्जी स्टिकरों के इस पहलू की भी गहन जांच की जानी चाहिए।"

यह आदान-प्रदान गांधी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान हुआ, जिसमें उन्होंने प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम 1950 और मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 177 के प्रावधानों के तहत उनके खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर रद्द करने की मांग की, जिसे 10 मई, 2024 को एक पड़ोसी ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज किया।

पड़ोसी ने स्थानीय पुलिस को दी गई अपनी शिकायत में बताया कि उसने आरोपी की कार पर विधायकों के लिए बने स्टिकर को देखा और उसे यह अनुचित लगा, क्योंकि आरोपी के परिवार में कोई भी विधायक नहीं है। इसलिए उसने आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई, क्योंकि वे अपनी कार पर अधिकृत स्टिकर लगाकर अपने निजी इस्तेमाल के लिए वाहन का इस्तेमाल कर रहे थे।

हालांकि, पड़ोसी और आरोपी ने बाद में अदालत के बाहर मामले को सुलझा लिया। वह आरोपियों के खिलाफ मामला रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में कोई आपत्ति नहीं करने पर सहमत हो गया।

अपने बचाव में अभियुक्त ने बताया कि प्रतीक और नाम अधिनियम केवल वाणिज्यिक या व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए प्रतीक के उपयोग की अनुमति नहीं देता है।

न्यायाधीशों ने जवाब दिया,

"लेकिन इसका उपयोग निश्चित रूप से अपराध करने के लिए नहीं किया जा सकता? साथ ही हमें वह प्रावधान दिखाएं जो आपको एक नागरिक के रूप में अपनी निजी कार पर प्रतीक के साथ स्टिकर का उपयोग करने की अनुमति देता है।”

खंडपीठ ने कहा कि वह मामला तब तक रद्द नहीं करेगी, जब तक कि उसे मुंबई पुलिस से उन मुद्दों पर रिपोर्ट नहीं मिल जाती, जिन्हें उसने तत्काल सुनवाई में उजागर किया।

इसके साथ ही मामले को दो सप्ताह बाद के लिए टाल दिया।

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