दुर्भाग्यपूर्ण है कि शैक्षणिक संस्थान के कर्मचारियों द्वारा उपद्रवी और अव्यवस्थित व्यवहार स्वीकृत मानदंड बन गया: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2024-08-27 09:26 GMT

Bombay High Court 

बॉम्बे हाईकोर्ट ने परिसर के भीतर दुर्व्यवहार के लिए कॉलेज लाइब्रेरी अटेंडेंट की सजा बरकरार रखते हुए कहा कि आजकल स्कूलों और कॉलेजों में कर्मचारियों का अव्यवस्थित उपद्रवी व्यवहार स्वीकृत मानदंड बन गया, जिससे संस्थानों की बदनामी ही हुई है।

एकल जज जस्टिस आरएम जोशी ने मुंबई यूनिवर्सिटी और कॉलेज न्यायाधिकरण (MUCT) के 23 सितंबर 2008 का फैसला बरकरार रखते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को सेवा से बर्खास्त करने की न्यायाधिकरण द्वारा बरकरार रखी गई सजा उसके 'साबित' कदाचार के आनुपातिक थी।

न्यायाधीश ने 13 अगस्त को अपने आदेश में कहा,

"इसमें कोई संदेह नहीं है कि फैक्ट्री और शैक्षणिक संस्थान में अंतर करना होगा और अनुशासन बनाए रखने के लिए अलग-अलग मानदंड लागू करने होंगे। शैक्षणिक संस्थान ऐसी जगह है, जहां स्टूडेंट्स के लिए उदाहरण स्थापित करने के लिए उच्च स्तर के अनुशासन की अपेक्षा की जाती है। इसी तरह किसी भी शैक्षणिक संस्थान की प्रतिष्ठा बनाने और उसे बनाए रखने के लिए ऐसा अनुशासन बिल्कुल जरूरी है।"

इस मामले में जज ने पाया कि याचिकाकर्ता कॉलेज का कर्मचारी है। इसलिए उसने कहा कि किसी भी तरह का अव्यवस्थित व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

एकल जज ने इस बात पर प्रकाश डाला,

"किसी भी प्रतिष्ठान में किसी भी कर्मचारी से कोई अव्यवस्थित व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है और किसी भी परिस्थिति में किसी भी शैक्षणिक संस्थान में नहीं। दुर्भाग्य से आजकल अव्यवस्थित उपद्रवी व्यवहार को बढ़ावा मिल रहा है। समाज में यह स्पष्ट संदेश देने का समय आ गया है कि इस तरह के असभ्य, अनियंत्रित, हिंसक व्यवहार को स्वीकार्य मानदंड बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अगर इसे स्वीकार करने की अनुमति दी जाती है तो इससे न केवल कर्मचारियों को इस तरह से व्यवहार करने की अनुमति मिल जाएगी बल्कि इससे शैक्षणिक संस्थानों की छवि को भी नुकसान पहुंचेगा, जिसके गंभीर परिणाम होंगे। इसके अलावा सजा में हस्तक्षेप करने के लिए यह न केवल आरोप के अनुपात में असंगत होना चाहिए बल्कि चौंकाने वाला अनुपातहीन होना चाहिए, जो इस मामले में नहीं है।”

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता के अनुसार 19 अक्टूबर, 1996 को उन्हें मुंबई के चेंबूर में श्री नारायण गुरु कॉलेज में चौकीदार के रूप में नियुक्त किया गया। दो वर्ष की परिवीक्षा अवधि पूरी होने के बाद उनकी सेवाओं की पुष्टि की गई और तत्पश्चात कॉलेज ने 13 जून 2003 को आदेश जारी किया। याचिकाकर्ता को अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित पद पर लाइब्रेरी अटेंडेंट के रूप में नियुक्त किया।

हालांकि लाइब्रेरी अटेंडेंट के रूप में शामिल होने के तुरंत बाद याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर सहकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार किया प्रोफेसरों को गाली दी। अपने अधिकांश सहकर्मियों के साथ झगड़ा किया। एक बार कॉलेज में रक्तदान शिविर में बाधा डाली और यहां तक ​​कि प्रोफेसर को कक्षा में व्याख्यान देने से भी रोक दिया।

पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड में पर्याप्त सामग्री है, जो याचिकाकर्ता के कदाचार को साबित करती है।

एकल न्यायाधीश ने कहा,

"यदि कारखाने में काम करने वाले कर्मचारी के आचरण को भी इस तरह से स्वीकार नहीं किया जाता है तो याचिकाकर्ता शैक्षणिक संस्थान के कर्मचारी के आचरण के संबंध में कोई नरम रुख अपनाने का सवाल ही नहीं उठता। इसलिए यह न्यायालय ट्रिब्यूनल द्वारा याचिकाकर्ता पर लगाए गए दंड के बारे में लिए गए दृष्टिकोण से सहमत है, जो साबित कदाचार के लिए चौंकाने वाला अनुपातहीन नहीं है।”

केस टाइटल- मल्लिनाथ विट्ठल वाथाकर बनाम रजिस्ट्रार, मुंबई यूनिवर्सिटी

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