केवल PFI सेमिनारों में भाग लेना और फिजिकल ट्रेनिंग लेना UAPA के तहत आतंकवादी कृत्य नहीं माना जाएगा: बॉम्बे हाईकोर्ट
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) द्वारा आयोजित सेमिनारों में भाग लेने और कराटे आदि जैसी फिजिकल ट्रेनिंग में भाग लेने मात्र से कठोर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के प्रावधान लागू नहीं होंगे, जो आतंकवादी कृत्य के लिए दंडनीय है, यह फैसला बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने हाल ही में PFI के सक्रिय सदस्य होने के आरोप में गिरफ्तार तीन लोगों को जमानत देते हुए दिया।
जस्टिस नितिन सूर्यवंशी और जस्टिस संदीपकुमार मोरे की खंडपीठ ने कहा कि आतंकवाद निरोधी दस्ते (ATS) ने 21 सितंबर, 2022 को सैय्यद फैसल सैय्यद खलील, अब्दुल हादी अब्दुल रऊफ मोमिन और शेख इरफान शेख सलीम उर्फ इरफान मिल्ली के खिलाफ एक गुप्त सूचना के आधार पर FIR दर्ज की थी कि 21 नवंबर, 2021 और जुलाई 2022 में मुस्लिम युवाओं के लिए कुछ सेमिनार और शारीरिक एवं हथियार प्रशिक्षण आयोजित किए गए थे।
इन आयोजनों में अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि 'घृणास्पद भाषण' दिए गए और यहां तक कि ऐसे भाषण भी दिए गए जिनमें यह प्रचार किया गया कि भारत में मुसलमानों की मॉब लिंचिंग की जा रही है और केंद्र सरकार विभिन्न राज्यों में हिंदू संगठनों के माध्यम से मुसलमानों पर हमला कर रही है। यह भी बताया गया कि वक्ताओं ने मुसलमानों से PFI में शामिल होने का आग्रह किया, क्योंकि आने वाला समय समुदाय के लिए कठिन होगा।
इसके अलावा, यह आरोप लगाया गया कि वक्ताओं ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), NRC, हिजाब प्रतिबंध, तीन तलाक आदि के खिलाफ भी आलोचनात्मक भाषण दिए।
जजों ने कहा कि भारत सरकार ने 28 सितंबर, 2022 को आधिकारिक राजपत्र जारी करके PFI पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया, जबकि वर्तमान FIR 21 सितंबर, 2022 (प्रतिबंध से एक सप्ताह पहले) को दर्ज की गई थी और अपीलकर्ताओं को 22 सितंबर, 2022 को गिरफ्तार किया गया था।
खंडपीठ ने 7 जुलाई को पारित अपने आदेश में कहा,
"वर्तमान मामले में भी जब FIR दर्ज की गई और अपीलकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया, तब UAPA की धारा 2(एम) के अंतर्गत PFI को आतंकवादी संगठन घोषित नहीं किया गया। इसी प्रकार, UAPA की पहली अनुसूची में भी PFI का उल्लेख नहीं था। केवल इसलिए कि अपीलकर्ताओं ने बैठकों, सेमिनारों या कराटे आदि के फिजिकल ट्रेनिंग में भाग लिया था, प्रथम दृष्टया यह नहीं कहा जा सकता कि वे किसी आतंकवादी कृत्य में शामिल थे।"
खंडपीठ ने कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA), इस मामले की जांच कर रही बेंच ने तलवारें, रामपुरी चाकू, नफ़रत भरे भाषणों के वीडियो, मॉब लिंचिंग, बाबरी मस्जिद आदि जैसे हथियारों की बरामदगी पर काफ़ी भरोसा किया था।
खंडपीठ ने कहा,
"अपीलकर्ता इरफ़ान मिल्ली के पास से तलवार, रामपुरी चाकू, लड़ाकू हथियार जैसे हथियार बरामद किए गए। साथ ही न्यायिक व्यवस्था और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के ख़िलाफ़ भी शिकायत दर्ज की गई। किसी भी प्रत्यक्ष उल्लंघन और आतंकवादी गतिविधियों के आरोपों के अभाव में केवल सेमिनारों/शिविरों में भाग लेना, प्रथम दृष्टया, आतंकवादी कृत्य नहीं माना जाएगा। हालांकि, अपीलकर्ता इरफ़ान मिल्ली के पास से हथियार बरामद किए गए, लेकिन अभियोजन पक्ष का यह दावा नहीं है कि उनका इस्तेमाल किसी आतंकवादी गतिविधि और/या सरकार गिराने के लिए किया गया था।"
खंडपीठ ने आगे कहा कि चूंकि मुक़दमा चल रहा है, इसलिए वह अपीलकर्ताओं पर लगाए गए आरोपों के गुण-दोष पर टिप्पणी करने से परहेज़ करेगी।
जजों ने कहा,
"यह कहना पर्याप्त है कि हमारे संज्ञान में ऐसी कोई सामग्री नहीं लाई गई, जिससे पता चले कि अपीलकर्ताओं की किसी भी आतंकवादी गतिविधि में संलिप्तता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अभियोजन पक्ष ने कुल 145 गवाहों का हवाला दिया और हालांकि मुकदमा दिन-प्रतिदिन चल रहा है, अब तक केवल पांच गवाहों की ही जांच हुई और अभियुक्त दो साल आठ महीने से ज़्यादा समय से जेल में हैं, इसलिए निकट भविष्य में मुकदमे के पूरा होने की कोई संभावना नहीं दिखती।"
इन टिप्पणियों के साथ जजों ने तीनों अभियुक्तों को ज़मानत दे दी।
Case Title: Sayyad Faisal Sayyad Khaleel vs State of Maharashtra (Criminal Appeal 358 of 2025)