नागरिकों का सार्वजनिक कार्यालयों में जाने का पूर्ण अधिकार नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट ने पूर्व कर्मचारी पर WCL परिसर में प्रतिबंध को सही ठहराया

Update: 2025-10-08 08:02 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि कोई भी नागरिक शिकायत दर्ज करने के नाम पर सार्वजनिक कार्यालयों में जाने का पूर्ण अधिकार नहीं जता सकता।

नागपुर पीठ में कार्यरत जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिस रजनीश व्यास की खंडपीठ ने वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (WCL) का फैसला बरकरार रखा, जिसमें पूर्व कर्मचारी किशोर चाकोले को "पर्सोना नॉन ग्राटा" (Persona Non Grata - अवांछित व्यक्ति) घोषित करते हुए उसके WCL परिसर में प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी।

कोर्ट ने गौर किया कि चाकोले जिसे 2004 में नौकरी से हटा दिया गया और अब जो खुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताता है, वह कुछ अन्य कर्मचारियों के इशारे पर WCL के विभिन्न अधिकारियों के खिलाफ़ लगातार तुच्छ और बार-बार शिकायतें दर्ज कर रहा था।

चाकोले ने जहां पीड़ित कर्मचारियों की मदद करने का दावा किया। वहीं WCL ने अपने 10 अक्टूबर 2024 के आदेश में बताया कि उसकी अधिकांश शिकायतें निराधार थीं।

जजों ने टिप्पणी की,

"निस्संदेह याचिकाकर्ता को अवैधता बताते हुए शिकायत दर्ज करने का अधिकार है। साथ ही यह नहीं भूला जा सकता कि तुच्छ और बार-बार शिकायतें दर्ज करने से सार्वजनिक अधिकारियों पर काम का बोझ बढ़ता है। याचिकाकर्ता यह दावा नहीं कर सकता कि उसके पास प्रतिवादी के कार्यालयों में जाने का पूर्ण अधिकार है। याचिकाकर्ता ऑनलाइन, डाक के माध्यम से शिकायतें दर्ज कर सकता है और प्रौद्योगिकी की मदद से जानकारी भी मांग सकता है।"

जजों ने अपने 6 अक्टूबर के आदेश में कहा कि एक नागरिक के भारत के क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूमने के अधिकार को उचित प्रतिबंधों के कोण से भी देखा जाना चाहिए, जिन्हें संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त है।

कोर्ट ने कहा,

"याचिकाकर्ता को सार्वजनिक कार्यालयों में जाने की खुली छूट नहीं दी जा सकती, जिससे निश्चित रूप से लोक प्रशासन प्रभावित होगा। यहां तक कि भारतीय संविधान के भाग III के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार भी पूर्ण नहीं हैं और उचित प्रतिबंधों के अधीन हैं।"

खंडपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता सामाजिक कार्यकर्ता होने का दावा करते हुए WCL के विभिन्न कार्यालयों में जाता है और काम के घंटों के दौरान अनाधिकृत रूप से अधिकारियों से मिलता है, जिससे वह आगंतुक प्रवेश प्रोटोकॉल का उल्लंघन करता पाया गया। यह आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता अधिकारियों और प्रबंधन को परेशान करने और ब्लैकमेल करने के इरादे से दुर्भावनापूर्ण पत्र लिख रहा है और उन पर झूठे आरोप लगा रहा है।

जजों ने इस तथ्य पर भी विचार किया कि चाकोले पर 2013 में भी इसी तरह का प्रतिबंध लगाया गया, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। तब कोर्ट ने आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया। हालांकि, उसे किसी सहायता की आवश्यकता होने पर उपयुक्त मंच पर जाने की स्वतंत्रता दी। यह प्रतिबंध WCL द्वारा कुछ शर्तों के साथ हटा दिया गया था जिनका चाकोले ने उल्लंघन किया।

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला,

"लगाई गई शर्तों के उल्लंघन पर प्रतिवादियों द्वारा याचिकाकर्ता को फिर से 'पर्सोना नॉन ग्राटा' घोषित किया गया। हालांकि, उसके व्यवहार में बदलाव नहीं आया। यह तथ्य स्पष्ट रूप से दिखाता है कि याचिकाकर्ता का आचरण और कार्यालय जाने का इरादा सद्भावपूर्ण नहीं है। उसका प्रवेश कार्यालय के सुचारू कामकाज में बाधा डालने के उद्देश्य से है।"

इन टिप्पणियों के साथ जजों ने याचिका खारिज कर दी।

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