टिकट स्कैलपिंग की प्रथाओं के खिलाफ पुलिस अधिकारियों से संपर्क कर सकते हैं: कॉन्सर्ट टिकटों की कालाबाजारी के खिलाफ जनहित याचिका में बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2025-01-02 09:35 GMT

कॉन्सर्ट और अन्य कार्यक्रमों के लिए ऑनलाइन टिकटों की कालाबाजारी के खिलाफ दिशा-निर्देश मांगने वाली जनहित याचिका में आदेश सुरक्षित रखते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि याचिका कुछ ऐसा करने की मांग कर रही है, जो कार्यपालिका का अधिकार है।

कोर्ट ने मौखिक रूप से टिप्पणी की,

"आप एक तरह से हमसे राज्य को निर्देश जारी करने के लिए कह रहे हैं, एक ऐसी व्यवस्था विकसित करने के लिए जहां ये चीजें न हों। यह राज्य के नीति निर्माण का मूल कार्य है।"

कोर्ट ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि अन्य उपाय भी उपलब्ध हैं। इसने नोट किया कि याचिकाकर्ता घोटाले या टिकटों की कालाबाजारी के मामले में FIR दर्ज कर सकता है। अगर पुलिस FIR दर्ज नहीं करती है तो शिकायतकर्ता मजिस्ट्रेट से संपर्क कर सकता है।

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि उपभोक्ता शिकायतों के मामले में याचिकाकर्ता के पास उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उपाय है।

चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस अमित बोरकर की खंडपीठ ऑनलाइन टिकटों की कालाबाजारी, टिकट दलाली और टिकट स्कैल्पिंग की प्रथाओं को रोकने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए याचिकाकर्ता के मामले की सुनवाई कर रही थी।

याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि चूंकि टिकट स्कैल्पिंग और कालाबाजारी के संबंध में कोई कानून नहीं है, इसलिए टिकट स्कैल्पर इसका फायदा उठा रहे हैं। याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की कि साइबर विशेषज्ञों की मदद से एक समिति गठित की जाए, जो कुछ दिशा-निर्देश सुझाए, क्योंकि कानून में शून्यता है।

वकील ने दलील दी कि चूंकि राज्य और केंद्र सार्वजनिक मनोरंजन के आयोजनों पर लगाए गए शुल्क को साझा करते हैं। इसलिए उपभोक्ता संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मनोरंजन का आनंद लेने के हकदार हैं। वकील ने कहा कि टिकट स्कैल्पर बॉट्स के माध्यम से काम करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप सभी टिकट सेकंड में बुक हो जाते हैं और जनता प्राथमिक वेबसाइट पर टिकट तक पहुंचने में असमर्थ होती है।

उन्होंने कहा कि इसके बाद टिकट बहुत अधिक कीमत पर ब्लैक मार्केट में बिक जाते हैं। इसके अलावा वकील ने कहा कि चूंकि स्टेडियम में सार्वजनिक मनोरंजन के लिए संगीत कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, इसलिए टिकटों की बिक्री पर 28% मनोरंजन कर लगाया जाता है।

वकील ने तर्क दिया कि जब राज्य कर लगा रहा है तो यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य बन जाता है कि इस तरह के मनोरंजन के लिए बेचे जा रहे टिकट काले बाजार में न बेचे जाएं। उन्होंने तर्क दिया कि यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है कि टिकट बेचने वालों द्वारा जनता को धोखा न दिया जाए।

चीफ जस्टिस ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि कर लगाना क्विड प्रो क्वो नहीं है और यह कोई शुल्क नहीं है, जहां उपभोक्ता कुछ अपेक्षा करते हैं।

न्यायालय ने दोहराया कि याचिकाकर्ता ऐसी प्रथाओं के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए पुलिस अधिकारियों से संपर्क कर सकता है।

वकील ने जवाब दिया कि आर्थिक अपराध शाखा (EOW) के समक्ष शिकायत है। हालांकि उन्होंने कहा कि असहयोग के कारण शिकायत को रोक दिया गया।

इस पर चीफ जस्टिस ने मौखिक रूप से कहा,

“राज्य की आपराधिक एजेंसियां ​​इतनी कमजोर नहीं हैं कि अगर कोई तीसरा पक्ष जांच में सहयोग नहीं कर रहा है तो वे उसे सहयोग करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते।”

इन टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने मामले को आदेश के लिए सुरक्षित रख लिया।

केस टाइटल: अमित व्यास बनाम भारत संघ

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