बॉम्बे हाईकोर्ट ने ICICI बैंक धोखाधड़ी मामले में चंदा कोचर और उनके पति की CBI गिरफ्तारी अवैध घोषित की
बॉम्बे हाईकोर्ट ने ICICI बैंक वीडियोकॉन लोन धोखाधड़ी मामले में ICICI बैंक की पूर्व CEO और MD चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर की गिरफ्तारी अवैध घोषित की और पिछले साल उनकी रिहाई पर अंतरिम आदेश की पुष्टि की।
जस्टिस अनुजा पाभुदेसाई ने उक्त आदेश पारित किया।
दोनों को जनवरी, 2023 में अंतरिम आदेश द्वारा रिहा कर दिया गया, जब समन्वय पीठ ने उनकी गिरफ्तारी को प्रथम दृष्टया सीआरपीसी की धारा 41a और धारा 41(1)(b)(ii) के अनुरूप नहीं माना।
पीठ ने दिसंबर, 2023 में गिरफ्तारी ज्ञापन में गिरफ्तारी के लिए सीबीआई (CBI) द्वारा बताए गए कारणों को खारिज कर दिया, जिसमें असहयोग और मामले में सही तथ्यों का खुलासा न करना शामिल था। अदालत ने यह भी देखा कि न्यायाधीश उनकी हिरासत CBI को देते समय अपनी संतुष्टि को ठीक से दर्ज करने में विफल रहे।
यह माना गया,
"केवल इसलिए कि आरोपी कबूल नहीं करता है, यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी ने जांच में सहयोग नहीं किया।"
पीठ ने कहा,
"अनुच्छेद 20(3) आपराधिक मामलों में आवश्यक सुरक्षा है। इसका मतलब जांच एजेंसियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली यातना और अन्य जबरदस्ती के तरीकों के खिलाफ महत्वपूर्ण सुरक्षा है। केवल इसलिए कि आरोपी कुछ कबूल नहीं करता, यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी ने जांच में सहयोग नहीं किया।”
जमानत देने के इस अंतरिम आदेश के खिलाफ CBI ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने CBI को इस मामले पर हाइकोर्ट के समक्ष बहस करने का निर्देश दिया, जिससे वर्तमान दौर की बहस शुरू हो सके।
दोनों ने दो अलग-अलग याचिकाओं में हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और 2009-2012 के बीच ICICI बैंक द्वारा वेणुगोपाल धूत के वीडियोकॉन समूह को दिए गए लोन में अनियमितताओं के मामले में CBI द्वारा एफआईआर और रिमांड आदेश रद्द करने की मांग की। साथ ही उन्होंने रिहाई की अंतरिम राहत मांगी।
उन पर आईपीसी की धारा 120बी और 420 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act ) की धारा 7, 13(2) R/W 13(1)(D) के तहत मामला दर्ज किया गया।
उन्होंने एफआईआर रद्द करने की मांग वाली प्रार्थना छोड़ दी, क्योंकि सीबीआई पहले ही मामले में आरोपपत्र दायर कर चुकी है।
उनकी याचिका में गिरफ्तारी के समय पर सवाल उठाया गया, क्योंकि उनके बेटे की शादी जनवरी में ही तय थी। कोचर के इकलौते बेटे की शादी 15 जनवरी, 2023 को होने वाली थी और समारोह जल्द ही शुरू होने वाले थे। याचिका में कहा गया कि इससे यह विश्वास पैदा होता है कि स्थापित कानून के बावजूद एफआईआर के 4 साल बाद उसके बेटे की शादी की पूर्व संध्या पर गिरफ्तार किया जाना दुर्भावना से प्रेरित था।
केस
CBI ने जनवरी, 2018 में दंपति की जांच शुरू की, जब रिपोर्ट आई कि वीडियोकॉन के धूत ने कथित तौर पर दीपक और दो रिश्तेदारों के साथ मिलकर स्थापित की गई कंपनी को भुगतान किया, जिसके छह महीने बाद उनकी कंपनी को 2012 में ICICI बैंक से 3,250 करोड़ रुपये का लोन मिला।
ये अनियमितताएं जून, 2009 और अक्टूबर, 2011 के बीच वीडियोकॉन ग्रुप्स की पांच कंपनियों को लगभग 1,575 करोड़ रुपये के छह उच्च-मूल्य वाले लोन देने के संबंध में थीं।
एजेंसी ने आरोप लगाया,
"मंजूरी समिति के नियमों और नीति के उल्लंघन में लोन दिए गए।"
CBI ने कहा कि बाद में इन लोन को गैर-निष्पादित संपत्ति करार दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप ICICI बैंक को नुकसान हुआ और उधारकर्ताओं और आरोपी व्यक्तियों को गलत लाभ हुआ। 26 अप्रैल, 2012 तक कुल हेराफेरी 1,730 करोड़ रुपये की है।
याचिका के अनुसार, 2019 में एफआईआर दर्ज होने के बाद दीपक कोचर को आठ बार तलब किया गया और लगभग 2500 पेज के सबूत सौंपे गए। चंदा कोचर ने कहा कि उन्हें इस साल की शुरुआत में पहली बार तलब किया गया और दूसरी बार बुलाए जाने के तुरंत बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
बहस
चंदा कोचर के लिए सीनियर वकील अमित देसाई ने कहा कि उन्हें जुलाई 2022 तक तलब नहीं किया गया। हालांकि, एक बार बुलाए जाने के बाद वह पेश हुईं। जब उन्हें दूसरी बार 15 दिसंबर, 2022 को समन जारी किया गया तो वह 23 दिसंबर, 2022 को पेश हुईं और औपचारिक पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
सीआरपीसी की धारा 41ए में प्रावधान है कि कुछ प्रकार के अपराधों में पुलिस अधिकारी के समक्ष उपस्थिति का नोटिस देना आवश्यक है।
वकील देसाई ने कहा,
"कानून कहता है कि नोटिस का अनुपालन करने वाले व्यक्ति को तब तक गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि अधिकारी कारण दर्ज न कर दे।"
देसाई ने तर्क दिया कि कोचर को नहीं पता था कि उनके पति के व्यवसाय के साथ क्या हो रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए मामले में बॉम्बे हाइकोर्ट के जमानत आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार किया।
देसाई ने आगे कहा कि कोचर को गिरफ्तार करने वाला अधिकारी पुरुष अधिकारी है और गिरफ्तारी मेमो में किसी महिला अधिकारी की मौजूदगी नहीं दिखती। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (prevention of Corruption Act) की धारा 17ए के तहत एफआईआर दर्ज करने से पहले कोई मंजूरी नहीं ली गई।
वकील कुलदीप पाटिल सीबीआई की ओर से पेश हुए।
उन्होंने तर्क दिया कि कोचर को पहले ट्रायल कोर्ट के समक्ष आवेदन करना चाहिए था।
उन्होंने तर्क दिया कि गिरफ्तारी उचित जांच के लिए थी, क्योंकि कोचर जांच अधिकारी के सवालों का गोलमोल जवाब देती रहीं।
उन्होंने कहा,
"जब लोगों का सामना किया जाता है, तभी सच्चाई सामने आती है।"
अपियरेंस
चंदा कोचर की ओर से वकील- अमित देसाई, रोहन दक्षिणी और पूजा कोठारी।
CBI के वकील - कुलदीप पाटिल