एजेंसी ने सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले में फैसला स्वीकार किया: CBI ने बॉम्बे हाईकोर्ट में बताया
केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट को बताया कि उसने 13 दिसंबर, 2018 को स्पेशल कोर्ट का फैसला "स्वीकार" कर लिया है, जिसमें सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और सहयोगी तुलसीराम प्रजापति के कथित "फर्जी" मुठभेड़ मामले में 22 पुलिसकर्मियों को बरी कर दिया गया।
चीफ जस्टिस श्री चंद्रशेखर और जस्टिस गौतम अंखड़ की खंडपीठ से पूछे जाने पर बताया गया कि एजेंसी ने अभी तक उक्त फैसले को चुनौती देने का कोई फैसला नहीं लिया।
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) अनिल सिंह ने जजों को बताया कि केंद्रीय एजेंसी ने फैसला स्वीकार कर लिया।
एएसजी ने कहा,
"CBI ने 2018 के फैसले को स्वीकार कर लिया। जहां तक इसे चुनौती देने का सवाल है, इस पर अभी फैसला लिया जाना बाकी है।"
खंडपीठ सोहराबुद्दीन के भाइयों रुबाबुद्दीन और नयाबुद्दीन द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। दोनों भाइयों ने स्पेशल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए उसमें कई खामियां बताई थीं।
खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई 15 अक्टूबर के लिए निर्धारित करते हुए दोनों भाइयों को उन गवाहों की पहचान करने वाला चार्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, जिनके बयान उनके दावे के अनुसार सही ढंग से दर्ज नहीं किए गए।
यह "राजनीतिक रूप से संवेदनशील" मामला तब सुर्खियों में आया, जब अभियोजन पक्ष के गवाह 2018 में लगातार अपने बयानों से पलटते रहे। कुल 210 गवाहों में से 92 गवाह अपने बयानों से पलट गए।
सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी को नवंबर, 2005 में एक कथित फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया। यह मुठभेड़ गुजरात और राजस्थान के पुलिस अधिकारियों द्वारा दोनों राज्यों के सीनियर IPS अधिकारियों के इशारे पर कथित तौर पर अपहरण के बाद हुई थी। उसके सहयोगी प्रजापति की एक साल बाद हत्या कर दी गई थी।
CBI ने तीनों हत्याओं की जांच करते हुए गुजरात और राजस्थान पुलिस के कई शीर्ष अधिकारियों के साथ-साथ इन राज्यों के पुलिस अधिकारियों को भी गिरफ्तार किया। केंद्रीय एजेंसी ने इस मामले में भारतीय जनता पार्टी (BJP) नेता और वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह को भी गिरफ्तार किया था। अमित शाह को दिसंबर, 2014 में इस मामले से बरी कर दिया गया था।
इस मामले का इतिहास उतार-चढ़ाव भरा रहा है। शाह सहित कुल 38 आरोपियों में से 16 से ज़्यादा को बरी कर दिया गया था।
मुकदमे का सामना करने वाले केवल 22 आरोपी गुजरात और राजस्थान पुलिस के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक और कांस्टेबल थे।
यह मामला कई विवादों से घिरा रहा, जिसमें गवाह नियमित रूप से अपने बयानों से मुकरते रहे और कई गवाहों ने अदालत में गवाही देने से पहले पुलिस सुरक्षा की मांग की।
तुलसीराम प्रजापति की माँ और सोहराबुद्दीन के भाई सहित कुछ गवाहों ने भी अदालत में गवाही देने से इनकार किया और दावा किया कि उन्हें अदालत और अभियोजन पक्ष पर "कोई भरोसा नहीं" है, क्योंकि कई आरोपियों को मामले से बरी कर दिया गया।