नियोक्ताओं को प्रसव के दौरान महिलाओं के सामने आने वाली कठिनाइयों का एहसास होना चाहिए: बॉम्बे हाईकोर्ट ने AAI को तीसरे बच्चे के जन्म के लिए मैटरनिटी लाभ देने का निर्देश दिया
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि नियोक्ताओं को गर्भावस्था के दौरान और अपने बच्चों की देखभाल करते समय कामकाजी महिलाओं के सामने आने वाली शारीरिक चुनौतियों को समझना चाहिए और उन्हें वे सभी लाभ प्रदान करने चाहिए, जिनकी वे हकदार हैं।
अदालत ने कहा,
“उनके कर्तव्यों उनके व्यवसाय और उनके कार्यस्थल की प्रकृति चाहे जो भी हो, उन्हें वे सभी सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए, जिनकी वे हकदार हैं। माँ बनना एक महिला के जीवन में सबसे स्वाभाविक घटना है। सेवारत महिला के लिए बच्चे के जन्म को सुविधाजनक बनाने के लिए जो कुछ भी आवश्यक है। नियोक्ता को उसके प्रति विचारशील और सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए और उन शारीरिक कठिनाइयों को समझना चाहिए, जिनका सामना कामकाजी महिला को गर्भ में बच्चे को ले जाने या जन्म के बाद बच्चे के पालन-पोषण के दौरान कार्यस्थल पर अपने कर्तव्यों का पालन करने में करना पड़ता है।”
जस्टिस एएस चंदुरकर और जस्टिस जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण को निर्देश दिया कि वह कर्मचारी को उसके तीसरे बच्चे के लिए आठ सप्ताह के भीतर मैटरनिटी लाभ प्रदान करे, क्योंकि उसका पहला बच्चा AAI में शामिल होने से पहले पैदा हुआ और उसने दूसरे बच्चे के लिए लाभ नहीं उठाया।
न्यायालय ने AAI वर्कर्स यूनियन और महिला कर्मचारी द्वारा दायर रिट याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें AAI द्वारा 28 जनवरी 2014 और 31 मार्च 2014 को जारी किए गए संचार को चुनौती दी गई थी, जिसमें कर्मचारी के मैटरनिटी अवकाश लाभ आवेदन को खारिज कर दिया गया।
AAI ने इस आधार पर दलील दी कि उसके दो से अधिक जीवित बच्चे हैं। इस प्रकार वह भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (अवकाश) विनियम 2003 के अनुसार मैटरनिटी लीव के लिए अपात्र है।
न्यायालय ने कहा,
“हमारे विचारार्थ प्रस्तुत मातृत्व लाभ विनियमन का उद्देश्य जनसंख्या पर अंकुश लगाना नहीं है, बल्कि सेवा अवधि के दौरान केवल दो अवसरों पर ऐसा लाभ देना है। इसलिए इसी संदर्भ में दो जीवित बच्चों की शर्त लगाई गई है। हम पहले ही ऊपर यह राय दे चुके हैं कि यह शर्त हमारे सामने मौजूद तथ्यात्मक स्थिति पर कैसे लागू नहीं होती।”
याचिकाकर्ता की पहले AAI कर्मचारी से शादी हुई थी और उसके साथ उसका एक बच्चा था। अपने पति की मृत्यु के बाद उन्हें 2004 में AAI द्वारा अनुकंपा के आधार पर जूनियर अटेंडेंट के रूप में नियुक्त किया गया।
2008 में उन्होंने दोबारा शादी की और अपनी दूसरी शादी से दो बच्चे पैदा किए एक 2009 में और दूसरा 2012 में। उन्होंने 2012 में अपने बच्चे के जन्म के बाद मैटरनिटी लीव लाभ के लिए आवेदन किया, लेकिन AAI ने उनका आवेदन खारिज कर दिया। इस प्रकार उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 42 पर प्रकाश डाला, जो राज्य को काम की न्यायसंगत और मानवीय स्थितियां और मातृत्व राहत प्रदान करने का आदेश देता है। इसने अनुच्छेद 15(3) पर जोर दिया, जो राज्य को महिलाओं के हितों के लिए लाभकारी प्रावधान लागू करने का अधिकार देता है और अनुच्छेद 21 प्रजनन और बच्चे के पालन-पोषण के अधिकार सहित निजता सम्मान और शारीरिक अखंडता के अधिकार को मान्यता देता है।
बी. शाह बनाम पीठासीन अधिकारी लेबर कोर्ट कोयंबटूर में सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या का हवाला देते हुए न्यायालय ने मैटरनिटी लीव लॉ के उद्देश्य को स्पष्ट किया महिला श्रमिकों को सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना, उन्हें प्रसव से उबरने, अपने बच्चे को दूध पिलाने और श्रमिक के रूप में अपनी कार्यकुशलता बनाए रखने की अनुमति देना।
न्यायालय ने AAI अवकाश विनियम 2003 के प्रासंगिक प्रावधानों का विश्लेषण किया, जिसमें कहा गया कि दो से कम जीवित बच्चों वाली महिला कर्मचारी को उसकी सेवा अवधि के दौरान दो बार मैटरनिटी लीव दिया जा सकता है। इसने इस प्रावधान की व्याख्या इस प्रकार की कि दो जीवित बच्चों की शर्त केवल कर्मचारी की सेवा अवधि के दौरान पैदा हुए बच्चों पर लागू होती है।
न्यायालय ने कहा कि मैटरनिटी लीव विनियम आमतौर पर इस धारणा के साथ तैयार किए जाते हैं कि महिला कर्मचारी एक बार शादी करती है और उसके बाद बच्चे को जन्म देती है। इसने कहा कि पुनर्विवाह के परिणामस्वरूप बच्चे के जन्म की परिस्थिति मातृत्व अवकाश विनियमों द्वारा परिकल्पित नहीं है और यह असाधारण परिस्थिति है।
कानूनों के उद्देश्य को समझने और बदलती सामाजिक वास्तविकताओं के अनुकूल ढलने में न्यायालय की भूमिका पर जोर देते हुए न्यायालय ने जोर देकर कहा कि मैटरनिटी लीव प्रावधानों जैसे लाभकारी विनियमों की व्याख्या उनके उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उदारतापूर्वक की जानी चाहिए।
न्यायालय ने कहा,
"महिला और मातृत्व के सम्मान और संरक्षण को एक अविभाज्य सामाजिक कर्तव्य के स्तर तक उठाया जाना चाहिए और इसे मानवीय नैतिकता के सिद्धांतों में से एक बनना चाहिए।"
न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के AAI में नौकरी करने से पहले ही पहला बच्चा पैदा हो गया था। इसने कहा कि पहली शादी से हुए बच्चे के आधार पर मैटरनिटी लीव से इनकार करना अन्यायपूर्ण और विनियमन के उद्देश्य के विपरीत होगा। इसने AAI के इस तर्क को खारिज कर दिया कि दो से अधिक बच्चों की जैविक मां होने के कारण वह मैटरनिटी लाभ के लिए अयोग्य हो जाती है।
इसलिए न्यायालय ने रिट याचिका को अनुमति दे दी।
केस टाइटल - भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण श्रमिक संघ और अन्य बनाम अवर सचिव, श्रम मंत्रालय, भारत सरकार और अन्य।