सत्ता का दुरुपयोग कर रही हैं जांच एजेंसी: बॉम्बे हाईकोर्ट ने ICICI बैंक की CEO और MD चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर की CBI गिरफ्तारी "अवैध" घोषित की
ICICI बैंक की पूर्व CEO और MD चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर की CBI द्वारा गिरफ्तारी अवैध घोषित करते हुए विस्तृत आदेश मे बॉम्बे हाईकोर्ट ने जांच एजेंसियों के कृत्य को सत्ता का दुरुपयोग" कहा है।
जस्टिस अनुजा परभुदेसाई और एनआर बोरकर की खंडपीठ ने कहा,
"विवेक का उपयोग और कानून का उचित सम्मान किए बिना इस तरह की नियमित गिरफ्तारी शक्ति का दुरुपयोग है और सीआरपीसी की धारा 41ए(3) की आवश्यकता को पूरा नहीं करती।"
उल्लेखनीय है कि दंपति को 23 दिसंबर 2022 को उनके बेटे की शादी से कुछ हफ्ते पहले और ICICI बैंक- वीडियोकॉन लोन धोखाधड़ी मामले में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के तीन साल बाद गिरफ्तार किया गाय।
गिरफ्तारी के तुरंत बाद दंपति ने हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। विस्तृत आदेश में अदालत की समन्वय पीठ ने उन्हें अंतरिम जमानत दी और उनकी गिरफ्तारी को प्रथम दृष्टया अवैध ठहराया।
अपने अंतिम आदेश में हाइकोर्ट समन्वय पीठ की टिप्पणियों से सहमत हुआ। यह राय दी गई कि जांच के दौरान साजिश में बैंक अधिकारी की संलिप्तता का पता नहीं चला, लेकिन 2019 में एफआईआर दर्ज करने के समय एजेंसी को इसकी जानकारी थी, जिसके बावजूद CBI को तीन साल तक दोनों को गिरफ्तार करने की जरूरत नहीं पड़ी।
23-12-2022 को गिरफ्तारी जांच के दौरान खोजी गई किसी अतिरिक्त सामग्री के आधार पर नहीं हैं, बल्कि उसी सामग्री पर आधारित है, जो सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत नोटिस जारी करने के समय जांच अधिकारी की जानकारी में थी। बिना विवेक लगाए और कानून का उचित सम्मान किए बिना इस तरह की नियमित गिरफ्तारी शक्ति का दुरुपयोग है और सीआरपीसी की धारा 41ए(3) की आवश्यकता को पूरा नहीं करती है।''
अदालत ने कहा कि जांच एजेंसी किसी आरोपी से पूछताछ कर सकती है, लेकिन आरोपी को चुप रहने का अधिकार है।
यह कहा गया,
“चुप रहने का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) से आता है, जो आरोपी को आत्म-दोषारोपण के खिलाफ अधिकार देता है। यह कहना पर्याप्त है कि चुप रहने के अधिकार का प्रयोग असहयोग के बराबर नहीं किया जा सकता।”
अदालत ने कहा कि जांच एजेंसी आरोपी से पूछताछ कर सकती है और गिरफ्तारी के मुद्दे पर व्यक्तिपरक संतुष्टि पर पहुंच सकती है। हालांकि, यह सुनिश्चित करना न्यायालय की शक्तियों के अंतर्गत है कि व्यक्तिपरक संतुष्टि तथ्यात्मक आधार पर हो न कि जांच एजेंसी की सनक पर।
पीठ ने कहा कि बैंकिंग नियमों के उल्लंघन में वीडियोकॉन समूह को लोन मंजूर करने से संबंधित प्रारंभिक जांच 2017 में दर्ज की गई और प्रारंभिक जांच के दौरान याचिकाकर्ताओं से पूछताछ की गई। उनके खिलाफ 2019 में आपराधिक साजिश और लोन मंजूरी से संबंधित धोखाधड़ी के लिए एफआईआर दर्ज की गई।
इसमें पाया गया कि अपराध की गंभीरता के बावजूद एफआईआर के बाद 3 साल से अधिक समय तक याचिकाकर्ताओं से पूछताछ नहीं की गई या उन्हें बुलाया नहीं गया। जून, 2022 में नोटिस दिया गया कि सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत उस समय उनकी गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं थी।
याचिकाकर्ताओं ने नोटिस का अनुपालन किया और पूछताछ के लिए जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित हुए।
हालांकि, 23-12- 2022 को याचिकाकर्ताओं को वीडियोकॉन को 1875 करोड़ रुपये के लोन को मंजूरी देने के पीछे पूरी साजिश का पता लगाने में सहयोग न करने के आधार पर जांच एजेंसी द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया।
अपीयरेंस
चंदा कोचर की ओर से वकील- अमित देसाई, रोहन दक्षिणी और पूजा कोठारी
सीबीआई के वकील- कुलदीप पाटिल