सीनियर सिटीजन भरण-पोषण ट्रिब्यूनल में पक्षकारों की ओर से पैरवी करने का अधिकार वकीलों को : बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2025-06-12 12:00 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा बेंच ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि जब भी कोई वकील भरण-पोषण ट्रिब्यूनल के समक्ष किसी पक्षकार की ओर से उपस्थित होता है तो उसे माता-पिता और सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम के तहत उक्त न्यायाधिकरण के समक्ष सुनवाई और पैरवी करने का अधिकार होगा।

जस्टिस वाल्मीकि मेनेजेस की एकल पीठ ने पाया कि मापुसा में एक भरण-पोषण ट्रिब्यूनल ने बेटे के खिलाफ उसकी बूढ़ी मां को 10,000 रुपये प्रति माह देने का आदेश पारित किया था, जबकि माता-पिता और सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 17 का हवाला देते हुए बेटे के वकील की बात सुनने से इनकार कर दिया था।

जस्टिस मेनेजेस ने अपने आदेश में कहा,

“भरण-पोषण ट्रिब्यूनल के समक्ष लंबित सभी मामलों में, जहां कोई वकील किसी भी पक्ष के लिए उपस्थित होता है, उसे एडवोकेट एक्ट, 1961 की धारा 30 के अनुसार ऐसे ट्रिब्यूनल के समक्ष पक्षकारों की ओर से सुनवाई और दलील देने का अधिकार होगा। चूंकि पूरा मामला याचिकाकर्ता के प्रतिनिधित्व के अभाव में आगे बढ़ा, जिसने 6 अप्रैल, 2023 को आवेदन के माध्यम से याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने के लिए आवेदन किया था, जिसे खारिज कर दिया गया, यह 12 अक्टूबर, 2023 के अंतिम आदेश और निर्णय को अमान्य कर देगा, जिसे इस आधार पर भी रद्द करना होगा।”

अदालत ने कहा कि एडवोकेट एक्ट, 1961 की धारा 30 वकीलों को किसी भी अदालत या ट्रिब्यूनल के समक्ष उपस्थित होने और दलील देने का 'पूर्ण अधिकार' प्रदान करती है। इसने आगे कहा कि इस मामले में ट्रिब्यूनल ने माता-पिता और सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम की धारा 17 पर भरोसा किया, जिसे केरल हाईकोर्ट ने वकील केजी सुरेश बनाम भारत संघ के मामले में पहले ही 'अधिकार से बाहर' माना है, क्योंकि यह एडवोकेट एक्ट की धारा 30 के विपरीत है।

जज ने कहा,

"एडवोकेट केजी सुरेश के मामले में दिए गए फैसले का प्रभाव यह होगा कि एक्ट की धारा 17 को भारत के संपूर्ण क्षेत्र, जिसमें गोवा राज्य या कोई अन्य राज्य शामिल है, उसकके संबंध में एडवोकेट एक्ट, 1961 की धारा 30 के विपरीत होने के कारण निरस्त कर दिया जाएगा। परिणामस्वरूप, भरण-पोषण ट्रिब्यूनल को मामले की सुनवाई करनी चाहिए थी, जहां वकील के माध्यम से प्रतिनिधित्व की मांग करने वाले आवेदन की मांग की गई तथा पक्षकारों को कानूनी परामर्शदाता के माध्यम से सहायता प्रदान करनी चाहिए थी, न कि 6 अप्रैल, 2023 के विवादित आदेश द्वारा आवेदन को खारिज कर दिया जाना चाहिए था। इसलिए उक्त आदेश घोषित कानून के विपरीत है और इसलिए इसे निरस्त किया जाता है तथा अपास्त किया जाता है।"

इन टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने भरण-पोषण ट्रिब्यूनल के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता पुत्र को अपनी वृद्ध मां को 10 हजार रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था तथा मामले को एक बार फिर से नए सिरे से सुनवाई करने तथा यहां तक ​​कि वृद्ध महिला की तीन बेटियों को कार्यवाही में पक्ष बनाने के लिए ट्रिब्यूनल को वापस भेज दिया। तब तक अदालत ने याचिकाकर्ता बेटे को अपनी वृद्ध मां को 3,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।

Case Title: Santosh Savlaram Morajkar vs Sumitra Savlaram Moraskar (Writ Petition 219 of 2025)

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