समय के साथ संबंध विकसित हो सकता है: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने मां की हत्या के मामले में गवाह बने बेटे के पिता को मुलाक़ात के अधिकार दिए

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने व्यक्ति को सशर्त मुलाकात (visitation) का अधिकार दिया, भले ही उसके नाबालिग बेटे ने उसकी पत्नी की हत्या के मामले में उसके खिलाफ गवाही दी थी।
आरोपी पिता को आपराधिक मुकदमे में बरी किए जाने को ध्यान में रखते हुए जस्टिस रवि नाथ तिलहरी और जस्टिस चला गुना रंजन की खंडपीठ ने यह उचित समझा कि उसे सशर्त मुलाकात का अधिकार दिया जाए, जिससे वह अपने व्यवहार, आचरण और सहभागिता के माध्यम से बेटे का प्यार और स्नेह जीतने का अवसर पा सके।
कोर्ट ने कहा,
"ग़लतफहमियां या भ्रांतियां, चाहे वह किसी भी कारण से हों ट्यूटरिंग, लंबे समय तक अलग रहना या अन्य कारण समय के साथ दूर हो सकती हैं। मुलाकात का अधिकार कुछ सीमाओं और शर्तों के साथ दिया जा सकता है। इस आशा के साथ कि समय के साथ पिता और पुत्र के बीच का संबंध विकसित हो सकता है। हमारे विचार में बरी हो जाने के बाद सामान्यतः पिता को अपने बच्चे के प्यार और साथ से वंचित नहीं किया जाना चाहिए भले ही वह सीमित और निगरानी में हो।"
पूरा मामला
पिता ने गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट की धारा 47 के तहत अपील दायर कर अपने नाबालिग बेटे की कस्टडी मांगी, जो कि उसकी पत्नी की मृत्यु के बाद उसकी ससुराल वालों (नाना, नानी और मामा) की कस्टडी में था। उन्होंने जिला जज द्वारा दी गई उस व्यवस्था को भी चुनौती दी जिसमें उन्हें पुत्र की कस्टडी देने से इनकार कर दिया गया।
पत्नी की मृत्यु के बाद पत्नी के परिवार ने पति और उसके माता-पिता के खिलाफ आईपीसी की धारा 498A, 302, 201 और 34 के तहत मामला दर्ज कराया और नाबालिग बेटे की देखभाल की जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली।
आपराधिक मुकदमे के दौरान आरोप लगाया गया कि मृतका से दहेज की मांग की गई और उसे मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया तथा उसकी हत्या कर दी गई। बेटे ने भी अपने पिता के खिलाफ बयान दिया। हालांकि ट्रायल के बाद पिता को बरी कर दिया गया। यह बरी होने का आदेश एक अपील में चुनौती दिया गया था जो इस समय विचाराधीन थी।
कस्टडी पर निष्कर्ष
बच्चे के कल्याण को सर्वोपरि मानते हुए हाईकोर्ट ने सेशंस कोर्ट के उस आदेश की वैधता पर कोई टिप्पणी नहीं की जिसमें बच्चे की गवाही पर संदेह जताते हुए पिता को बरी किया गया।
कोर्ट ने कहा,
“सेशंस कोर्ट ने बच्चे की उपस्थिति को लेकर संदेह जताया और उसकी गवाही को पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में अस्वीकार कर दिया। यह मूल्यांकन सही हो सकता है, लेकिन हम इसे पिता को कस्टडी देने के पक्ष में नहीं मानते। बच्चा घटनास्थल पर था या नहीं उसने सच बोला या नहीं या ट्यूटरिंग के कारण बयान दिया ये सब अलग प्रश्न हैं लेकिन तथ्य यह है कि उसने धारा 161 CrPC के तहत जांच में धारा 164 CrPC के तहत मजिस्ट्रेट के सामने और ट्रायल कोर्ट में गवाह PW-8 के रूप में अपने पिता के विरुद्ध गवाही दी कि उसके पिता ने उसकी मां की हत्या की और इस बरी के आदेश के खिलाफ अपील विचाराधीन है।”
साथ ही इस दलील पर कि पिता ने वर्षों तक बेटे से मिलने की कोशिश नहीं की कोर्ट ने कहा,
“जब आरोपी के खिलाफ आपराधिक मामला लंबित था और बच्चा ससुराल पक्ष की कस्टडी में था, तब पिता से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह जाकर उनसे मिलते। उन्होंने जो संभव था, वह किया कानून के तहत कदम उठाए। इसलिए यह तर्क अस्वीकार्य है कि उन्होंने बेटे में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।”
कोर्ट ने एक फ़ोटो पर ध्यान दिया जिसमें बेटे की गर्दन पर निशान थे, जो गला दबाने के संकेत दे रहे थे। कोर्ट ने यह माना कि घटना और फोटो के बीच का समय निकट था, इसलिए गला दबाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
इस पर कोर्ट ने कहा,
“इस फ़ोटो से प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि यह कस्टडी देने के खिलाफ जाता है और बच्चे के हित में नहीं है।”
जहां तक बेटे की इच्छा की बात है कोर्ट ने कहा कि उसे बुलाना उचित नहीं होगा, क्योंकि वह पहले ही पिता से मिलने से इनकार कर चुका है, यह कहते हुए कि पिता ने उसकी मां की हत्या की और वह अपने नाना-नानी के साथ रहना चाहता है।
“यह सही है कि पिता बच्चे का पालन-पोषण करने में सक्षम हो सकते हैं, लेकिन समग्र परिस्थितियों को देखते हुए और बच्चे की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए फिलहाल उसके पिता को कस्टडी देना बच्चे के हित में नहीं होगा। पिछले सात वर्षों से उसके मन में अपने पिता के प्रति प्रतिकूल धारणा बनी हुई है।”
कोर्ट ने पिता को बेटे की कस्टडी देने से इनकार किया और ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा।
मुलाकात के अधिकार पर निष्कर्ष:
पिता और पुत्र के बीच संबंध बनाए रखने के उद्देश्य से हाईकोर्ट ने पिता को सीमित मुलाकात का अधिकार देने की इच्छा जताई। कोर्ट ने यशिता साहू बनाम राज्य राजस्थान (2020) मामले का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चे का यह मानवाधिकार है कि उसे दोनों माता-पिता का प्यार और स्नेह मिले और यह अदालत की जिम्मेदारी है कि वह सुनिश्चित करे कि बच्चा गैर-अभिभावक माता-पिता के प्यार और देखभाल से वंचित न रहे।
पत्नी के परिवार की यह दलील कि बच्चा पिता के खिलाफ गवाही दे चुका है। आपराधिक अपील लंबित है को कोर्ट ने प्रासंगिक तो माना लेकिन यह भी कहा कि दोनों पक्षों को आपसी सम्मान और सहयोग बनाए रखना चाहिए ताकि बच्चे का भला हो सके। भले ही बच्चा अपने पिता से कोई लगाव नहीं रखता हो फिर भी कोर्ट ने माना कि सीमित और सशर्त मुलाकात के माध्यम से ये गलतफहमियां दूर हो सकती हैं जो ट्यूटरिंग या लंबे समय तक अलग रहने की वजह से पैदा हुई हों।
कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ पिता को मुलाकात का अधिकार दिया लेकिन कस्टडी की अपील खारिज की।
केस टाइटल: X बनाम Y एवं अन्य