आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने पूर्व सीएम जगन मोहन रेड्डी की विधानसभा में विपक्ष का नेता घोषित किए जाने की याचिका पर नोटिस जारी किया
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने राज्य विधानमंडल में विपक्षी दल का नेता घोषित किए जाने की प्रार्थना करते हुए आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जस्टिस रवि चीमालापति जिनके समक्ष रिट सूचीबद्ध थी ने मामले में नोटिस जारी किया और इसे इस महीने की 22 तारीख को पोस्ट किया।
अपनी याचिका में जगन ने स्पष्ट किया कि आमतौर पर जब विधानसभा में पारंपरिक शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया जाता है तो शपथ प्रशासन का क्रम इस प्रकार होता है:
मुख्यमंत्री राज्य का मुखिया होने के नाते सबसे पहले शपथ दिलाते हैं। इसके बाद मंत्रिपरिषद शपथ लेती है और फिर विपक्षी दल के नेता (LOP) को शपथ दिलाने का समय आता है।
रेड्डी ने कहा कि 21 जून को जब राज्य विधानसभा में पारंपरिक शपथ ग्रहण समारोह हुआ तो उन्होंने 26वें नंबर पर शपथ ली। पूर्व सीएम ने कहा कि 2014 में आंध्र प्रदेश राज्य के गठन के बाद के शुरुआती वर्षों में उन्हें 175 में से 70 सीटें हासिल करने पर विपक्ष का नेता घोषित किया गया था।
2019 में जब दूसरे राज्य चुनाव हुए तो उन्होंने कुल 175 में से 151 सीटें हासिल करके शानदार जीत हासिल की। यह कहा गया कि हालांकि, हाल के 2024 के चुनावों में वह 175 में से केवल 11 सीटें हासिल करने में सक्षम थे लेकिन इससे उन्हें विपक्षी दल का नेता घोषित किए जाने पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि राज्य में कोई अन्य विपक्षी दल नहीं है।
जगन ने कहा कि इससे यह स्पष्ट हो गया कि उन्हें आंध्र प्रदेश विधानसभा में विपक्ष का नेता घोषित नहीं किया जाएगा।
उन्होंने तर्क दिया कि आंध्र प्रदेश वेतन एवं पेंशन भुगतान और अयोग्यता निवारण अधिनियम 1953 की धारा 12बी में 'विपक्ष के नेता' की परिभाषा दी गई। इसमें कहा गया कि जब सरकार के विरोध में दो या दो से अधिक दल हों तो आंध्र प्रदेश विधानसभा के स्पीकर उस दल के किसी भी नेता को विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता दे सकते हैं।
जगन ने जोरदार तरीके से तर्क दिया कि पिछले चुनावों में भारी बहुमत से जीत हासिल करने और आंध्र प्रदेश में कोई अन्य विपक्षी दल न होने के कारण उनके अलावा किसी को भी विपक्ष का नेता नहीं घोषित किया जा सकता।
अदालत के संज्ञान में यह भी लाया गया कि 24-6-2024 को याचिकाकर्ता ने विधानसभा के मंत्री यानी पय्यावुला केशव को पत्र लिखा था, जिसमें ऐसे मामलों को उनके संज्ञान में लाया गया, जहां विपक्ष के नेता का दर्जा राजनीतिक दल के प्रतिनिधियों को दिया गया था, जिन्होंने सदन में कुल सीटों के न्यूनतम 10% से कम सीटें हासिल की थीं।
इसके अतिरिक्त यह भी तर्क दिया गया कि उक्त मंत्री ने मीडिया के सामने अपने नाम लिखे पत्र के बारे में बात करते हुए याचिकाकर्ता को विपक्ष के नेता का दर्जा न देने की अपनी मंशा से अवगत कराया, क्योंकि वह न्यूनतम 10% सीटें हासिल नहीं कर पाए थे।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 208 के तहत अधिसूचित आंध्र प्रदेश विधानसभा में प्रक्रिया और कामकाज के संचालन के नियमों में विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए किसी राजनीतिक दल द्वारा प्राप्त सीटों का कोई अनिवार्य प्रतिशत निर्धारित नहीं किया गया।
उन्होंने दलील दी कि इससे पहले विधानसभा स्पीकर ने टिप्पणी की थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि जगन ऐसे व्यक्ति हैं, जो हारे हुए हैं लेकिन अभी मरे नहीं हैं। उन्हें तब तक पीटा जाना चाहिए, जब तक कि उनकी मृत्यु न हो जाए।
इस प्रकार स्पीकर को वर्तमान रिट में एक पक्षकार के रूप में शामिल किया गया।