आपराधिक अवमानना कार्यवाही के लिए अनुमति देने से एडवोकेट जनरल के इनकार के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति देने से एडवोकेट जनरल के इनकार को चुनौती देने वाली रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने पी.एन. डूडा बनाम पी. शिव शंकर एवं अन्य, 1988 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें कहा गया कि एडवोकेट जनरल/अटॉर्नी जनरल द्वारा सहमति देने से इनकार करने के मामलों में न्यायालय द्वारा यह पता लगाने में समय व्यतीत करने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा कि एडवोकेट जनरल/अटॉर्नी जनरल को एक या दूसरे तरीके से निर्णय देना चाहिए था या नहीं।
खंडपीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में याचिकाकर्ता के पास उपाय नहीं है। उसके पास हमेशा यह विकल्प है कि वह अपने पास मौजूद जानकारी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करे और न्यायालय से कार्रवाई करने का अनुरोध करे।
खंडपीठ मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के एडवोकेट जनरल के आदेश को चुनौती देने वाले अरुण मिश्रा द्वारा दायर रिट याचिका पर विचार कर रही थी। एडवोकेट जनरल ने न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 15(3)(बी) के तहत आपराधिक अवमानना याचिका दायर करने के मिश्रा के आवेदन पर सहमति देने से इनकार किया था।
याचिका का विरोध करते हुए उत्तर प्रदेश राज्य के प्रतिवादी/एडवोकेट जनरल की ओर से उपस्थित वकील ने प्रस्तुत किया कि यह रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं होगी, क्योंकि आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति देने से इनकार करने वाले एडवोकेट जनरल के आदेश को रिट याचिका दायर करके चुनौती नहीं दी जा सकती।
न्यायालय ने राज्य एडवोकेट जनरल की ओर से उपस्थित वकील के तर्क से सहमत होकर और पीएन डूडा मामले (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर विचार करते हुए रिट याचिका को खारिज कर दिया।
हालांकि, न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता हाईकोर्ट के नियमों और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार आपराधिक अवमानना मामलों से निपटने वाली खंडपीठ के समक्ष उचित आवेदन प्रस्तुत करने के लिए स्वतंत्र होगा।
केस टाइटल- अरुण मिश्रा बनाम एडवोकेट जनरल 2024 लाइवलॉ (एबी) 444