'कठमुल** शब्द Hate Speech नहीं: जस्टिस शेखर पर महाभियोग प्रस्ताव के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका
राज्यसभा महासचिव को 55 सांसदों द्वारा प्रस्तुत महाभियोग प्रस्ताव के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई, जिसमें जस्टिस शेखर यादव द्वारा 8 दिसंबर को प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद (कानूनी प्रकोष्ठ) द्वारा आयोजित कार्यक्रम में दिए गए भाषण को लेकर महाभियोग चलाने की मांग की गई।
एडवोकेट अशोक पांडे द्वारा दायर जनहित याचिका में जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ कपिल सिब्बल और 54 अन्य सांसदों द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव पर कार्रवाई न करने के लिए राज्यसभा के सभापति को निर्देश देने की मांग की गई।
जनहित याचिका में तर्क दिया गया कि जस्टिस यादव ने जो कुछ भी कहा है, वह उन्होंने एक हिंदू की हैसियत से उन विषयों पर कहा है, जो हिंदुओं के दिलों से जुड़े हैं और जो उनके दैनिक जीवन को प्रभावित कर रहे हैं।
इसमें कहा गया कि इस बैठक में भाग लेने वाले केवल हिंदू थे। इस तरह, उस बैठक में बोले गए शब्द कुछ सार्वजनिक बैठकों में दिए जाने वाले घृणास्पद भाषण की परिभाषा में नहीं आ सकते।
पीआईएल याचिका में आगे कहा गया कि जस्टिस यादव द्वारा अपने भाषण के दौरान बोला गया शब्द 'कठमु**ह' घृणास्पद भाषण के दायरे में नहीं आता है। इसमें तर्क दिया गया कि वह केवल अपनी राय व्यक्त कर रहे थे, संभवतः एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसके रिश्तेदारों या दोस्तों को 'कठमु**पन' के कारण मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की क्रूरता और यातना का सामना करना पड़ा है।
“वह ऐसा व्यक्ति हो सकता है, जिसके किसी रिश्तेदार या दोस्त को लव जेहाद की कुछ घटनाओं के कारण यातना का सामना करना पड़ा हो। वह संवेदनशील व्यक्ति हो सकता है, जो मुसलमानों को बिना किसी दंडात्मक या नागरिक परिणाम के जितनी चाहें उतनी लड़कियों से शादी करने की कानूनी अनुमति से व्यथित है, वह ऐसा व्यक्ति हो सकता है जो खुली आँखों से सड़क पर चलता है और पांच से छह साल की बच्ची को हिजाब के साथ स्कूल जाते हुए देखता है। एक वकील और जज के रूप में उन्हें यह जानकारी मिली होगी कि कैसे कठमुल्ला मुस्लिम लड़कियों को स्कूल और कॉलेज जाने से रोक रहे हैं या कैसे कठमुल्ला मुस्लिम महिलाओं को हिजाब और बुर्का पहनने के लिए मजबूर कर रहे हैं।''
इसके अलावा, जनहित याचिका में दलील दी गई कि संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में भाषण और अभिव्यक्ति का अधिकार न्यायाधीशों को भी उपलब्ध है, इसलिए जज द्वारा न्यायालय के बाहर दिया गया कोई भाषण जज को उसके पद से हटाने का आधार नहीं हो सकता। इसमें तर्क दिया गया कि यह प्रस्ताव पेश करने वाले सांसदों द्वारा पद का दुरुपयोग करने का स्पष्ट मामला है, इसलिए प्रस्ताव खारिज करने के अलावा सांसदों को भविष्य में ऐसा न करने की चेतावनी भी दी जानी चाहिए।
याचिका में कहा गया,
''ऐसी चेतावनी की आवश्यकता है, क्योंकि इस समूह के नेता यानी कपिल सिब्बल जजों को नियम-कायदे थोपने के आदी हैं और जो इसका पालन नहीं करते, उन्हें हटाने का प्रस्ताव पेश किया जाता है।''
इसमें कहा गया कि आरएस के समक्ष प्रस्तुत आवेदन में यह नहीं बताया गया कि जस्टिस यादव द्वारा उस धर्म के कुछ लोगों के साथ बैठक में बोले गए शब्द किस तरह से सिद्ध दुर्व्यवहार या अक्षमता की परिभाषा में आएंगे।
याचिका में कहा गया,
"यदि जस्टिस शेखर कुमार यादव द्वारा बोले गए शब्द घृणास्पद भाषण की परिभाषा में आते हैं तो उनके खिलाफ FIR दर्ज की जा सकती है, लेकिन यह उन्हें जज के पद से हटाने का आधार नहीं हो सकता। जज को ऐसे जज के रूप में सिद्ध दुर्व्यवहार या अक्षमता के आधार पर हटाया जा सकता है, जो मामले में अनुपस्थित है। इसलिए विवादित प्रस्ताव को खारिज किया जाना चाहिए।"
संबंधित समाचार में, उनके विवादास्पद भाषण के 4 दिन बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने जस्टिस शेखर यादव के न्यायिक रोस्टर को बदल दिया (जो 16 दिसंबर को प्रभावी हुआ)। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने भी कथित तौर पर पूरे विवाद पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए उन्हें तलब किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिसंबर को उनके भाषण पर ध्यान दिया।