'धर्म के क्षेत्र में राज्य को प्रवेश की अनुमति नहीं': हाईकोर्ट ने बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश पर राज्य सरकार से किया सवाल
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 'उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश 2025' लाने पर कड़ी मौखिक टिप्पणियां कीं, जिसमें वृंदावन (मथुरा) स्थित ऐतिहासिक बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन के लिए एक वैधानिक ट्रस्ट का प्रस्ताव है।
जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने धार्मिक क्षेत्र में प्रवेश करने के राज्य सरकार के संवैधानिक औचित्य पर सवाल उठाया।
पीठ ने मौखिक रूप से इस प्रकार टिप्पणी की:
हम राज्य को धर्म में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देंगे। मैं सरकार से पूछूंगा कि सरकार धर्म में कैसे प्रवेश कर रही है?...(राज्य से) आप बाहरी व्यवस्था देखते हैं; आंतरिक मामलों में दखल न दें... आप (मंदिर के) प्रशासन की योजना बना सकते हैं, लेकिन आपका व्यक्ति अंदर नहीं रहेगा... संविधान का कोई धर्म नहीं है, सरकार का कोई धर्म नहीं है, फिर आप दखल क्यों दे रहे हैं?
अदालत ने आगे टिप्पणी की कि हिंदू धर्म सबसे ज़्यादा प्रभावित है।
उन्होंने कहा:
"आप तिरुपति मंदिर मैनेज कर रहे हैं, आप वैष्णो देवी मैनेज कर रहे हैं, लेकिन आप एक भी मस्जिद या चर्च मैनेज नहीं कर रहे हैं... धर्म में न पड़ें।"
इसके अलावा, अदालत ने मंदिर के आंतरिक प्रबंधन की भी मौखिक आलोचना की, जिसे गोस्वामी संभाल रहे हैं। एकल जज ने कहा कि उन्होंने मंदिर की पवित्रता को नष्ट कर दिया, पैसे के पीछे हैं और हिंदू धर्म के बारे में कुछ नहीं जानते।
उन्होंने यह भी कहा कि देवता को चढ़ाया गया धन कभी देवता तक नहीं पहुंचता और इस 'लूट' को रोकने की आवश्यकता पर बल दिया।
इसके अलावा, जब गोस्वामी पक्ष ने मंदिर में राज्य के प्रवेश को प्रतिबंधित करने की प्रार्थना की तो जज ने पलटवार करते हुए कहा कि उनका प्रवेश भी प्रतिबंधित होगा।
अंत में न्यायालय ने दर्ज किया कि राज्य ने पिछली सुनवाई में उठाए गए विशिष्ट प्रश्नों का अभी तक उत्तर नहीं दिया और सुनवाई 6 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी।
संक्षेप में मामला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 21 जुलाई को उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा, जब न्यायालय द्वारा नियुक्त एमिक्स क्यूरी ने उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास अध्यादेश, 2025 जारी करने की राज्य की क्षमता पर गंभीर प्रश्न उठाए।
अध्यादेश के अनुसार, वृंदावन, मथुरा में श्री बांके बिहारी जी मंदिर का प्रबंधन और भक्तों की सुविधाओं की ज़िम्मेदारी 'श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास' द्वारा संभाली जाएगी। इसमें 11 न्यासी मनोनीत किए जाएंगे, जबकि अधिकतम 7 सदस्य पदेन हो सकते हैं। सभी सरकारी और गैर-सरकारी सदस्य सनातन धर्म के अनुयायी होंगे।
उल्लेखनीय है कि 21 जुलाई को एमिक्स क्यूरी ने जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ के समक्ष दलील दी कि राज्य सरकार अध्यादेश जारी करने में सक्षम नहीं है, क्योंकि बांके बिहारी मंदिर एक निजी मंदिर है और इसकी धार्मिक परंपरा स्वामी हरिदास जी के उत्तराधिकारियों द्वारा निभाई जा रही है।
28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने अध्यादेश की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर भी सुनवाई की और मथुरा मंदिर की प्रबंधन समिति से यह पता लगाने को कहा कि पूरे भारत में कितने मंदिरों का प्रबंधन कानूनों के माध्यम से अपने हाथ में लिया गया है।
हाईकोर्ट के समक्ष मामले की संक्षिप्त पृष्ठभूमि
बांके बिहारी मंदिर से संबंधित विवाद वृंदावन स्थित प्रतिष्ठित बांके बिहारी मंदिर के सेवायतों के दो संप्रदायों के बीच लंबे समय से चले आ रहे आंतरिक मतभेदों से जुड़ा है। लगभग 360 सेवायतों के साथ मंदिर का प्रबंधन ऐतिहासिक रूप से स्वामी हरिदास जी के वंशजों और अनुयायियों द्वारा निजी तौर पर किया जाता रहा है।
मार्च, 2025 में जब यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो न्यायालय ने प्रबंधन संबंधी जटिलताओं को सुलझाने में सहायता के लिए एडवोकेट संजय गोस्वामी को एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया।
इस बीच राज्य ने 2025 का अध्यादेश जारी किया, जिसमें कई राज्य अधिकारियों को पदेन न्यासी बनाकर वैधानिक ट्रस्ट बनाने का प्रस्ताव था।
मंदिर से जुड़ा एक और मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नवंबर, 2023 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित कॉरिडोर के विकास को मंज़ूरी दी। हालाँकि, न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को कॉरिडोर के निर्माण के लिए देवता के बैंक खाते से 262.50 करोड़ रुपये का उपयोग करने से रोक दिया।
हालांकि, 15 मई को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश में संशोधन किया। इसने उत्तर प्रदेश सरकार को कॉरिडोर के विकास के लिए मंदिर के आसपास 5 एकड़ भूमि अधिग्रहण करने हेतु धनराशि का उपयोग करने की अनुमति दी, इस शर्त पर कि अधिग्रहित भूमि देवता के नाम पर पंजीकृत होगी।
बाद में देवेंद्र नाथ गोस्वामी और रसिक राज गोस्वामी नामक एक मंदिर भक्त ने सुप्रीम कोर्ट में एम.ए. दायर कर फैसले को वापस लेने की मांग की और तर्क दिया कि उनकी बात नहीं सुनी गई।
अपने एम.ए. में, आवेदकों ने मामले का पूर्ण निर्णय होने तक पुनर्विकास संबंधी सभी गतिविधियों (अधिग्रहण, विध्वंस, निर्माण) पर रोक लगाने की मांग की। उन्होंने यह भी अनुरोध किया कि किसी भी पुनर्विकास को समावेशी और पारदर्शी बनाने के लिए एक विरासत और हितधारक परामर्श समिति का गठन किया जाए।