साक्ष्य या बयान दर्ज करते समय अभद्र या अपमानजनक शब्दों का प्रयोग न करें: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-10-07 09:48 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के सभी न्यायिक अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे मुकदमों की सुनवाई के दौरान साक्ष्य या बयानों में प्रयोग की गई गाली-गलौज या अभद्र भाषा को रिकॉर्ड न करें।

विशेष न्यायाधीश (SC/ST अधिनियम), वाराणसी के आदेश के खिलाफ दायर एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस हरवीर सिंह ने कहा —

“दलीलों या आदेशों में अभद्र या गाली-गलौज भरी भाषा का प्रयोग अनुचित और अस्वीकार्य है। इसलिए यह निर्देश दिया जाता है कि न केवल संबंधित अधिकारी, बल्कि प्रदेश के सभी न्यायिक अधिकारी ऐसे शब्दों के प्रयोग से बचें, जो इस मामले के आदेश या 30.04.2024 को दर्ज गवाह (PW-1) के बयान में प्रयुक्त हुए हैं। न्यायिक आदेशों की भाषा में पद की गरिमा और मर्यादा परिलक्षित होनी चाहिए।”

मूल रूप से, विशेष न्यायाधीश (SC/ST अधिनियम), वाराणसी ने पुनरीक्षणकर्ता की शिकायत को CrPC की धारा 203 के तहत यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि विपक्षी पक्षों के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं है। इसके विरुद्ध पुनरीक्षणकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, यह कहते हुए कि गवाहों के बयान पर विचार नहीं किया गया।

मामले के मेरिट पर न्यायालय ने कहा कि गवाहों के बयानों में कोई संगति नहीं है और रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से विपक्षी पक्षों के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता।

पुनरीक्षण खारिज करते हुए न्यायालय ने पाया कि विशेष न्यायाधीश ने आदेश पारित करते समय और गवाह के बयान में अशोभनीय शब्दों का प्रयोग किया है। इस पर कोर्ट ने कहा —

“सुप्रीम कोर्ट और इस न्यायालय ने समय-समय पर निर्देश दिया है कि न्यायिक आदेशों या गवाहों के बयान दर्ज करते समय शालीन और सामान्य भाषा का प्रयोग किया जाए, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि विशेष न्यायाधीश (SC/ST अधिनियम) ने इन दिशानिर्देशों पर ध्यान नहीं दिया।”

कोर्ट ने ऐसे शब्दों के प्रयोग से परहेज करने का निर्देश देते हुए आदेश दिया कि यह निर्देश उत्तर प्रदेश के सभी जिला न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों तक प्रसारित किया जाए, ताकि भविष्य में वे सावधानी बरतें और उचित एहतियात अपनाएं।

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