विशेष धार्मिक समूह को निशाना बनाने का आरोप लगाने वाला व्हाट्सएप मैसेज BNS की धारा 353(2) के तहत दुश्मनी बढ़ाने का अपराध हो सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-10-09 04:48 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी विशेष धार्मिक समुदाय के लोगों को निशाना बनाए जाने का आरोप लगाते हुए कई लोगों को व्हाट्सएप मैसेज प्रसारित करना प्रथम दृष्टया भारतीय न्याय संहिता (BNS) धारा 353(2) के तहत धार्मिक समुदायों के बीच दुश्मनी, घृणा और दुर्भावना को बढ़ावा देने का अपराध माना जाएगा।

जस्टिस जेजे मुनीर और जस्टिस प्रमोद कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता (अफाक अहमद) के खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की, जिसने कथित तौर पर व्हाट्सएप पर कई व्यक्तियों को एक भड़काऊ मैसेज भेजा था।

बता दें, कथित मैसेज में याचिकाकर्ता ने एक सूक्ष्म संदेश दिया कि उसके भाई को एक झूठे मामले में निशाना बनाया गया, क्योंकि वह एक विशेष धार्मिक समुदाय से संबंधित है।

हाईकोर्ट के समक्ष आवेदक के वकील ने तर्क दिया कि कथित पोस्ट में याचिकाकर्ता ने अपने भाई की गिरफ्तारी पर केवल नाराजगी व्यक्त की थी। इसका उद्देश्य किसी भी तरह से सार्वजनिक शांति, सौहार्द या सांप्रदायिक सद्भाव को भंग करना नहीं था।

दूसरी ओर, अतिरिक्त सरकारी वकील ने याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करने के प्रस्ताव का विरोध किया।

शुरुआत में खंडपीठ ने कहा कि हालांकि मैसेज में धर्म के बारे में कोई बात नहीं थी, लेकिन इसमें अंतर्निहित और सूक्ष्म संदेश दिया गया कि उसके भाई को एक झूठे मामले में इसलिए निशाना बनाया गया, क्योंकि वह एक विशेष धार्मिक समुदाय से संबंधित है।

खंडपीठ ने आगे कहा कि ये अनकहे शब्द "प्रथम दृष्टया एक विशेष समुदाय से आने वाले नागरिकों के एक वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करेंगे, जो सोचेंगे कि उन्हें विशेष धार्मिक समुदाय से संबंधित होने के कारण निशाना बनाया जा रहा है"।

खंडपीठ ने कहा,

"इसके अलावा, अगर कोई यह भी सोचे कि व्हाट्सएप मैसेज से किसी वर्ग के नागरिकों या समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंची है तो भी यह निश्चित रूप से एक ऐसा मैसेज है, जो अपने अनकहे शब्दों से धार्मिक समुदायों के बीच दुश्मनी, घृणा और दुर्भावना की भावनाएं पैदा या बढ़ावा दे सकता है, जहां एक विशेष समुदाय के सदस्य पहली नज़र में यह सोच सकते हैं कि उन्हें दूसरे धार्मिक समुदाय के सदस्यों द्वारा कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करके निशाना बनाया जा रहा है।"

अदालत ने कहा कि एक धार्मिक समूह के सदस्यों को निशाना बनाने का आरोप लगाते हुए कई लोगों को ऐसा संदेश भेजना, प्रथम दृष्टया भारतीय दंड संहिता की धारा 353 (2) के प्रावधानों के अंतर्गत आता है, यदि भारतीय दंड संहिता की धारा 353 (3) के अंतर्गत नहीं।

इस प्रकार, यह मानते हुए कि याचिकाकर्ता संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत किसी भी तरह से जांच या उसकी किसी भी प्रक्रिया में बाधा डालने वाली राहत पाने का हकदार नहीं है, खंडपीठ ने याचिका खारिज कर दी।

Case title - Afaq Ahmad vs. State of U.P. and others

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