पीपल के पेड़ को लेकर सांप्रदायिक तनाव: यूपी सरकार ने 19वीं सदी की अयोध्या मस्जिद के जीर्णोद्धार पर आपत्ति को हाईकोर्ट में उचित ठहराया

Update: 2024-12-04 05:49 GMT

उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले सप्ताह अयोध्या में 19वीं सदी की हुसैनी मस्जिद के जीर्णोद्धार और मरम्मत कार्य पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें मस्जिद समिति द्वारा उचित मंजूरी के बिना मस्जिद की भूमि पर निर्माण कार्य करने के प्रयास का हवाला दिया गया।

यह आपत्ति इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष उठाई गई, जहां एडिशनल मुख्य सरकारी वकील ने सरकार के रुख को उचित ठहराते हुए कहा कि मस्जिद प्रबंधन प्रस्तावित जीर्णोद्धार योजना के तहत मस्जिद की सीमा के भीतर एक पीपल के पेड़ और चबूतरे को शामिल कर रहा था जिससे क्षेत्र में सामाजिक और सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया।

यह दलील जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस मनीष कुमार की पीठ के समक्ष दी गई, जो सौ साल पुरानी मस्जिद हुसैनी मस्जिद के मुतवल्ली मोहम्मद सिद्दीक द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही है।

याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार, जिला मजिस्ट्रेट (DM) और उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (SDM) को आवश्यक मरम्मत कार्य में हस्तक्षेप न करने का निर्देश देने की मांग की गई, जिसका उद्देश्य हुसैनी मस्जिद की प्राचीन संरचना को संरक्षित करना है।

याचिका में यह भी अनुरोध किया गया कि विपरीत पक्षों को मस्जिद के अंदर मुसलमानों को उनकी नियमित नमाज़ अदा करने से रोकने से रोका जाए।

याचिकाकर्ता का कहना है कि जिस क्षेत्र में मस्जिद मौजूद है वह दर्ज किए गए किरायेदारों द्वारा अछूता रह गया, जिन्होंने मरम्मत पर कोई आपत्ति नहीं जताई क्योंकि मस्जिद बहुत पुरानी है।

इसके अलावा यह भी कहा गया कि दिसंबर 2023 में, केंद्रीय छत और मीनारें ढह गईं, लेकिन खुले क्षेत्र में नमाज़ जारी रही। इसलिए मस्जिद की मरम्मत करने का निर्णय लिया गया। हालांकि, जब स्थानीय मुसलमानों ने मरम्मत का काम शुरू किया तो स्थानीय पुलिस ने उन्हें अयोध्या भव्य मंदिर उद्घाटन के बाद तक काम रोकने का निर्देश दिया।

बाद में जब मरम्मत का काम फिर से शुरू हुआ तो पुलिस ने आसन्न आम चुनावों का हवाला देते हुए इसे फिर से रोक दिया। उक्त निर्देशों का पालन किया गया और काम रोक दिया गया।

चुनाव परिणाम के बाद जब याचिकाकर्ता ने तहसील कार्यालय और पुलिस स्टेशन में जवाब मांगा तो उसे कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। इसलिए उसने यूपी सरकार के जनसुनवाई-समाधान लोक शिकायत पोर्टल पर ऑनलाइन अभ्यावेदन प्रस्तुत किया।

उसकी शिकायत के जवाब में तहसील कार्यालय ने जवाब दिया कि मस्जिद की स्थिति ऐसी है कि किसी भी संरचनात्मक परिवर्तन के लिए सक्षम प्राधिकारी से मानचित्र स्वीकृति की आवश्यकता है। इसलिए अनुमोदन के बाद ही मरम्मत जारी रखी जा सकती है।

याचिकाकर्ता का तर्क है कि मस्जिद में केवल मरम्मत की आवश्यकता थी। अनुमति के बिना पुनर्निर्माण की योजना नहीं थी। हालांकि, स्थानीय अधिकारियों ने उसकी प्रार्थनाओं का जवाब नहीं दिया।

इस पृष्ठभूमि के खिलाफ याचिकाकर्ता ने उपरोक्त राहत की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया, जिसमें कहा गया कि स्थानीय पुलिस द्वारा मुसलमानों को मस्जिद के अंदर नियमित नमाज अदा करने की अनुमति नहीं दी जा रही है। उन्हें यह बहाना देकर मनमाने ढंग से उनकी नमाज से रोका जा रहा है कि इमारत बहुत पुरानी है और इसके गिरने का खतरा है।

राज्य के वकील की दलीलों को रिकॉर्ड पर लेते हुए अदालत ने विपक्षी पक्षों से हलफनामा मांगते हुए मामले को अब जनवरी 2025 में आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया।

केस टाइटल - मोहम्मद सिद्दीक बनाम उत्तर प्रदेश राज्य से लेकर प्रधान सचिव राजस्व विभाग लखनऊ और 4 अन्य

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