पूर्वव्यापी नियमितीकरण के बाद, कर्मचारी पूर्वव्यापी प्रभाव से वेतन बकाया के अलावा अन्य लाभ पाने का हकदार होगा, जब तक कि विशेष रूप से रोक न लगाई गई हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-08-01 10:33 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पूर्वव्यापी नियमितीकरण के मामलों में कर्मचारी को समयमान वेतनमान, चयन वेतन, एसीपी लाभ आदि जैसे लाभों का पूर्वव्यापी प्रभाव से अधिकार होगा, जब तक कि उसे नियमित करने वाले आदेश में निर्दिष्ट समय अवधि को गिनने से विशेष रूप से प्रतिबंधित न किया गया हो।

इसके अलावा यह भी माना गया कि अन्यथा भी, यदि पूर्वव्यापी नियमितीकरण वरिष्ठता को बहाल करता है, तो याचिकाकर्ता को उसके कनिष्ठ की तुलना में कम वेतनमान पर निर्धारित किया जाता है, तो यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।

जस्टिस अजीत कुमार ने कहा, "अन्यथा भी यदि पूर्वव्यापी नियमितीकरण वरिष्ठता को बहाल करता है, तो किसी कर्मचारी का वेतन/वेतनमान अन्य कर्मचारी/कर्मचारियों की तुलना में कम नहीं हो सकता है जो उससे कनिष्ठ है। यदि इसकी अनुमति दी जाती है तो इससे मनमानी और भेदभाव को बढ़ावा मिलेगा और इसलिए संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत याचिकाकर्ता को सेवा की पूरी अवधि को ध्यान में रखते हुए संरक्षण दिया जाना चाहिए, भले ही उस अवधि के लिए वेतन का बकाया भुगतान न किया गया हो।"

निर्णय

न्यायालय ने एक विशिष्ट निष्कर्ष दर्ज किया कि याचिकाकर्ता को 29.01.2001 को प्रभावी नियुक्ति दी गई थी, लेकिन रिजॉल्‍यूशन ने 27.09.1991 से 29.01.2001 के बीच की अवधि को भविष्य के लाभों, समयमान वेतन, चयन वेतन, एसीपी लाभ आदि के लिए गिने जाने से विशेष रूप से नहीं रोका। इस प्रकार, यह माना गया कि रिजॉल्‍यूशन में यह कथन कि वेतन लाभ आदि स्वीकार्य नहीं होंगे, का अर्थ केवल यह होगा कि याचिकाकर्ता वेतन के बकाये का हकदार नहीं होगा क्योंकि उसने 'कोई काम नहीं, कोई वेतन नहीं' के सिद्धांत के कारण उक्त अवधि के दौरान काम नहीं किया था।

न्यायालय ने माना कि पूर्वव्यापी प्रभाव से निष्पादित नियमितीकरण का अर्थ है कि याचिकाकर्ता भविष्य के वेतनमान और एसीपी लाभ, समयमान लाभ और चयन ग्रेड लाभ जैसे अन्य सेवा लाभों के लिए पात्र था।

तदनुसार, न्यायालय ने विवादित संकल्प को रद्द कर दिया। संबंधित प्राधिकरण को निर्देश दिया गया कि वह समाधान के कारण बकाया राशि का भुगतान करे, अन्यथा 12% ब्याज देना होगा, तथा यदि पेंशन दी जा रही है तो उसके अनुसार पुनर्गणना की जाए, क्योंकि याचिकाकर्ता पहले ही सेवानिवृत्त हो चुका है।

केस टाइटल: अनवर अहमद सिद्दीकी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य [रिट - ए संख्या - 50923/2008]

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