सरकारी अधिकारियों की लालफीताशाही का क्लासिक उदाहरण: इलाहाबाद हाइकोर्ट ने मंदिरों को बकाया राशि का भुगतान न करने पर यूपी सरकार को फटकार लगाई
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने बुधवार को एक बार फिर राज्य सरकार को पिछले चार वर्षों से वृंदावन में ठाकुर रंगजी महाराज विराजमान मंदिर और आठ अन्य मंदिरों की वार्षिकी रोके रखने के लिए फटकार लगाई। न्यायालय ने इसे सरकारी अधिकारियों की लालफीताशाही का क्लासिक उदाहरण भी कहा।
यह टिप्पणी एकल न्यायाधीश ने वृंदावन में ठाकुर रंगजी महाराज विराजमान मंदिर द्वारा दायर याचिका पर विचार करते हुए की, जिसमें मथुरा के जिला मजिस्ट्रेट और उसके वरिष्ठ कोषागार अधिकारी से यूपी जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम की धारा 99 के तहत वार्षिकी जारी करने की मांग की गई।
मामले की पिछली सुनवाई पर एकल न्यायाधीश ने उत्तर प्रदेश राजस्व परिषद के आयुक्त/सचिव को न्यायालय में तलब कर यह स्पष्ट करने को कहा था कि वृंदावन के मंदिरों की वार्षिकी पिछले चार वर्षों से क्यों रोकी गई।
न्यायालय के आदेश के अनुपालन में बुधवार को न्यायालय में उपस्थित हुए संबंधित अधिकारी (एसवीएस रंगा राव) ने दलील दी कि चूंकि मथुरा के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा वृंदावन के नौ मंदिरों को दी जाने वाली वार्षिकी के संबंध में कोई मांग नहीं की गई, इसलिए बकाया राशि हस्तांतरित नहीं की जा सकती।
पीठ को यह भी बताया गया कि जब पहली बार मथुरा के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा वार्षिकी की मांग करते हुए पत्र भेजा गया तो मामला मुख्य सचिव के समक्ष रखा गया। इसके तहत भुगतान के लिए आवश्यक मंजूरी दी गई।
उन्होंने आगे दलील दी कि शेष 6,89,308 रुपये की राशि मंदिरों के खातों में ट्रांसफर कर दी जाएगी। संबंधित अधिकारी से बातचीत करने और एडिशनल एडवोकेट जनरल तथा चीफ गवर्मेंट वकील जेएन सिंह की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा कि मथुरा के जिला मजिस्ट्रेट ने वार्षिकी के लिए पहली बार पत्र भेजा है, इसलिए बकाया राशि ट्रांसफर नहीं की जा सकती।
पीठ ने कहा कि जब पहली बार मथुरा के जिला मजिस्ट्रेट ने वार्षिकी के लिए पत्र भेजा है तो मामला मुख्य सचिव के समक्ष रखा गया, जिसके तहत भुगतान के लिए आवश्यक मंजूरी दी गई। उन्होंने आगे दलील दी कि शेष 6,89,308 रुपये की राशि मंदिरों के खातों में ट्रांसफर कर दी जाएगी।
मौर्य की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश राजस्व एवं वन अधिकारिता अधिनियम की धारा 99 के अनुसार विभिन्न मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों और ट्रस्टों को वार्षिकी का भुगतान किया जाना है, जिसके लिए संबंधित जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सरकार से प्रतिवर्ष मांग की जाती है और आयुक्त/सचिव, राजस्व परिषद द्वारा राशि स्वीकृत किए जाने के बाद उक्त राशि ट्रांसफर कर दी जाती है।
हालांकि वार्षिकी जारी करने की थकाऊ प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने कहा कि डिजिटल प्रौद्योगिकी के युग में बिना किसी कागजी कार्रवाई की आवश्यकता के मंदिरों को राशि हस्तांतरित कर दी जानी चाहिए।
न्यायालय ने टिप्पणी की,
यदि वर्तमान समय की सरकार इसे उचित समझती है तो उसे उन सभी संस्थानों/मंदिरों/ट्रस्टों के बैंक खाते मंगाने चाहिए, जिन्हें धारा 99 (यूपीजेडएएलआर अधिनियम) के तहत वार्षिकी देय है। इसे राज्य सरकार के पास पंजीकृत किया जाना चाहिए।"
हालांकि, यह देखते हुए कि मामला पहले से ही राज्य के मुख्यमंत्री के समक्ष है, जो इस मामले में आवश्यक कार्रवाई करेंगे, न्यायालय ने मामले को तीन सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया, जिस तिथि पर याचिकाकर्ता के वकील को न्यायालय को यह बताने के लिए कहा गया कि वार्षिकी प्राप्त हुई है या नहीं।
मंदिर की ओर से वकील- देवांश मिश्रा उपस्थित हुए
केस टाइटल - ठाकुर रंगजी महाराज विराजमान मंदिर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 3 अन्य