'यूपी सरकार पाप कर रही है' : बांके बिहारी मंदिर अध्यादेश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार (6 अगस्त) को वृंदावन (मथुरा) स्थित ऐतिहासिक बांके बिहारी मंदिर की देखरेख के लिए यूपी सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश की कड़ी आलोचना जारी रखी और कहा कि सरकार "पाप" कर रही है।
यह टिप्पणी उस समय आई है जब दो दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने भी बांके बिहारी मंदिर का प्रबंधन अपने हाथ में लेने के लिए अध्यादेश लाने में यूपी सरकार की "अत्यधिक जल्दी" पर सवाल उठाया था।
जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने आज मौखिक रूप से तीखी टिप्पणी करते हुए राज्य सरकार से कहा कि वह मंदिर प्रबंधन को कानूनी तरीकों से नियंत्रित करने की कोशिश न करे और मंदिर को “अकेला छोड़ दे”।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर इसी तरह का प्रयास किसी अन्य धर्म में किया जाता, तो परिणाम अलग होते। कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में कहा:
"किसी और धर्म में (देवता का) पैसा ले लीजिए, हंगामा हो जाएगा।"
कोर्ट ने इस कदम के पीछे नौकरशाही मंशा पर भी सवाल उठाया और कहा:
"IAS अफसरों को पैसा खाना है... आपके यहां एक रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट हैं जो पीछे पड़े हैं... 3-4 ब्यूरोक्रेट्स हैं जो ये सब करना चाह रहे हैं।"
तमिलनाडु का उदाहरण देते हुए कोर्ट ने कहा कि वहां करीब 40,000 मंदिरों में रिसीवर नियुक्त किए गए हैं और IAS अधिकारी सारा पैसा ले रहे हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि मंदिर ट्रस्टों में आचार्य और शंकराचार्य होने चाहिए, न कि राज्य के अधिकारी।
मंदिर प्रबंधन में भारी धनराशि की ओर इशारा करते हुए कोर्ट ने कहा: "मथुरा में हर वकील रिसीवर बनने को तैयार है, क्योंकि इसमें बहुत पैसा है।"
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मंदिर का चढ़ावा देवता का होता है और उस पर राज्य का कोई अधिकार नहीं है।
जस्टिस अग्रवाल ने सरकार को चेताया कि ऐसा कदम खतरनाक मिसाल बनेगा:
"आप मंदिर टेकओवर का रास्ता बना देंगे, आगे आपका मंदिर चला जाएगा... कर्म वापस आएगा और सता देगा। स्कूल, शिक्षा, अस्पताल सुधारिए, वहां ध्यान नहीं है, मंदिरों में अध्यादेश ला रहे हैं।"
वहीं उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से एडिसनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने दलील दी:
"यह अध्यादेश मंदिर के बेहतर प्रशासन जैसे धर्मनिरपेक्ष उद्देश्यों के लिए लाया गया है और जल्द ही विधानसभा में पारित होगा... यह मंदिर ऐतिहासिक है... रोज़ाना 20,000-30,000 भक्त आते हैं... वीकेंड पर 2-3 लाख तक... बेहतर सुविधाएं और फंड के दुरुपयोग को रोकने की आवश्यकता है... इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर सरकार ने यह कदम उठाया है।"