राज्य मशीनरी को ब्लैकमेलिंग और असामाजिक कृत्यों में शामिल पत्रकारों का लाइसेंस रद्द करना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-06-13 05:31 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि राज्य मशीनरी को उन पत्रकारों के लाइसेंस रद्द कर देने चाहिए जो अपने लाइसेंस की आड़ में आम आदमी को ब्लैकमेल करने जैसी असामाजिक गतिविधियों में शामिल हैं।

जस्टिस शमीम अहमद की पीठ ने दो व्यक्तियों, एक पत्रकार और एक समाचार पत्र वितरक के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की, जो धारा 384/352/504/505 आईपीसी, 3(2)(वीए), और 3(1)(एस) एससी/एसटी अधिनियम के तहत मामले का सामना कर रहे हैं।

यह आरोप लगाया गया था कि आवेदक निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ समाचार पत्रों में तस्वीरें लेने और सामग्री छापने के माध्यम से आम आदमी को ब्लैकमेल करने में शामिल थे। आरोपियों की ओर से पेश हुए वकील ने प्रस्तुत किया कि उन्हें मामले में झूठा फंसाया गया था और आरोप पत्र भी उचित जांच के बिना दायर किया गया था।

यह तर्क दिया गया कि पुलिस ने नियमित रूप से काम किया और मजिस्ट्रेट ने संज्ञान और समन आदेश पारित करते समय अपने न्यायिक दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया। न्यायालय को अवगत कराया गया कि आरोपीगण को इस मामले में फंसाया गया है, क्योंकि उन्होंने अखबार में प्रतिबंधित हरे पेड़ को काटने के बारे में एक लेख दिखाया था।

दूसरी ओर, राज्य की ओर से उपस्थित जी.ए. तथा अपर महाधिवक्ता ने प्रस्तुत किया कि पूरे राज्य में एक गिरोह सक्रिय है, जिसमें पत्रकार शामिल हैं। यह गिरोह समाचार पत्रों में आम आदमी के खिलाफ सामग्री छापने तथा समाज में उनकी छवि खराब करने की आड़ में आम आदमी को ब्लैकमेल कर आर्थिक लाभ तथा अन्य लाभ प्राप्त करने जैसी असामाजिक गतिविधियों में संलिप्त है। प्रस्तुत किया गया कि यह ऐसे ही मामलों में से एक है।

पक्षकारों के अधिवक्ताओं द्वारा प्रस्तुत तर्कों पर विचार करने तथा अभिलेख का अवलोकन करने के बाद न्यायालय ने कहा कि आवेदकों के विरुद्ध दायर किया गया समन आदेश, आरोप पत्र तथा संज्ञान आदेश “पूर्णतया न्यायसंगत तथा विधिक” है।

न्यायालय ने कहा कि प्रथम दृष्टया आवेदकों के विरुद्ध आई.पी.सी. की धाराओं के तहत और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के संज्ञेय अपराध बनता है

कोर्ट ने कहा, “मामला बहुत गंभीर है और राज्य मशीनरी को इसका संज्ञान लेना चाहिए और ऐसे पत्रकारों का लाइसेंस रद्द करना चाहिए, अगर वे अपने लाइसेंस की आड़ में इस तरह की असामाजिक गतिविधियों में काम करते पाए जाते हैं। राज्य सरकार के पास ऐसी मशीनरी है जो इस तरह की गतिविधियों को रोकने में सक्षम है, अगर मामला सही पाया जाता है।”

इसके अलावा, कोर्ट ने नोट किया कि आवेदक, जिन्होंने अखबार के पत्रकार होने का दावा किया था, वे कोई ऐसा दस्तावेज नहीं दिखा सके जिससे साबित हो कि उन्हें अखबार (स्वतंत्र भारत) द्वारा मान्यता प्राप्त है। कोर्ट के पूछने के बाद भी आवेदक और वकील ऐसा कोई कागज दिखाने में विफल रहे।

इसे देखते हुए, कोर्ट ने कहा कि मामले में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है; इसलिए, उनकी याचिका खारिज की जाती है।

केस टाइटलः पुनीत मिश्रा उर्फ ​​पुनीत कुमार मिश्रा और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के माध्यम से अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह लखनऊ और अन्य 2024 लाइवलॉ (एबी) 389

केस साइटेशन: 2024 लाइवलॉ (एबी) 389

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