2009 में आरोप पत्र जारी, 15 साल तक कोई जांच नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुशासनात्मक कार्यवाही समाप्त की

Update: 2025-01-09 10:05 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कर्मचारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही समाप्त की, जिसमें 2009 में आरोप पत्र जारी किया गया था और तब से कोई कार्रवाई नहीं की गई।

याचिकाकर्ता ग्राम पंचायत अधिकारी था। यद्यपि वह 31.12.2009 को रिटायर होने वाला था, लेकिन उसके खिलाफ लंबित जांच के कारण उसे 29.12.2009 को निलंबित कर दिया गया था।

उसे 29.12.2009 को आरोप पत्र दिया गया। उसकी रिटायरमेंट के बाद रिटायरमेंट के बाद की देय राशि रोक दी गई और उसके खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही के संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई।

याचिकाकर्ता ने रिटायरमेंट बकाया राशि के भुगतान और अनुशासनात्मक कार्यवाही के समापन की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

न्यायालय ने पाया कि जिला पंचायत राज अधिकारी, गाजीपुर अपने व्यक्तिगत हलफनामे में अनुशासनात्मक कार्यवाही समाप्त होने में 15 वर्ष की देरी के कारणों की व्याख्या नहीं कर सके। यह देखा गया कि एक अन्य रिट याचिका में, 2012 में अनुपालन हलफनामा दायर किया गया, जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता को लगभग संपूर्ण अनंतिम पेंशन और GPF का भुगतान किया गया था। यह नोट किया गया कि अनुशासनात्मक कार्यवाही अभी भी लंबित है।

राज्य ए.पी. बनाम एन. राधाकिशन में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि एक कर्मचारी अपने खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के शीघ्र निपटान का हकदार है।

यह माना गया कि न्यायालय को कर्मचारी और नियोक्ता द्वारा अनुशासनात्मक कार्यवाही में देरी के बीच संतुलन बनाना चाहिए। इसने माना कि देरी न्याय को पराजित करती है।

जस्टिस नीरज तिवारी ने कहा,

“वर्तमान मामले में जस्टिस नीरज तिवारी को यह स्पष्टीकरण देना होगा कि 15 वर्ष पूरे होने के बाद भी विभागीय कार्यवाही क्यों समाप्त नहीं हुई। इसलिए मामले के तथ्यों के अनुसार 29.12.2009 को याचिकाकर्ता को आरोप पत्र सौंपे जाने के बाद भी आज तक विभागीय कार्यवाही पूरी नहीं हुई। इसलिए न्यायालय के पास प्रतिवादी-अधिकारियों को 29.12.2009 के आरोप पत्र के अनुसार विभागीय कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देने का कोई कारण नहीं है। तदनुसार, विभागीय कार्यवाही समाप्त मानी जाती है।”

यह निर्देश दिया गया कि याचिकाकर्ता को उसकी सेवानिवृत्ति की तिथि अर्थात 31.12.2009 से सेवानिवृत्ति के बाद की पूरी बकाया राशि का भुगतान किया जाए। साथ ही बकाया राशि के भुगतान की तिथि से लेकर भुगतान की वास्तविक तिथि तक 6% ब्याज भी दिया जाए।

इसके अलावा न्यायालय ने निर्देश दिया कि यदि बकाया राशि 4 महीने में चुकाई नहीं जाती है, तो 12% ब्याज दर लागू होगी।

टाइटल: राम बलि राम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य 2025 लाइव लॉ (एबी) 7 [रिट - ए संख्या - 14564/2024]

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