राज्य चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद भी भर्ती के लिए 'योग्यता की समतुल्यता' स्पष्ट कर सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-09-11 04:29 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि राज्य सरकार चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद भी किसी पद पर भर्ती के लिए 'योग्यता की समतुल्यता' के संबंध में अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए सक्षम है।

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के स्वायत्तशासी संस्थान इविंग क्रिश्चियन कॉलेज, इलाहाबाद द्वारा जारी कंप्यूटर एप्लीकेशन में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा (PGDCA) की योग्यता की स्थिति के मुद्दे पर विचार करते हुए जस्टिस अजीत कुमार ने कहा,

"यह सच है कि विज्ञापन द्वारा चयन प्रक्रिया प्रभावी होने के बाद खेल के नियम नहीं बदले जा सकते। ऐसी परिस्थितियां हो सकती हैं, जहां ऐसी योग्यता रखने वाले कई उम्मीदवारों ने आवेदन नहीं किया हो। हालांकि, मेरे विचार से जैसा कि मैंने पहले ही अपने निर्णय में कहा है, राज्य सरकार द्वारा चयन प्रक्रिया जारी रहने के दौरान हमेशा स्पष्टीकरण दिया जा सकता है।"

याचिकाकर्ता ने इविंग क्रिश्चियन कॉलेज द्वारा जारी PGDCA का सर्टिफिकेट प्रस्तुत करते हुए अपेक्षित योग्यता के साथ उत्तर प्रदेश सचिवालय में समीक्षा अधिकारी और सहायक समीक्षा अधिकारी के पद पर चयन के लिए आवेदन किया। हालांकि, उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग (UPPSC) ने उनकी उम्मीदवारी इस आधार पर खारिज कर दी कि ऐसे सर्टिफिकेट को इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कंप्यूटर पाठ्यक्रम प्रत्यायन विभाग ('DOEACC सोसाइटी') द्वारा जारी 'O' स्तर के सर्टिफिकेट के समकक्ष नहीं माना जा सकता।

याचिकाकर्ता के वकील ने राज्य सरकार द्वारा जारी दिनांक 20.10.2023 का सर्कुलर प्रस्तुत किया, जिसमें सहायक समीक्षा अधिकारी के पद के लिए कुछ यूनिवर्सिटी द्वारा जारी सर्टिफिकेट को 'O' स्तर के प्रमाणपत्र के समकक्ष माना गया। इस सूची में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का भी उल्लेख है।

यह भी तर्क दिया गया कि प्राथमिक नियोक्ता होने के नाते भर्ती संबंधी नियम बनाने का अधिकार राज्य सरकार के पास है, न कि UPPSC के पास और यदि योग्यता की समतुल्यता के संबंध में कोई संदेह है तो UPPSC को मामला राज्य सरकार को भेजना होगा।

हालांकि, UPPSC के वकील ने तर्क दिया कि चयन प्रक्रिया को अंतिम रूप दे दिया गया और मेरिट सूची बंद कर दी गई। इसलिए 2016 के चयन की मेरिट सूची को फिर से खोलना न्यायसंगत नहीं होगा।

विकास एवं 80 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 2 अन्य तथा अन्य संबंधित मामलों में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह निर्णय दिया कि न्यायालयों को भर्ती नीति के लिए योग्यताएं निर्धारित करने से बचना चाहिए, क्योंकि यह नियोक्ता के अनन्य अधिकार क्षेत्र में है। न्यायालय ने आगे कहा कि न्यायालय योग्यता की समतुल्यता के मुद्दे में तभी हस्तक्षेप कर सकता है, जब भर्ती प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले नियमों में इसका स्पष्ट रूप से प्रावधान किया गया हो, अन्यथा नहीं।

जस्टिस कुमार ने कहा कि नियमों और विज्ञापन में यह प्रावधान है कि उम्मीदवार के पास DOEACC सोसाइटी द्वारा जारी 'O' स्तर का प्रमाणपत्र या समकक्ष योग्यता या प्रमाण पत्र होना चाहिए। इसलिए यह मामला राज्य सरकार के अनन्य अधिकार क्षेत्र में आता है, न कि UPPSC के, जैसा कि याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज करते समय दावा किया गया था।

चूंकि राज्य सरकार ने स्पष्ट किया कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी द्वारा जारी 'O' स्तर का प्रमाणपत्र भर्ती के लिए आवश्यक PGDCA प्रमाणपत्र के समकक्ष है, इसलिए न्यायालय ने यह माना कि उसके स्वायत्त घटक संस्थान द्वारा जारी प्रमाणपत्र भर्ती के लिए आवश्यक 'O' स्तर के प्रमाणपत्र के समकक्ष होगा और UPPSC को इस आधार पर उम्मीदवारी को अस्वीकार करने का कोई अधिकार नहीं है।

आगे कहा गया,

“चूंकि योग्यता की समतुल्यता के संबंध में अपनी स्थिति स्पष्ट करना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है, खासकर जब नियमों और विज्ञापन में समतुल्य योग्यता लागू करने का प्रावधान किया गया हो। इसलिए मुझे इसमें कुछ भी गलत या अन्यथा अवैध नहीं लगता अगर राज्य सरकार द्वारा जारी यह स्पष्टीकरण चल रहे चयन/अंतिम चयन सूची की तैयारी के चरण पर लागू किया जाता है।”

तदनुसार, रिट याचिका को इस निर्देश के साथ स्वीकार कर लिया गया कि उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग AoR के पद के लिए याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी को योग्यता के आधार पर माने।

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