शादी का झूठा वादा करके महिलाओं का यौन शोषण एक बढ़ती हुई प्रवृत्ति, इसे शुरुआत में ही खत्म किया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-12-25 12:42 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि शादी का झूठा वादा करके महिलाओं का यौन शोषण करने और बाद में शादी से इनकार करने की प्रवृत्ति समाज में बढ़ रही है, जिसे शुरुआत में ही खत्म किया जाना चाहिए।

यह टिप्पणी जस्टिस नलिन कुमार श्रीवास्तव की बेंच ने की, जिन्होंने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की विभिन्न धाराओं, जिसमें धारा 69 (धोखे से यौन संबंध बनाना आदि) भी शामिल है, उसके तहत आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज की।

संक्षेप में मामला

आरोपी प्रशांत पाल पर पीड़िता के साथ शादी का झूठा वादा करके शारीरिक संबंध बनाने और उसे शारीरिक और मानसिक यातना देने का आरोप है।

आरोप है कि 5 साल के रिश्ते के बावजूद, आरोपी ने बाद में उससे शादी करने से इनकार कर दिया और उसने दूसरी महिला से सगाई कर ली।

गिरफ्तारी से सुरक्षा पाने के लिए आवेदक ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उसके वकील ने तर्क दिया कि आरोप अस्पष्ट और झूठे हैं। यह तर्क दिया गया कि दोनों बालिग हैं और 2020 से सहमति से रिश्ते में साथ रह रहे हैं, लेकिन उसने कभी भी उससे शादी का कोई वादा नहीं किया।

यह भी कहा गया कि लंबे रिश्ते के बाद सिर्फ शादी से इनकार करना अपराध नहीं है।

दूसरी ओर, राज्य के AGA ने उसकी याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि शादी के झूठे बहाने से आरोपी आवेदक ने पांच साल तक पीड़िता के साथ यौन संबंध बनाए रखे।

यह भी कहा गया कि मेडिकल जांच में पीड़िता के यौन हिंसा के बयान की पुष्टि हुई और आरोपी पीड़िता को अश्लील वीडियो से भी धमकी दे रहा था।

इन दलीलों के आधार पर हाईकोर्ट ने कई सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि किसी वादे को झूठा मानने के लिए वादा करने वाले का वादा करते समय उसे पूरा करने का कोई इरादा नहीं होना चाहिए।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों से यह भी पाया कि अगर इरादा महिला को धोखा देकर यौन संबंध बनाने के लिए राजी करना था तो यह "तथ्य की गलतफहमी" है जो महिला की सहमति को अमान्य कर देती है।

वर्तमान मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए कोर्ट ने पाया कि आरोपी का आचरण झूठे वादे के दायरे में आता है।

कोर्ट ने कहा,

"मौजूदा मामले में मामले के तथ्यों से पता चलता है कि आरोपी एप्लीकेंट का केस की पीड़िता के प्रति धोखे का इरादा शुरू से ही था। शुरू से ही उसका पीड़िता से शादी करने का कोई इरादा नहीं था और वह सिर्फ़ अपनी हवस पूरी कर रहा था।"

कोर्ट ने अपराध की प्रकृति पर गहरी चिंता व्यक्त की, इसे "समाज के खिलाफ गंभीर" बताया। आपसी सहमति वाले रिश्ते के बचाव को खारिज करते हुए बेंच ने टिप्पणी की:

"शादी के झूठे वादे पर उसने पीड़िता के साथ बार-बार शारीरिक संबंध बनाए। शादी के बहाने पीड़िता का शोषण करना और आखिर में उससे शादी करने से इनकार करना, ये ऐसी प्रवृत्तियां हैं, जो समाज में बढ़ रही हैं, जिन्हें शुरू में ही खत्म कर देना चाहिए। यह समाज के खिलाफ एक गंभीर अपराध है, इसलिए एप्लीकेंट किसी भी रियायत का हकदार नहीं है।"

कोर्ट ने आगे कहा कि हालांकि पीड़िता बालिग थी और आरोपी के साथ किए जा रहे काम के नतीजों से वाकिफ थी, लेकिन उसने उस पर पूरी तरह से विश्वास किया और भरोसा किया।

हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि दूसरी ओर, रिश्ते की शुरुआत से ही आरोपी एप्लीकेंट का उससे शादी करने का कोई इरादा नहीं था।

नतीजतन, अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी गई।

Case title - Prashant Pal vs State of Uttar Pradesh

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