आपराधिक मामले में मेरठ एमएलए के खिलाफ 100+ NBW का निष्पादन न करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, 'खतरनाक मिसाल कायम की'

Update: 2024-05-07 06:13 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते 1995 के मामले में मेरठ के विधायक रफीक अंसारी को राहत देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने उक्त आदेश यह देखते हुए दिया कि समाजवादी पार्टी (SP) के नेता 1997 और 2015 के बीच 100 से अधिक गैर-जमानती वारंट जारी होने के बावजूद अदालत में पेश होने में विफल रहे।

जस्टिस संजय कुमार सिंह की पीठ ने कहा,

"मौजूदा विधायक के खिलाफ गैर-जमानती वारंट का निष्पादन न करना और उन्हें विधानसभा सत्र में भाग लेने की अनुमति देना एक खतरनाक और गंभीर मिसाल कायम करता है।"

न्यायालय ने कहा कि गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे व्यक्तियों को कानूनी जवाबदेही से बचने की अनुमति देकर हम "कानून के शासन के प्रति दंडमुक्ति और अनादर की संस्कृति को कायम रखने का जोखिम उठाते हैं।"

अदालत ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, एमपी/एमएलए, मेरठ की अदालत में लंबित आईपीसी की धारा 147, 436 और 427 के तहत आपराधिक मामले से संबंधित अंसारी की रद्द करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की।

मामला संक्षेप में

इस मामले में उपरोक्त धाराओं के तहत अपराध के लिए 35-40 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ सितंबर 1995 में एफआईआर दर्ज की गई।

जांच पूरी होने के बाद 22 आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ पहला आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया। उसके बाद आवेदक अंसारी के खिलाफ एक और पूरक आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया, जिस पर संबंधित अदालत ने अगस्त 1997 में संज्ञान लिया।

अंसारी अदालत के सामने पेश नहीं हुए, इसलिए 12 दिसंबर 1997 को गैर-जमानती वारंट जारी किया गया। बाद में बार-बार गैर-जमानती वारंट (संख्या में 101) और धारा 82 सीआरपीसी के तहत प्रक्रियाओं के बावजूद, आवेदक अदालत के सामने पेश नहीं हुआ।

मामले रद्द करने की मांग करते हुए अंसारी ने हाईकोर्ट का रुख किया, जहां उनके वकील ने तर्क दिया कि मामले में मूल रूप से आरोपित 22 आरोपियों को 15.05.1997 के फैसले और आदेश के तहत मुकदमे का सामना करने के बाद बरी कर दिया गया। इसलिए उनके खिलाफ कार्यवाही रद्द की जानी चाहिए।

अदालत ने कहा कि किसी भी आरोपी के खिलाफ आपराधिक मुकदमे में दर्ज किए गए सबूत केवल उस आरोपी की दोषीता तक ही सीमित हैं। इसका सह-आरोपी पर कोई असर नहीं पड़ता है, जिस पर अलग से मुकदमा चलाया गया, या किया जाएगा।

इस प्रकार, न्यायालय ने पाया कि सह-अभियुक्तों द्वारा बरी किए जाने को प्रासंगिक परिस्थितियों और सीआरपीसी की धारा 482 के तहत उन अभियुक्तों के खिलाफ कार्यवाही रद्द करने की शक्ति का प्रयोग करने का आधार नहीं माना जा सकता, जिन्होंने मुकदमे का सामना नहीं किया।

ट्रायल कोर्ट की ऑर्डर शीट पर गौर करते हुए कोर्ट ने आगे कहा कि उसके खिलाफ सीआरपीसी की धारा 82 और 83 के तहत 13 एनबीडब्ल्यू और 89 एनबीडब्ल्यू और प्रक्रियाएं जारी की गईं।

इसके बाद उनके खिलाफ 21 गैर-जमानती वारंट और प्रक्रियाएं जारी की गईं (अप्रैल 2022 और फरवरी 2024 के बीच)। इसके बावजूद, वह अदालत में पेश होने में विफल रहे।

मामले के अजीबोगरीब तथ्यों के तहत अदालत ने कहा कि वह अपनी आंखें बंद नहीं कर सकती और मूक दर्शक बनी रह सकती है।

यह राय देते हुए कि कानून को लागू करने के लिए जनता के बीच चयनात्मक व्यवहार नहीं होना चाहिए, न्यायालय ने इस प्रकार टिप्पणी की:

“मौजूदा विधायक के खिलाफ गैर-जमानती वारंट का निष्पादन न करना और उन्हें विधानसभा सत्र में भाग लेने की अनुमति देना खतरनाक और गंभीर मिसाल कायम करता है, जो निर्वाचित प्रतिनिधियों में जनता के विश्वास को खत्म करते हुए राज्य मशीनरी और न्यायिक प्रणाली की अखंडता को कमजोर करता है। संबोधित करने में विफलता ऐसा मुद्दा न केवल लोकतंत्र के सिद्धांतों से समझौता करता है, बल्कि समाज के ताने-बाने को भी खतरे में डालता है, जिससे भ्रष्टाचार और अराजकता का चक्र कायम रहता है। यह जरूरी है कि निर्वाचित अधिकारी नैतिक आचरण और जवाबदेही के उच्चतम मानकों को बनाए रखें, ऐसा न हो कि वे जनता की भलाई की सेवा करने के अपने जनादेश के सार के साथ विश्वासघात करें।

इस पृष्ठभूमि में अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी और निर्देश दिया कि उसके आदेश की कॉपी राज्य विधानसभा स्पीकर के समक्ष जानकारी के लिए रखने के लिए यूपी विधानसभा के प्रमुख सचिव को भेजी जाए।

न्यायालय ने यूपी राज्य के पुलिस महानिदेशक को यह भी निर्देश दिया कि वह अंसारी के खिलाफ ट्रायल कोर्ट द्वारा पहले ही जारी किए गए गैर-जमानती वारंट की तामील सुनिश्चित करें, यदि वह अभी तक तामील नहीं हुआ है और अगली तारीख पर अनुपालन हलफनामा दायर किया जाएगा।

अनुपालन हलफनामा दाखिल करने के सीमित उद्देश्य के लिए मामले को 22 जुलाई के लिए सूचीबद्ध किया गया।

केस टाइटल- रफीक अंसारी बनाम यूपी राज्य और अन्य लाइव लॉ (एबी) 286/2024 [आवेदन यू/एस 482 नंबर- 8390/2024]

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