विवादित तथ्यों वाले मामलों में हाईकोर्ट सबूतों की जांच कर ट्रायल खत्म नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-08-26 06:50 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब किसी मामले में विवादित तथ्य शामिल हों तो अदालत भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का उपयोग कर सबूतों की जांच करते हुए मुकदमे को समाप्त नहीं कर सकती। ऐसे मामलों का निपटारा ट्रायल कोर्ट द्वारा ही किया जाना चाहिए।

जस्टिस दीपक वर्मा की पीठ ने कहा,

"यह सर्वविदित है कि साक्ष्यों का मूल्यांकन ट्रायल कोर्ट का कार्य है। यह अदालत CrPC की धारा 482 के तहत इस अधिकार का प्रयोग कर ट्रायल प्रक्रिया को समाप्त नहीं कर सकती।"

मामले में याचिकाकर्ताओं ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराओं 147, 148, 149, 506, 307, 120-बी के तहत दर्ज आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी।

उनका कहना था कि मामला पुरानी रंजिश का परिणाम है और धारा 307 (हत्या का प्रयास) के तहत कोई मामला नहीं बनता। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि उन्हें मिली जमानत का दुरुपयोग नहीं किया गया।

अदालत ने कहा कि CrPC की धारा 482 के तहत ट्रायल से पहले दायर याचिकाओं को सामान्य रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसका इस्तेमाल केवल उन्हीं मामलों में होना चाहिए, जहां मामला दर्ज करने या मुकदमे को जारी रखने पर स्पष्ट कानूनी रोक हो या जहां FIR और चार्जशीट में लगाए गए आरोप अपने पूरे रूप में किसी अपराध का संकेत न देते हों।

कोर्ट ने माना कि FIR में हथियारों के इस्तेमाल और हत्या की नीयत का उल्लेख है तथा गवाहों के बयान भी आरोपों का प्रथम दृष्टया समर्थन करते हैं। ऐसे में आपराधिक कार्यवाही रद्द नहीं की जा सकती।

अदालत ने जिला कोर्ट के वकील-याचिकाकर्ता को तीन हफ्तों का समय दिया कि वह ट्रायल कोर्ट में आत्मसमर्पण करें और इस अवधि तक उनके खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई न हो।

केस टाइटल: हरेंद्र बंसल एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

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