अगर आरोप अलग हों तो दूसरी FIR पर रोक नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-10-30 11:10 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'दूसरी FIR' (Second FIR) पर लगी रोक को स्पष्ट करते हुए कहा कि यदि बाद में दर्ज की गई FIR नए और अलग अपराधों पर आधारित हो तथा नए तथ्य उजागर करती हो, तो उसे दर्ज करने पर कोई कानूनी रोक नहीं है।

जस्टिस चंद्र धारी सिंह और जस्टिस लक्ष्मी कांत शुक्ला की खंडपीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के T.T. Antony बनाम स्टेट ऑफ केरल (2001) फैसले में एक ही घटना या लेनदेन पर दूसरी FIR दर्ज करने पर प्रतिबंध लगाया गया था, लेकिन जब नई FIR किसी भिन्न घटना, नई साजिश या नए तथ्यों से जुड़ी हो, तो यह रोक लागू नहीं होती।

कोर्ट ने कहा कि “समानता का नियम” (Rule of Sameness) को व्यावहारिक रूप से देखा जाना चाहिए। यदि दूसरी FIR का उद्देश्य, दायरा और अपराधों की प्रकृति पहली FIR से अलग हैं, तो दूसरी FIR पर रोक नहीं लगती।

इस मामले में याचिकाकर्ताओं पर आरोप था कि उन्होंने फर्जी दस्तावेज, नकली हस्ताक्षर और जाली नोटरी सील का उपयोग कर खुद को 2019 की निवेश ठगी से संबंधित जांच से बचाने की कोशिश की। शिकायतकर्ता के आवेदन पर मजिस्ट्रेट ने धारा 156(3) CrPC के तहत 2024 में FIR दर्ज करने का निर्देश दिया था।

याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह 2024 की FIR 2021 की FIR के समान तथ्यों पर आधारित है, इसलिए यह दूसरी FIR के रूप में अवैध है। वहीं, शिकायतकर्ता की ओर से कहा गया कि नई FIR में बाद की गई जालसाजी और न्यायिक कार्यवाही के दौरान इस्तेमाल किए गए फर्जी दस्तावेजों का मामला है, जो एक नया अपराध है।

कोर्ट ने पाया कि 2021 की FIR 2019 में हुई निवेश ठगी से संबंधित थी, जबकि 2024 की FIR जालसाजी, फर्जी दस्तावेजों के निर्माण और उनके उपयोग से संबंधित थी। दोनों के दायरे, अवधि और अपराधों की प्रकृति अलग-अलग हैं, इसलिए “समानता की कसौटी” (test of sameness) लागू नहीं होती।

कोर्ट ने कहा, “यदि नई FIR अलग और नए तथ्यों पर आधारित संज्ञेय अपराधों का खुलासा करती है, तो यह नहीं कहा जा सकता कि दूसरी FIR पर रोक है।”

चूंकि 2024 की FIR मजिस्ट्रेट के आदेश पर दर्ज हुई थी और पर्याप्त आधार मौजूद था, इसलिए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की रिट याचिका खारिज कर दी।

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