[S. 3(3) Of Interest Act, 1978] ब्याज केवल मूल राशि पर देय, न्यायालय द्वारा दिए गए ब्याज पर नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि ब्याज अधिनियम, 1978 (Interest Act) की धारा 3(3) के तहत ब्याज अवार्ड पर ब्याज नहीं लगाया जा सकता, यह केवल मूल राशि पर देय है।
प्रतिवादी नंबर 3 के वकील बाल मुकुंद ने उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद, इलाहाबाद की देव प्रयागम योजना के तहत एमआईजी 45/75 प्रकार के मकान में रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन किया था। रजिस्ट्रेशन राशि के रूप में 20,000 रुपये जमा किए गए। इसके बाद उन्होंने लॉटरी ड्रा जीता और उन्हें इस शर्त के साथ आवंटन पत्र जारी किया गया कि 31.08.2005 तक 1,92,956/- रुपये जमा किए जाने चाहिए। शेष राशि 2,63,300/- रुपये 13% की दर से ब्याज के साथ 120 मासिक किश्तों में जमा की जानी थी।
बैंक ऋण के लिए उसे अनापत्ति प्रमाण पत्र दिया गया, जिसके बाद याचिकाकर्ता परिषद के पास 4,52,325/- रुपए जमा किए गए। जब प्रतिवादी ने सेल डीड के निष्पादन और कब्जे की डिलीवरी के लिए आवेदन किया तो उसे इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि घर की अंतिम लागत का निर्धारण नहीं किया गया था।
2008 में प्रतिवादी ने धन वापसी और आवंटन रद्द करने के लिए आवेदन किया। कुल जमा राशि 4,72,990/- रुपए उन्हें 04.03.2008 को वापस कर दी गई। तथापि, उन्होंने शिकायत दर्ज कर प्रार्थना की कि याचिकाकर्ताओं को भुगतान की तिथि अर्थात 13.09.2005 से वास्तविक वापसी की तिथि अर्थात 02.05.2008 तक 4,72,990/- रुपए की राशि पर 18% प्रति वर्ष की दर से चक्रवृद्धि ब्याज का भुगतान करने का निर्देश दिया जाए। शिकायत स्वीकार कर ली गई तथा याचिकाकर्ता को 4,72,990/- रुपए पर 15% ब्याज का भुगतान करने का निर्देश दिया गया।
याचिकाकर्ता द्वारा दायर अपील खारिज कर दी गई। निष्पादन कार्यवाही में प्रतिवादी ने 15% ब्याज के रूप में 3,02,821/- रुपए का दावा किया। याचिकाकर्ता ने वसूली कार्यवाही के विरुद्ध पुनरीक्षण दायर किया, जिसे भी खारिज कर दिया गया। इसके पश्चात याचिकाकर्ता ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, नई दिल्ली के समक्ष पुनर्विचार दायर किया, जिसे भी सुनवाई योग्य न मानते हुए खारिज कर दिया गया।
याचिकाकर्ता ने राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग द्वारा संशोधन खारिज किए जाने के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
न्यायालय ने पाया कि सीपीसी की धारा 34 में मूल राशि पर 12% प्रति वर्ष के रूप में अधिकतम ब्याज का प्रावधान है। 1978 के अधिनियम की धारा 3(3) का अवलोकन करते हुए जस्टिस चंद्र कुमार राय ने कहा कि “ब्याज मूल राशि पर देय है, न कि पुरस्कार के ब्याज वाले हिस्से पर।”
न्यायालय ने माना कि एक बार उपभोक्ता फोरम ने 15% प्रति वर्ष का ब्याज देने का आदेश दे दिया तो वसूली प्रमाणपत्र में याचिकाकर्ता पर कोई और ब्याज नहीं लगाया जा सकता।
न्यायालय ने पाया कि डी. खोसला एंड कंपनी बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सी.पी.सी. की धारा 34 और ब्याज अधिनियम की धारा 3(3) को ध्यान में रखते हुए यह माना,
“उपर्युक्त कानूनी प्रावधानों और इस विषय पर केस लॉ के आलोक में यह स्पष्ट है कि सामान्यतः न्यायालयों को ब्याज पर ब्याज नहीं देना चाहिए, सिवाय इसके कि जहां यह विशेष रूप से क़ानून के तहत प्रदान किया गया हो या जहां अनुबंध की शर्तों और नियमों के तहत इस आशय का विशिष्ट प्रावधान हो। किसी दिए गए मामले में क़ानून के तहत या अनुबंध की शर्तों और नियमों के तहत प्रदत्त शक्ति के अधीन ब्याज पर ब्याज या चक्रवृद्धि ब्याज देने की न्यायालयों की शक्ति के बारे में कोई विवाद नहीं है, लेकिन जहां ऐसी कोई शक्ति प्रदान नहीं की जाती है, वहां न्यायालय सामान्यतः ब्याज पर ब्याज नहीं देते हैं।”
तदनुसार, निष्पादन कार्यवाही में जारी किया गया वसूली प्रमाणपत्र और याचिकाकर्ता के पुनर्विचार खारिज करने वाले राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का आदेश रद्द कर दिया गया।
केस टाइटल: उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद एवं अन्य बनाम राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग एवं 2 अन्य [रिट - सी नंबर - 27185/2022]