इलाहाबाद हाइकोर्ट ने निजी पक्षकारों के बीच लंबित मुकदमे को दबाने का हवाला देते हुए विध्वंस आदेश को लागू करने के लिए जनहित याचिका खारिज की, जुर्माना लगाया
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने एक वादी पर 25000 रुपये का जुर्माना लगाया। उक्त वादी ने अपने और निजी पक्षों के बीच लंबित मुकदमे के तथ्य को दबाते हुए जनहित याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी अधिकारियों द्वारा पारित विध्वंस आदेश के अनुपालन की मांग करते हुए जनहित याचिका दायर की। यह दलील दी गई कि विचाराधीन भूमि पार्क था, जहां निजी प्रतिवादियों द्वारा निर्माण किया गया। याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि भले ही विध्वंस आदेश पारित किया गया, लेकिन इसे बहुत लंबे समय तक लागू नहीं किया गया।
निजी प्रतिवादियों ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि विचाराधीन भूमि उनके नाम पर दर्ज है और भूमि के लिए उनके नाम दर्ज किए जाने के खिलाफ याचिकाकर्ता द्वारा दायर अपील को डिप्टी कलेक्टर ने खारिज कर दिया। डिप्टी कलेक्टर के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार को भी आयुक्त ने खारिज कर दिया।
प्रस्तुत किया गया कि आयुक्त के आदेश के विरुद्ध रिट याचिका भी दायर की गई, जो हाइकोर्ट में लंबित है। निजी प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने अपनी जनहित याचिका में लंबित मुकदमे के बारे में तथ्यों को छिपाया।
न्यायालय ने पाया कि जब याचिकाकर्ता के वकील से लंबित मुकदमे के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वे अलग भूमि के बारे में है। हालांकि अभिलेखों में कुछ और ही दर्शाया गया।
चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस विकास बुधवार की खंडपीठ ने कहा,
"स्पष्ट रूप से वर्तमान याचिका लंबित मुकदमों को दबाकर दायर की गई। जनहित याचिका के रूप में याचिका का उपयोग उस आदेश के कार्यान्वयन की मांग करने के लिए किया जा रहा है, जिसके विरुद्ध अपील लंबित है, सक्षम न्यायालय द्वारा आदेश पारित किए गए। याचिकाकर्ता के उक्त आचरण को स्वीकार नहीं किया जा सकता।"
न्यायालय ने जनहित याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर 25000 रुपये का जुर्माना लगाया, जिसे इलाहाबाद हाइकोर्ट की विधिक सेवा समिति के पास जमा करना होगा।
केस टाइटल- राम सूरत बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 9 अन्य