इलाहाबाद हाईकोर्ट ने की महिला की पसंद से विवाह पर परिवार की आपत्ति की निंदा

Update: 2025-06-17 09:56 GMT

महिला द्वारा अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के निर्णय पर परिवार की आपत्ति की कड़ी निंदा करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक 27 वर्षीय महिला को सुरक्षा प्रदान की, जिसे अपहरण का डर है, क्योंकि वह अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करना चाहती है।

जस्टिस जेजे मुनीर और जस्टिस प्रवीण कुमार गिरी की खंडपीठ ने ऐसी आपत्तियों को घृणित करार देते हुए यह स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त है।

न्यायालय ने कहा,

“यह निंदनीय है कि याचिकाकर्ता परिवार की एक वयस्क महिला सदस्य जो 27 वर्ष की है, उसके अपनी पसंद के पुरुष से विवाह करने के निर्णय पर आपत्ति जता रहे हैं। यह अधिकार हर वयस्क को संविधान द्वारा अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्राप्त है।”

न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यह नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ता महिला के पिता और भाई वास्तव में उसका अपहरण करना चाहते हैं या नहीं परंतु यह मामला एक बड़े सामाजिक मुद्दे की ओर इशारा करता है, जिसे अदालत ने संवैधानिक और सामाजिक मूल्यों के बीच मूल्य अंतर बताया

यह तथ्य कि समाज और परिवार द्वारा ऐसे अधिकारों के प्रयोग का विरोध किया जाता है, यह संवैधानिक और सामाजिक मूल्यों के बीच मौजूद 'मूल्य अंतर' का स्पष्ट चित्रण है। जब तक संविधान द्वारा पोषित मूल्यों और समाज द्वारा संजोए गए मूल्यों के बीच यह अंतर रहेगा तब तक इस तरह की घटनाएँ होती रहेंगी।”

खंडपीठ दरअसल महिला (प्रतिवादी नंबर 4) द्वारा दर्ज कराई गई FIR रद्द करने के लिए उसके पिता और भाई (याचिकाकर्ता) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

FIR में महिला ने अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने की वजह से अपहरण की आशंका जताई थी।

अदालत ने याचिकाकर्ताओं की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी लेकिन साथ ही उन्हें महिला के जीवन में हस्तक्षेप करने या उसे धमकाने, हमला करने या संपर्क करने से रोक दिया।

अदालत ने यह भी निर्देश दिया,

“याचिकाकर्ता प्रतिवादी नंबर 4 से न तो फोन पर और न ही किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक साधन, इंटरनेट या दोस्तों अथवा परिचितों के माध्यम से संपर्क करें। पुलिस को भी प्रतिवादी नंबर 4 की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता में किसी भी प्रकार से हस्तक्षेप करने से रोका जाता है।”

अदालत ने राज्य सरकार और अन्य संबंधित प्राधिकरणों को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा है।

अब यह मामला 18 जुलाई, 2025 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया।

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