ट्रैप कार्रवाई में हाथ धोना और रिश्वत की रकम सील करना घटनास्थल पर ही हो, थाने में नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीजीपी को दिशानिर्देश जारी करने का आदेश दिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि भ्रष्टाचार के मामलों में ट्रैप कार्रवाई की विश्वसनीयता तब कमजोर हो जाती है जब आरोपी और शिकायतकर्ता के हाथ धोने, बरामद रिश्वत की रकम को सील करने जैसी ज़रूरी प्रक्रियाएँ घटनास्थल के बजाय थाने में की जाती हैं। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत होने वाली जाँच की “लापरवाहीपूर्ण कार्यप्रणाली” पर गंभीर आपत्ति जताई।
जस्टिस समीअर जैन की बेंच ने मुख्य सचिव (गृह) और डीजीपी को निर्देश दिया कि वे तुरंत आवश्यक आदेश जारी करें ताकि ट्रैप से जुड़ी सभी प्रक्रियाएँ सख्ती से मौके पर ही की जाएँ।
यह आदेश सुरेश प्रकाश गौतम (लेबर एन्फोर्समेंट ऑफिसर) की जमानत याचिका स्वीकार करते हुए दिया गया है, जिन पर 15,000 रुपये रिश्वत माँगने का आरोप था और जिन्हें ट्रैप टीम ने कथित तौर पर रंगे हाथ पकड़ा था।
कोर्ट ने कहा कि अधिकांश मामलों में न तो घटनास्थल पर आरोपी और शिकायतकर्ता के हाथ धोए जाते हैं, न ही वहीं बरामद रकम को सील किया जाता है—जबकि ट्रैप की शुचिता बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है।
आवेदक ने दलील दी थी कि एफआईआर से ही स्पष्ट है कि हाथ धोने और पैसे सील करने की प्रक्रिया थाने में हुई, जिससे ट्रैप की कार्रवाई संदेहास्पद हो जाती है। कोर्ट ने इसे प्रथम दृष्टया स्वीकार करते हुए कहा कि इस तर्क को अभी पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता।
आवेदक ने यह भी बताया कि शिकायत दर्ज होने से एक सप्ताह पहले ही उसने डिप्टी लेबर कमिश्नर को आवेदन देकर कुछ अधिकारियों पर षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने इसे भी महत्व दिया।
इसके अलावा, अभियोजन ने बताया कि आवेदक के घर से लगभग 21.50 लाख रुपये बरामद हुए, लेकिन जांच अधिकारी ने इस बरामदगी की कोई विस्तृत जाँच नहीं की और केवल धारा 7 पीसी एक्ट के तहत चार्जशीट दाखिल की। आवेदक का कहना था कि यह रकम खेती और पेड़ बेचने से अर्जित की गई थी, पर IO ने इसकी कोई पड़ताल नहीं की और न ही असंगत संपत्ति का मामला दर्ज किया।
इन परिस्थितियों को देखते हुए—विशेषत: आवेदक की साफ आपराधिक पृष्ठभूमि और 25 अगस्त 2025 से जेल में रहने के मद्देनज़र—हाईकोर्ट ने माना कि वह जमानत का हकदार है।
कोर्ट ने यह भी दोहराया कि जब तक दोष सिद्ध न हो, आरोपी निर्दोष माना जाता है और जमानत को सज़ा या रोकथाम का साधन मानकर अस्वीकार नहीं किया जा सकता।