अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान जैसे मदरसे भी राज्य के शैक्षणिक नियमों से मुक्त नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत अल्पसंख्यकों को प्रदत्त अधिकार—अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका संचालन करने का—राज्य सरकार द्वारा बनाए गए तार्किक नियमों और शैक्षणिक मानकों के ढांचे के भीतर ही प्रयोग किया जाना चाहिए, ताकि शिक्षा की गुणवत्ता और उत्कृष्टता बनी रहे।
जस्टिस मंजू रानी चौहान की पीठ ने गोरखपुर स्थित मदरसा अरबिया शम्सुल उलूम सिकरीगंज (एहाता नवाब) के नाज़िम/प्रबंधक द्वारा बिना किसी सरकारी दिशा-निर्देश के जारी की गई सहायक अध्यापक और क्लर्क की नियुक्ति संबंधी विज्ञप्ति को रद्द करते हुए कहा—
“संविधान का अनुच्छेद 30(1) निश्चित रूप से अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका संचालन करने का अधिकार देता है, लेकिन यह अधिकार इतना व्यापक नहीं है कि राज्य द्वारा बनाए गए तार्किक नियमों से छूट मिल सके, जिनका उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता और मानक बनाए रखना है। इसलिए सरकार द्वारा अध्यापकों की योग्यता तय किए जाने से पहले जारी यह विज्ञापन अवैध है।”
मामले की पृष्ठभूमि में मदरसा की प्रबंधन समिति के चुनाव को लेकर विवाद था। ईद मोहम्मद को प्रबंधक नियुक्त किया गया था, और उन्होंने बायलॉज़ के आधार पर तीन पदों के लिए विज्ञापन प्रकाशित किया था। हालांकि, बाद में राज्य सरकार ने 20 मई 2025 को आदेश जारी कर मदरसा शिक्षकों की योग्यता पुनर्निर्धारित करने और नई नियुक्तियों पर रोक लगाने का निर्देश दिया था।
कोर्ट ने पाया कि इसके बावजूद 29 अप्रैल 2025 को जारी विज्ञापन सरकारी नीति और उच्चतम न्यायालय के आदेश के विरुद्ध था।
कोर्ट ने कहा, “जब सरकार ने सभी मदरसों को नियुक्ति प्रक्रिया रोकने का निर्देश दिया था, तब भी इस संस्था द्वारा विज्ञापन जारी करना सरकारी नीति के खिलाफ है। अतः ऐसे विज्ञापन के आधार पर की गई कोई भी नियुक्ति अवैध होगी और उससे कोई विधिक अधिकार उत्पन्न नहीं होगा।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि इस विज्ञापन के आधार पर कोई नियुक्तियां की गई हैं, तो वे स्वतः अवैध मानी जाएंगी और ऐसे नियुक्त व्यक्तियों को सुनवाई का कोई अधिकार नहीं होगा।
अंततः कोर्ट ने यह कहा कि अनुच्छेद 30(1) के तहत अधिकार तर्कसंगत प्रतिबंधों के अधीन हैं, और प्रबंधक द्वारा किया गया यह कार्य संविधान व सरकारी नीति — दोनों के विरुद्ध था, इसलिए विज्ञापन को निरस्त किया जाता है।