घरेलू जीवन में वैवाहिक कलह आम बात, आत्महत्या के लिए उकसाने के इरादे के बिना प्रताड़ित करने पर IPC की धारा 306 लागू नहीं होगी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-10-03 05:10 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि घरेलू जीवन में वैवाहिक कलह और मतभेद आम बात है। अगर इस कारण से पति या पत्नी में से कोई आत्महत्या करता है तो यह नहीं माना जा सकता कि उनके उकसाने के कारण मृतक ने आत्महत्या की।

जस्टिस समीर जैन की पीठ ने सेशन कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें एक महिला और उसके माता-पिता द्वारा भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 के तहत अपने पति को कथित रूप से आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में दायर बरी करने की अर्जी खारिज कर दी गई।

सिंगल जज ने कहा कि वैवाहिक झगड़े के दौरान "उसे मर जाना चाहिए" कहना और उसके बाद मृतक द्वारा आत्महत्या करना IPC की धारा 306 के तहत दंडनीय अपराध नहीं है, क्योंकि यह नहीं कहा जा सकता कि उकसाने के कारण मृतक ने आत्महत्या की।

मामले की पृष्ठभूमि

इस मामले में नवंबर, 2022 में FIR दर्ज की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि मृतक (पति), जिसका विवाह लगभग सात साल पहले पुनर्विचारकर्ता नंबर 1 (पत्नी) से हुआ था, उसने अपनी पत्नी और उसके माता-पिता द्वारा लगातार उत्पीड़न और अपमान के कारण आत्महत्या कर ली।

आरोप लगाया गया कि पत्नी ने पहले IPC की धारा 498-ए, 323, 504, 506 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत आपराधिक मामला दर्ज कराया। समझौते के बावजूद, उसने इसे वापस नहीं लिया था।

FIR के अनुसार, 8 नवंबर, 2022 को पुनर्विचारकर्ता नंबर 2 और 3 (मृतका के ससुराल वाले) ससुराल आए और झगड़े के दौरान कथित तौर पर उससे कहा कि "उसे मर जाना चाहिए"। 13 नवंबर, 2022 को सूचक (अपराधकर्ता नंबर 2) का बेटा आत्महत्या करते हुए मृत पाया गया।

जांच के बाद पत्नी और उसके माता-पिता के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया। सेशन कोर्ट ने उस पर संज्ञान लिया। ट्रायल कोर्ट ने 19 अक्टूबर, 2023 को उनकी बरी करने की याचिका खारिज की, जिसके बाद उन्होंने वर्तमान पुनर्विचार याचिका के साथ हाईकोर्ट का रुख किया।

निवेदन

पुनर्विचारकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि उकसाने के आरोप झूठे हैं और पति-पत्नी के बीच झगड़े और विवाद आम बात है।

यह तर्क दिया गया कि जानबूझकर उकसाने का कोई सबूत नहीं है। यहां तक कि 8 नवंबर, 2022 को दिया गया कथित बयान भी उकसाने का नहीं माना जा सकता।

दूसरी ओर, राज्य और शिकायतकर्ता के वकील ने पुनर्विचार का विरोध किया, क्योंकि उन्होंने दलील दी कि ससुराल वालों द्वारा की गई टिप्पणी सहित, यातना, अपमान और उकसावे को दर्शाने वाले पर्याप्त बयान और सबूत मौजूद हैं, जो प्रथम दृष्टया IPC की धारा 306 के तहत अपराध बनता है।

हाईकोर्ट का आदेश

अदालत ने शुरू में ही कहा कि यदि अभिलेख पर उपलब्ध सामग्री प्रथम दृष्टया कथित अपराध का गठन नहीं करती है तो अभियुक्त को दोषमुक्त किया जाना चाहिए, अन्यथा नहीं।

इसके अलावा, पीठ ने IPC की धारा 306 का हवाला देते हुए कहा कि उकसाना इस अपराध के आवश्यक तत्वों में से एक है। उकसाने का अर्थ है किसी व्यक्ति को कोई कार्य करने के लिए उकसाना या प्रोत्साहित करना।

जस्टिस जैन ने आगे कहा:

"IPC की धारा 306 के तहत दंडनीय अपराध के लिए आत्महत्या के लिए उकसाने की मंशा आवश्यक है। यदि पति, पत्नी या उनके रिश्तेदारों को परेशान या प्रताड़ित किया जा रहा है, लेकिन आत्महत्या करने का उनका कोई इरादा नहीं है तो यह नहीं कहा जा सकता कि उकसाया गया... भले ही जांच अधिकारी द्वारा जांच के दौरान एकत्र की गई पूरी जानकारी को वैसे ही स्वीकार कर लिया जाए, तब भी यह नहीं कहा जा सकता कि पुनर्विचारकर्ताओं के पास मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाने की मंशा थी।"

अदालत ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि भले ही गवाहों ने यह कहा हो कि ससुराल वालों ने झगड़े के दौरान मृतक से कहा कि "उसे मर जाना चाहिए", लेकिन क्षणिक आवेश में कहे गए ऐसे शब्द उकसावे की आवश्यकता को पूरा नहीं करते। साक्ष्यों से यह नहीं पता चलता कि मृतक के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।

इस पृष्ठभूमि में अदालत ने पाया कि पुनर्विचारकर्ताओं के विरुद्ध प्रथम दृष्टया IPC की धारा 306 के तहत कोई अपराध नहीं बनता। अतः, उनकी पुनर्विचार याचिका स्वीकार की जाती है और उनकी बरी करने की याचिका खारिज करने का विवादित आदेश रद्द किया जाता है।

Case title - Rachana Devi And 2 Others vs. State of U.P. and Another

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