पति सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण राशि के निर्धारण के लिए सकल वेतन से बीमा प्रीमियम, लोन ईएमआई की कटौती का दावा नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाइकोर्ट

Update: 2024-04-01 09:39 GMT

इलाहाबाद हाइकोर्ट ने पिछले सप्ताह कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पत्नी को देय मासिक भरण-पोषण भत्ता निर्धारित करते समय पति अपने वेतन से LIC प्रीमियम, होम लोन, लैंड खरीद किस्तों या बीमा पॉलिसी प्रीमियम के भुगतान के लिए कटौती की मांग नहीं कर सकता।

डॉ. कुलभूषण कुमार बनाम राजकुमारी 1970 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए जस्टिस सुरेंद्र सिंह-I की पीठ ने कहा कि भरण-पोषण राशि निर्धारित करते समय पति के सकल वेतन से केवल आयकर के रूप में अनिवार्य वैधानिक कटौती ही घटाई जा सकती है।

सिंगल जज ने राणा प्रताप सिंह (पति/संशोधक) द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं। उक्त याचिका में फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें उसे अपनी पत्नी (विपरीत पक्ष नंबर 1) को 15 हजार रुपये तथा अपने दो बच्चों को (जब तक वे वयस्क नहीं हो जाते) 5-5 हजार रुपये सीआरपीसी की धारा 125 के तहत देने का निर्देश दिया गया।

हाईकोर्ट के समक्ष पति-संशोधक के वकील ने अन्य बातों के साथ-साथ यह तर्क दिया कि निचली अदालत इस तथ्य पर ध्यान देने में विफल रही कि उसकी पत्नी बिना किसी पर्याप्त कारण के उससे दूर रह रही थी। वह अपने वैवाहिक कर्तव्यों का पालन करने में विफल रही, जबकि संबंधित फैमिली कोर्ट ने उसके खिलाफ हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) की धारा 9 के तहत दांपत्य अधिकारों की बहाली का आदेश पारित किया।

यह भी तर्क दिया गया कि भरण-पोषण भत्ते की राशि निर्धारित करते समय निचली अदालत ने संशोधनकर्ता की मासिक आय को ध्यान में नहीं रखा, जो 40,000 रुपये प्रति माह है। भूमि खरीदने के लिए लिए गए लोन की किस्त तथा एलआईसी का प्रीमियम चुकाने के बाद उसे केवल 28,446/- प्रति माह रुपये ही मिल रहे हैं।

पुनर्विचार द्वारा एक और आधार यह लिया गया कि उसकी पत्नी के उसके छोटे भाई के साथ अवैध संबंध हैं, इसलिए धारा 125 (4) सीआरपीसी के प्रावधान के तहत भरण-पोषण का उसका अधिकार वर्जित है।

मामले के विवरण और प्रस्तुत तर्कों पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत फैमिली कोर्ट द्वारा जारी एकपक्षीय निर्णय और आदेश को निरस्त करने वाले लोक अदालत के आदेश की प्रमाणित प्रति प्रस्तुत की। परिणामस्वरूप हाइकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि फैमिली कोर्ट का आदेश लागू नहीं है।

पति के इस रुख के बारे में कि उसकी पत्नी अडल्ट्री में रह रही है, न्यायालय ने पाया कि पुनर्विचार द्वारा किए गए इस कथन को स्वीकार करने का कोई ठोस आधार नहीं है कि उसकी पत्नी उसके छोटे भाई के साथ उसका घर छोड़कर चली गई। वह उसके साथ व्यभिचार में रह रही है।

इसके अलावा पति के सकल वेतन के मुद्दे पर न्यायालय ने पाया कि वह सीआरपीएफ में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत है। उसकी पत्नी द्वारा दाखिल वेतन पर्ची के अनुसार जनवरी 2023 के लिए उसका वेतन 65,773 रुपये दिखाया गया।

न्यायालय ने महत्वपूर्ण बात यह भी कही कि सकल वेतन से केवल आयकर के रूप में अनिवार्य वैधानिक कटौती ही कम की जा सकती है। इसलिए पति द्वारा दावा किए गए वेतन में कोई कटौती LIC, होम लोन, भूमि खरीदने के लिए लोन की किश्तों या बीमा पॉलिसी के प्रीमियम के भुगतान के लिए स्वीकार्य नहीं है।

इन तथ्यों और परिस्थितियों के तहत संशोधनकर्ता का मासिक वेतन 65,773 रुपये मानते हुए न्यायालय ने फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखा, जिसमें उसे सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपनी पत्नी (विपरीत पक्ष नंबर 1) को 15 हजार रुपये और अपने दो बच्चों (जब तक वे वयस्क नहीं हो जाते) को 5-5 हजार रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया।

केस टाइटल - राणा प्रताप सिंह बनाम नीतू सिंह और 2 अन्य

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