लखीमपुर खीरी हिंसा | उनका मामला आशीष मिश्रा के मामले से बेहतर स्थिति में: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 आरोपियों को जमानत दी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को अक्टूबर 2021 में पांच लोगों की हत्या से संबंधित लखीमपुर खीरी हिंसा की घटना में 12 आरोपियों को जमानत दी। कोर्ट ने कहा कि उनका मामला आशीष मिश्रा के मामले से बेहतर स्थिति में है, जिन्हें इस साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी थी।
अदालत ने यह भी माना कि वर्तमान मामले में क्रॉस-वर्जन है सुप्रीम कोर्ट ने क्रॉस-वर्जन में चार आरोपियों को दी गई अंतरिम जमानत को पूर्ण कर दिया। बड़ी संख्या में गवाहों की जांच की जानी बाकी है, इस बात की कोई संभावना नहीं है कि निकट भविष्य में मुकदमा समाप्त हो जाएगा। साथ ही इस बात का भी कोई संकेत नहीं है कि आवेदकों ने पहले दी गई अंतरिम जमानत का दुरुपयोग किया है।
जहां तक आवेदकों के आपराधिक इतिहास का सवाल है, जस्टिस कृष्ण पहल की पीठ ने कहा कि राज्य ने ऐसा कोई साक्ष्य नहीं पेश किया, जिससे यह संकेत मिले कि आवेदकों ने अतीत में कानून की प्रक्रिया से बचने का प्रयास किया हो।
अदालत ने कहा कि यदि आरोपी को जमानत का हकदार पाया जाता है तो उसे केवल आपराधिक इतिहास के आधार पर जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता।
यह देखते हुए कि चूंकि आपराधिक इतिहास के आधार पर आरोपियों को जमानत देने से इनकार करने के लिए कोई असाधारण परिस्थिति नहीं दिखाई गई, अदालत ने नंदन सिंह बिष्ट, लतीफ उर्फ काले, सत्यम त्रिपाठी उर्फ सत्य प्रकाश त्रिपाठी, शेखर भारती, धर्मेंद्र सिंह बंजारा, आशीष पांडे, रिंकू राणा, उल्लास कुमार त्रिवेदी उर्फ मोहित त्रिवेदी, अंकित दास, लवकुश, सुमित जायसवाल और शिशुपाल को जमानत दी।
बता दें कि उपस्थित 12 आरोपियों में से 8 ने अपनी पहली जमानत याचिका दायर की थी जबकि 4 ने अपनी दूसरी जमानत याचिका दायर की थी। पीठ ने सभी जमानत याचिकाओं को एक साथ मिलाकर उन पर सुनवाई की।
आरोपी आवेदकों ने तर्क दिया कि उनका नाम एफआईआर में नहीं था। उनके नाम बाद में प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों में जांच में सामने आए।
यह भी तर्क दिया गया कि जबकि यह सच है कि इंफॉर्मेंट की ओर से चार लोगों की जान चली गई। साथ ही इस तथ्य से भी कि एक स्वतंत्र व्यक्ति जो पत्रकार था, को भी तत्काल मामले में मौत की सजा दी गई थी, लेकिन यह एक स्वीकृत तथ्य है कि आवेदकों की ओर से तीन लोगों की भी मृत्यु हो गई। ऐसे में इस समय यह पता नहीं लगाया जा सकता है कि हमलावर कौन था।
इसके अलावा यह तर्क दिया गया कि धारा 144 CrPC के प्रावधान दोनों पक्षों पर लागू होते हैं। ऐसे में किसानों के जुलूस को शांतिपूर्ण नहीं कहा जा सकता।
इसके अलावा मुकदमे की धीमी गति के बारे में तर्क दिए गए। यह प्रस्तुत किया गया कि 114 गवाहों की सूची में से अभी तक केवल सात की जांच की गई। निकट भविष्य में मुकदमे के निष्कर्ष की कोई संभावना नहीं है।
अंत में मुख्य आरोपी आशीष मिशा उर्फ मोनू के जमानत आदेश पर बहुत अधिक भरोसा किया गया जिसे सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी थी।
दूसरी ओर AGA ने भी आरोपी की जमानत याचिका का विरोध किया। हालांकि, इस बात पर विवाद नहीं था कि उन्होंने जमानत की स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं किया था।
इन दलीलों की पृष्ठभूमि में अदालत ने आवेदकों को जमानत दे दी यह देखते हुए कि जमानत का उद्देश्य अभियुक्त की सुनवाई में उपस्थिति सुनिश्चित करना है। आवेदक द्वारा न्याय से भागने, न्याय की प्रक्रिया को विफल करने, या अपराधों को दोहराने या गवाहों को डराने के रूप में अन्य परेशानियां पैदा करने का कोई भी भौतिक विवरण या परिस्थितियाँ नहीं दिखाई गईं।
केस टाइटल - नंदन सिंह बिष्ट बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के माध्यम से प्रधान सचिव गृह लखनऊ