POCSO Act को न्योता देगा वयस्क पति के साथ सहवास: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग मां को 18 वर्ष की होने तक आश्रय गृह में रहने का निर्देश दिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाते हुए 17 वर्षीय नाबालिग मां को उसके वयस्क पति के साथ रहने की अनुमति देने से इनकार कर दिया।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब तक वह 5 अक्टूबर, 2026 को बालिग नहीं हो जाती, तब तक उसे सरकारी आश्रय गृह में ही रहना होगा।
जस्टिस जेजे मुनीर और जस्टिस संजीव कुमार की खंडपीठ ने नाबालिग लड़की और उसके दो माह के बच्चे की ओर से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर यह आदेश पारित किया।
न्यायालय ने गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि एक नाबालिग को किसी वयस्क के साथ सहवास करने की अनुमति देना पति को POCSO Act के तहत दंडनीय अपराधों के लिए भी उत्तरदायी बना देगा।
मामले के अनुसार नाबालिग लड़की ('ए') ने 3 जुलाई 2025 को मुकेश नामक व्यक्ति से शादी की और 11 दिन बाद एक बेटे को जन्म दिया। हालांकि, उसके हाई स्कूल के अंक पत्र के अनुसा उसकी जन्म तिथि 5 अक्टूबर, 2008 है, जिसका अर्थ है कि शादी के समय वह 17 वर्ष की होने में तीन महीने कम थी।
नाबालिग के पिता ने अपहरण की धारा (BNS की धारा 137(2)) के तहत FIR दर्ज कराई, जिसके बाद उसके पति को गिरफ्तार कर लिया गया। लड़की को बाल कल्याण समिति (CWC) के समक्ष पेश किया गया जिसने उसके बयान और माता-पिता के घर लौटने से इनकार करने पर उसे कानपुर नगर के राजकीय बाल गृह (बालिका) में रखने का आदेश दिया।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि लड़की की सहमति से यह संबंध वैध है लेकिन कोर्ट ने यह कहते हुए इसे खारिज कर दिया कि सहमति की उम्र संबंधी कानून में समुद्र जैसा बदलाव आया है।
कोर्ट ने जोर दिया कि BNS के लागू होने के बाद विवाह हुआ है, जो 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति के साथ यौन संबंध को सहमति के साथ या उसके बिना धारा 63(vi) के तहत बलात्कार के रूप में दंडनीय बनाता है।
इस पृष्ठभूमि में पीठ ने नाबालिग को उसकी सास की हिरासत में सौंपने से इनकार कर दिया क्योंकि कोर्ट ने माना कि जैसे ही वह रिहा होता है। उसके वयस्क पति के साथ कोई यौन संबंध नहीं होगा। इसकी कोई गारंटी नहीं है। चूंकि 'ए' ने अपने माता-पिता के घर लौटने से मना कर दिया। इसलिए आश्रय गृह में उसका रहना ही एकमात्र कानूनी विकल्प बचा।
मामले के मानवीय पहलू को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने आदेश दिया कि नाबालिग मां और उसके बच्चे को उचित स्वास्थ्य सेवा प्रदान की जाए।
न्यायालय ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO), कानपुर नगर को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि लड़की और उसके बच्चे को नियमित रूप से डॉक्टर और बाल रोग विशेषज्ञ उपलब्ध हों। साथ ही कानपुर देहात के जिला जज को एक वरिष्ठ महिला न्यायिक अधिकारी को महीने में कम से कम दो बार उनसे मिलने के लिए नामित करने का निर्देश दिया गया ताकि आदेश का पालन सुनिश्चित किया जा सके।
कोर्ट ने यह अनुमति दी कि उसकी सास को आश्रय गृह के नियमों के अनुसार नियमित रूप से उससे मिलने और उसकी तथा बच्चे की भावनात्मक जरूरतों का ध्यान रखने की अनुमति होगी हालांकि वह उन्हें बाहर से कोई भोजन या खाने-पीने का सामान नहीं ला पाएंगी।
कोर्ट ने दोहराया कि लड़की 5 अक्टूबर 2026 को बालिग होने पर मुक्त होने के लिए स्वतंत्र होगी।