शेयर ब्रोकर द्वारा निवेशकों के पैसे के दुरुपयोग के आरोपों से आपराधिक न्यायालय नहीं निपट सकता, SEBI Act लागू: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-09-25 06:29 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम 1992 (SEBI Act) की धारा 26 के आधार पर जो न्यायालय को अधिनियम के तहत अपराधों के संबंध में संज्ञान लेने से रोकती है, ट्रायल कोर्ट ऐसे मामले का संज्ञान नहीं ले सकता, जहां ब्रोकर पर निवेशक के पैसे का दुरुपयोग करने का आरोप है। यह माना गया कि SEBI Act विशेष अधिनियम होने के कारण आईपीसी और CrPc को दरकिनार कर देगा।

जस्टिस अनीश कुमार गुप्ता ने कहा,

“SEBI Act विशेष अधिनियम है, जो सामान्य अधिनियम जैसे कि IPC या CrPc पर प्रभावी होगा। कानून की यह स्थापित स्थिति है कि एक बार विशेष अधिनियम लागू हो जाने पर सामान्य कानून के प्रावधान लागू नहीं होंगे और केवल ऐसे विशेष कानून के प्रावधानों और SEBI Act की धारा 26 के प्रावधानों के अनुसार ही अभियोजन दर्ज किया जा सकता है।”

न्यायालय ने यह भी माना कि किसी व्यक्ति पर धारा 409 IPC के तहत आपराधिक विश्वासघात के अपराध और धारा 420 के तहत धोखाधड़ी के अपराध का आरोप एक ही आरोप के आधार पर नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि वे अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते हैं।

आवेदक एलडीके शेयर एंड सिक्योरिटीज प्राइवेट लिमिटेड का निदेशक/मालिक है। लिमिटेड के खिलाफ IPC की धारा 409 और 420 के तहत एफआईआर दर्ज की गई। आरोप लगाया गया कि शेयर ब्रोकर होने के नाते आवेदक ने विपक्षी पक्ष से अपनी कंपनी के माध्यम से शेयरों में निवेश और व्यापार करने के लिए कहा था। बदले में उसे कुछ सुविधाएं प्रदान की जाएंगी।

आरोप लगाया गया कि आवेदक ने कई मांगों के बावजूद विपक्षी पक्ष को 9,69,450 रुपये की राशि वापस नहीं की थी। इसके बाद एफआईआर दर्ज की गई।

आपराधिक अभियोजन को इस आधार पर चुनौती दी गई कि ब्रोकर और निवेशक के बीच विवाद भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 की धारा 15-F के तहत आता है। इसलिए SEBI Act के अनुसार आगे बढ़ना चाहिए। यह तर्क दिया गया कि ऐसे मामलों में आपराधिक अभियोजन बनाए रखने योग्य नहीं है।

कोर्ट ने पाया कि विपक्षी पक्ष ने इसमें शामिल जोखिमों को जानते हुए भी निवेश किया। इसलिए आवेदक के खिलाफ धोखाधड़ी का अपराध नहीं बनता। यह माना गया कि आपराधिक अभियोजन में विपक्षी पक्ष कोई धन वसूल नहीं कर सकता।

ललित चतुर्वेदी एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि पुलिस धन की वसूली नहीं कर सकती या आपराधिक कार्यवाही में धन की वसूली के लिए सिविल कोर्ट के रूप में कार्य नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 420 और 406 आईपीसी के बीच अंतर को उजागर किया और माना कि एक ही कार्य धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात दोनों को जन्म नहीं दे सकता।

ललित चतुर्वेदी एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य तथा मोहम्मद इब्राहिम एवं अन्य बनाम बिहार राज्य एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने माना,

“एक ही आरोप के आधार पर किसी व्यक्ति को धारा 409 IPC के साथ-साथ धारा 420 आईपीसी के तहत अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि दोनों अपराध विरोधाभासी हैं। पूरी तरह से अलग-अलग क्षेत्रों में संचालित होते हैं। धोखाधड़ी के मामले में लेन-देन की शुरुआत से ही बेईमानी का इरादा मौजूद होना चाहिए, जो इस मामले में स्पष्ट रूप से अनुपस्थित है।”

यह माना गया कि आपराधिक विश्वासघात का अपराध गठित करने के लिए पूर्व शर्त वैध सौंपना और उसके बाद गबन होना चाहिए।

यह मानने के बाद कि धोखाधड़ी का कोई मामला नहीं बनता न्यायालय ने माना कि आवेदक को विपरीत पक्ष द्वारा कोई निर्धारित राशि नहीं सौंपी गई। चूंकि शेयर बाजार के अपने जोखिम हैं। इसलिए न्यायालय ने माना कि धारा 409/406 आईपीसी के तहत अपराध गठित करने के लिए कोई सौंपना नहीं था।

उपर्युक्त निर्णय से यह स्पष्ट है कि कोई व्यक्ति किसी को कोई संपत्ति सौंपने का दावा नहीं कर सकता। साथ ही वह यह भी नहीं कह सकता है कि संपत्ति सौंपने के लिए उसे बेईमानी से प्रेरित करके धोखा दिया गया। यह या तो सौंपना हो सकता है या धोखाधड़ी, हालांकि यह दोनों नहीं हो सकता है।

तदनुसार, आवेदक के खिलाफ पूरी आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी गई।

केस टाइटल- जितेंद्र कुमार केशवानी बनाम यू पी राज्य और अन्य 

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