आरोपी के पास जांच के चरण में कोई अधिकार नहीं, वह धारा 173(8) CrPc के तहत मामले की आगे/पुनः जांच की मांग नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इस बात पर जोर देते हुए कि जांच के चरण में आरोपी के पास कोई अधिकार नहीं है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह कहा कि आरोपी को धारा 173(8) सीआरपीसी के तहत याचिका दायर करके मामले की आगे/पुनः जांच की मांग करने का अधिकार नहीं है।
जस्टिस सौरभ लवानिया की पीठ ने राज्य बनाम हेमेंद्र रेड्डी के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2023 के फैसले पर भरोसा करते हुए यह टिप्पणी की। यह माना गया कि धारा 173(8) CrPc के तहत आगे की जांच के लिए आवेदन पर विचार करते समय अदालत आरोपी की सुनवाई करने के लिए बाध्य नहीं है।
अदालत ने प्रीति सिंह बनाम यूपी राज्य 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि आरोपी को जांच के चरण में सुनवाई का कोई अधिकार नहीं है।
प्रीति सिंह के मामले में अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि आरोपी व्यक्ति को जांच के चरण में सुनवाई का कोई अधिकार नहीं है और वह इस बात पर सवाल नहीं उठा सकता कि जांच एजेंसी किस तरह से सबूत इकट्ठा कर रही थी।
एकल न्यायाधीश विशाल त्रिपाठी द्वारा दायर धारा 482 सीआरपीसी याचिका पर विचार कर रहे थे।
उन्होंने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश POCSO Act अंबेडकर नगर के आदेश को चुनौती देते हुए अदालत का रुख किया था, जिसमें उनके खिलाफ धारा 147, 323, 325, 427, 354बी और 452 आईपीसी और पोक्सो अधिनियम की धारा 7/8 के तहत दर्ज एफआईआर में फिर से जांच/आगे की जांच करने के लिए आईओ को निर्देश देने की प्रार्थना करने की उनकी अर्जी को खारिज कर दिया गया।
आवेदक ने फिर से जांच/आगे की जांच के लिए निर्देश देने की भी प्रार्थना की।
एफआईआर के अनुसार 24 जुलाई, 2023 को रात करीब 10:00 बजे आरोपी आवेदक ने सूचक, सूचक के बेटे और सूचक की बेटी पर हमला किया, जिसमें सभी कथित पीड़ितों को चोटें आईं।
जांच के दौरान, आईओ इंफॉर्मेंट की नाबालिग बेटी के बयान पर गौर किया और धारा 354-बी आईपीसी को POCSO Act की धारा 7/8 के साथ जोड़ा और आरोप पत्र प्रस्तुत किया।
ऊपर वर्णित पृष्ठभूमि में आरोपी-आवेदक ने धारा 173(8) CrPc के तहत आवेदन पेश किया, जिसमें घटना की तारीख, घटना का समय, मेडिकल जांच की तारीख और एफआईआर दर्ज करने की तारीख पर सवाल उठाते हुए फिर से जांच/आगे की जांच की मांग की गई।
जब ट्रायल कोर्ट ने इस आधार पर उक्त याचिका खारिज कर दिया कि मामले में आरोप पत्र दायर किया जा चुका है तो उन्होंने इस आधार पर विवादित आदेश को चुनौती देने के लिए हाईकोर्ट का रुख किया कि मजिस्ट्रेट को आरोप पत्र प्रस्तुत करने के बाद भी धारा 173(8) सीआरपीसी के तहत फिर से जांच/आगे की जांच के लिए आदेश पारित करने का अधिकार है।
उनके वकील ने यह भी तर्क दिया कि एफआईआर में बताए गए अनुसार ऐसी कोई घटना नहीं हुई और अभियोजन पक्ष की कहानी पूरी तरह से फर्जी और निराधार है, जो शिकायतकर्ता और तथ्य के गवाहों, विशेष रूप से घायल गवाहों द्वारा बताई गई घटना की तारीख और समय के बारे में विसंगतियों से स्पष्ट है। इस प्रकार इस मामले में पुनः जांच/आगे की जांच की मांग की गई।
इन तथ्यों और प्रस्तुतियों की पृष्ठभूमि में न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णयों पर भरोसा करते हुए आवेदक की याचिका खारिज करने के लिए निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखा:
जांच के चरण में आरोपी के पास कोई अधिकार नहीं था
आईओ ने साक्ष्य एकत्र करने विभिन्न व्यक्तियों की जांच करने और बयानों को लिखित रूप में प्रस्तुत करने सहित उचित जांच के बाद, एफआईआर, घायलों की मेडिकल रिपोर्ट और उनके बयानों सहित उनकी सामग्री पर विचार किया, आरोप पत्र तैयार किया और उसके बाद इसे संबंधित न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया।
जैसा कि आवेदक के वकील ने संकेत दिया है, तारीख और समय से संबंधित विसंगतियों पर ट्रायल कोर्ट द्वारा ट्रायल के चरण में विचार किया जाएगा, और वर्तमान मामले में पुनः जांच/आगे की जांच की मांग करने के लिए इसकी आवश्यकता नहीं है।
केस टाइटल – विशाल त्रिपाठी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के माध्यम से प्रधान सचिव गृह विभाग, लखनऊ और अन्य 2024