इलाहाबाद हाइकोर्ट ने सरकार से मुआवजा मिलने के बाद सुनवाई के दौरान मुकरने वाली बलात्कार पीड़ितों के खिलाफ कार्रवाई की वकालत की
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने कहा कि उन पीड़ितों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जानी चाहिए, जो शुरू में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (Rape), पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act) और एससी-एसटी अधिनियम (SC/ST Act) के तहत एफआईआर दर्ज कराते हैं, लेकिन सरकार से मुआवजा प्राप्त करने के बाद मुकदमे के दौरान अपने बयानों से मुकर जाते हैं।
जस्टिस शेखर कुमार यादव की पीठ ने आगे इस बात पर जोर दिया कि ऐसे मामलों के परिणामस्वरूप जांचकर्ता और अदालत के समय और संसाधनों की बर्बादी होती है।
पीठ ने टिप्पणी की,
“हर दिन अदालत के सामने ऐसे मामले आते हैं, जिनमें शुरुआत में आईपीसी की धारा 376, POCSO Act और SC/ST Act के तहत एफआईआर दर्ज की जाती है, जिस पर जांच चलती रहती है और पैसा और समय दोनों बर्बाद होता है। इस प्रकार के मामले में पीड़ित परिवार को सरकार से धन भी मिलता है, लेकिन समय बीतने और मुकदमा शुरू होने के बाद वे बचाव पक्ष में शामिल हो जाते हैं और शत्रुतापूर्ण हो जाते हैं या अभियोजन पक्ष की कहानी का समर्थन नहीं करते हैं। इस प्रकार, विवेचक एवं न्यायालय का समय एवं धन बर्बाद होता है। इस प्रकार की प्रथा को रोका जाना चाहिए और जिसने भी ऐसी एफआईआर दर्ज की है, उसके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।”
यह टिप्पणी करने का अवसर अमन नामक व्यक्ति द्वारा दायर जमानत याचिका पर विचार करते समय आया, जिसे पीड़िता के साथ सामूहिक बलात्कार करने के आरोप में दिसंबर, 2022 में गिरफ्तार किया गया।
आवेदक के वकील ने कहा कि उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया और आईपीसी की धारा 161 और 164 के तहत पीड़िता के बयानों में विरोधाभास है।
आगे यह प्रस्तुत किया गया कि सेशन ट्रायल के दौरान, पीडब्लू-1 और पीडब्लू-2 (पीड़ित) ने स्वयं स्वीकार किया कि आवेदक और अन्य सह-अभियुक्तों ने अपराध नहीं किया। इस कारण पीड़िता और पीडब्लू1 शत्रुतापूर्ण गवाह घोषित किया गया।
अंत में दलील दी गई कि मेडिकल जांच से भी इस बात की पुष्टि नहीं होती कि पीड़िता के साथ बलात्कार हुआ था।
मामले के सभी तथ्यों और परिस्थितियों और पक्षकारों के वकीलों की दलीलों को ध्यान में रखते हुए और प्रस्तुत मामले की खूबियों पर कोई टिप्पणी किए बिना अदालत ने राय दी कि आवेदक को जमानत पर रिहा करना उचित है। इसके साथ ही जमानत याचिका मंजूर कर ली गई।
इसके अलावा कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि यदि पीड़ित पक्ष ने सरकार से पैसे लिया तो उसे ब्याज सहित वापस किया जाए और यदि संबंधित अधीनस्थ न्यायालय को लगता है कि विरोधी पक्ष ने झूठा मुकदमा दर्ज कराया है तो उन पर भी मुकदमा चलाया जाए।
अदालत ने अपने आदेश में आगे कहा,
“इस आदेश की कॉपी संबंधित अधीनस्थ न्यायालय और जिला मजिस्ट्रेट को भेजी जाए कि यदि वर्तमान एफआईआर झूठी पाई जाती है तो पीड़ित को प्राप्त धन राजस्व के रूप में वसूल किया जाएगा और उसे सरकारी खाते में जमा किया जाएगा और कार्यवाही की जाएगी। पीड़ित के खिलाफ कार्रवाई शुरू की गई।”