आयुक्त का आदेश अंतिम हो जाने के बाद विकास प्राधिकरण मानचित्र की स्वीकृति को अस्वीकार नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-08-18 05:12 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अपील में आयुक्त का आदेश अंतिम हो जाने के बाद विकास प्राधिकरण बाद के मास्टर प्लान के आधार पर मानचित्र की स्वीकृति को अस्वीकार नहीं कर सकता, जो आयुक्त के आदेश के विपरीत हो सकता है।

गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के खिलाफ डेवलपर की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस प्रकाश पाडिया ने कहा,

“अपील में आयुक्त द्वारा पारित आदेश के अनुपालन में विकास प्राधिकरण यह विचार करने के लिए बाध्य है कि दिनांक 28.11.2006 के पत्र द्वारा अपेक्षित औपचारिकताएं पूरी की गईं या नहीं और यदि आदेश में उल्लिखित औपचारिकताएं पूरी हो जाती हैं तो प्राधिकरण को मानचित्र जारी करना आवश्यक था, लेकिन विकास प्राधिकरण ने पूरी तरह से अवैध रूप से मानचित्र की स्वीकृति, अर्थात मास्टर प्लान 2021 के तहत भूमि उपयोग को अस्वीकार करने के लिए एक नया मामला गढ़ा, जो अपील में आयुक्त द्वारा जारी निर्देशों के विपरीत है।”

याचिकाकर्ता ने जिला गाजियाबाद में समूह आवास विकसित करने के लिए मानचित्र प्रस्तुत किया। 28.11.2006 को तकनीकी समिति द्वारा मानचित्र को मंजूरी दे दी गई। हालांकि याचिकाकर्ता को कुछ शर्तें पूरी करनी थीं। याचिकाकर्ता द्वारा भूमि उपयोग परिवर्तन शुल्क माफ करने के अनुरोध पर विकास प्राधिकरण ने उसे माफ कर दिया। याचिकाकर्ता ने विभिन्न विभागों से सभी आवश्यक अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिए।

10.1.2009 को विकास प्राधिकरण ने याचिकाकर्ता को सभी औपचारिकताएं पूरी करने के लिए पत्र लिखा, अन्यथा मानचित्र अस्वीकार कर दिया जाएगा। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बावजूद, मानचित्र जारी नहीं किया जा रहा। याचिकाकर्ता का मानचित्र इस आधार पर जारी नहीं किया जा रहा कि मास्टर प्लान-2021 में याचिकाकर्ता की भूमि आवासीय उपयोग के बजाय सामुदायिक सुविधा और सड़क के लिए चिह्नित की गई।

गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष और आवास एवं शहरी नियोजन के विशेष सचिव ने याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चूंकि याचिकाकर्ता ने शर्तें पूरी नहीं कीं, इसलिए मानचित्र की स्वीकृति 5.10.2012 को रद्द कर दी गई। आयुक्त, मेरठ मंडल, मेरठ ने उपाध्यक्ष के आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया कि 2009 तक सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली गईं और प्राधिकरण को याचिकाकर्ता को अनुमोदन प्रदान करने पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया।

दिनांक 22.11.2019 के आदेश द्वारा जीडीए के उपाध्यक्ष ने महायोजना-2021 के आधार पर याचिकाकर्ता के मानचित्र को अस्वीकार कर दिया। याचिकाकर्ता ने प्रमुख सचिव, आवास एवं नगर विकास, सिविल सचिवालय, विधान सभा मार्ग, लखनऊ के समक्ष उत्तर प्रदेश नगर नियोजन एवं विकास अधिनियम, 1973 की धारा 41(3) के प्रावधानानुसार संशोधन हेतु आवेदन प्रस्तुत किया, जिसे अस्वीकार कर दिया गया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

न्यायालय ने पाया कि महायोजना-2021 (3.2.2015 से अनुमोदित और कार्यान्वित) निरस्तीकरण आदेश (दिनांक 5.10.2012) पारित करने के समय अस्तित्व में नहीं थी। यह पाया गया कि प्रतिवादी ने उत्तर प्रदेश ज़मींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950 की धारा 161 के अंतर्गत भूमि विनिमय के संबंध में पहली बार प्रति-शपथपत्र में एक नया मामला स्थापित किया।

इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रति-शपथपत्र में यह स्वीकार किया गया कि याचिकाकर्ता ने सभी औपचारिकताएँ पूरी कर ली थीं और प्राधिकरण याचिकाकर्ता को मानचित्र स्वीकृत करने के लिए बाध्य है।

यह देखते हुए कि आयुक्त का आदेश अंतिम है और पक्षकारों पर बाध्यकारी है, न्यायालय ने कहा कि एकमात्र शर्त 2006 के पत्र के अनुसार औपचारिकताएं पूरी करना है, मानचित्र की स्वीकृति को मास्टर प्लान-2021 और भूमि उपयोग में परिवर्तन के आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता था, जो रद्दीकरण आदेश के बाद हुआ था।

न्यायालय ने कहा,

“उपाध्यक्ष का दिनांक 22.11.2019 का आदेश विधि विरुद्ध है, क्योंकि उपाध्यक्ष ने उपरोक्त आदेश पारित करते समय मास्टर प्लान 2021 में भूमि उपयोग के आधार पर कार्यवाही की है, जबकि याचिकाकर्ता के मानचित्र की स्वीकृति दिनांक 5.10.2012 के आदेश को निरस्त करते हुए पुनः बहाल हो गई। चूंकि स्वीकृति मास्टर प्लान 2021 के लागू होने से पहले की थी, इसलिए उपाध्यक्ष द्वारा दिनांक 22.11.2019 को पारित आदेश को निरस्त किया जाता है।”

तदनुसार, न्यायालय ने गाजियाबाद विकास प्राधिकरण, गाजियाबाद के उपाध्यक्ष को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता के ग्रुप हाउसिंग मानचित्र को जारी करें, जिसे दिनांक 28.11.2006 के पत्र द्वारा पहले ही स्वीकृत किया जा चुका है।

Case Title: Pheasant Infrastructure Private Limited v. State Of U.P. And 3 Others [WRIT - C No. - 33964 of 2023]

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