मुआवजे के हिस्से को ट्रांसफर करने वाला डीड 'ट्रांसफर डीड' नहीं, जब तक कि उसमें अधिकारों के ट्रांसफर को विशेष रूप से दर्ज न किया गया हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि ट्रांसफर डीड होने के लिए अचल संपत्ति को ट्रांसफर करने वाले डीड के विवरण में उसे संप्रेषित किया जाना चाहिए, अन्यथा भूमि पर कोई अधिकार किरायेदार के पास नहीं होगा। यह माना गया कि बढ़े हुए मुआवजे के हिस्से को ट्रांसफर करने वाला डीड ट्रांसफर डीड नहीं है, जब तक कि उसमें अधिकारों के ट्रांसफर को विशेष रूप से दर्ज न किया गया हो।
जस्टिस अजीत कुमार ने कहा,
"ट्रांसफर डीड बनाने के लिए चाहे वह काल्पनिक हो या प्रभावी, ट्रांसफर डीड में यह उल्लेख होना चाहिए कि अचल संपत्ति ट्रांसफर की परिभाषा के अंतर्गत आती है अन्यथा किसी संपत्ति से उत्पन्न होने वाला ट्रांसफर हित जो कि पट्टेदार को कोई अधिकार नहीं देता है, ऐसे मामले में ट्रांसफर की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आएगा। निश्चित रूप से Stamp Act की अनुसूची-I की प्रविष्टि 23 की शरारत से बाहर हो जाएगा।"
मामले की पृष्ठभूमि
सरकार ने मूल मालिक से भूमि का अधिग्रहण किया और उसे इसके लिए मुआवजा दिया। कलेक्टर ने तत्कालीन भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1898 की धारा 6 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए भूमि पर कब्जा कर लिया था। चूंकि मालिक मुआवजे से संतुष्ट नहीं था, इसलिए उन्होंने अधिक मुआवजे के लिए संदर्भ दिया।
जब संदर्भ लंबित था याचिकाकर्ताओं ने भूमि मालिक के साथ डीड पर हस्ताक्षर किए, जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता को मुआवजे की बढ़ी हुई राशि का हिस्सा मिलेगा, जो संदर्भ में मूल भूमि मालिक को दिया जाएगा।
राज्य ने आरोप लगाया कि उक्त मुआवजा विलेख पर स्टाम्प फीस के भुगतान में कमी थी, इस आधार पर कि इस विलेख द्वारा भूमि पर अधिकार याचिकाकर्ताओं को हस्तांतरित कर दिए गए।
याचिकाकर्ताओं ने Stamp Act 1899 के तहत कलेक्टर स्टाम्प आगरा द्वारा जारी किए गए नोटिस को इस आधार पर चुनौती दी कि संपत्ति में कोई अधिकार उन्हें ट्रांसफर नहीं किया गया, क्योंकि भूमि पहले ही अधिग्रहित की जा चुकी थी और सरकार के पास निहित थी।
यह तर्क दिया गया कि मुआवजा विलेख ट्रांसफर डीड नहीं है। इस प्रकार स्टाम्प शुल्क के भुगतान में कोई कमी नहीं थी, क्योंकि मुआवजे के अधिकारों का केवल एक हिस्सा हस्तांतरित किया गया, जिस पर स्टाम्प शुल्क पहले ही चुकाया जा चुका था।
हाईकोर्ट का फैसला
न्यायालय ने देखा कि ट्रांसफर डीड ने स्पष्ट रूप से भूमि के अधिकारों को हस्तांतरित किया और उन्हें राज्य सरकार में निहित किया।
यह देखा गया कि विवरण में स्पष्ट रूप से कहा गया कि केवल 35% बढ़ा हुआ मुआवज़ा याचिकाकर्ताओं को हस्तांतरित किया जाना था, न कि भूमि के अधिकार या स्वामित्व।
"उपर्युक्त विवरण को पढ़ने पर यह स्पष्ट रूप से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जो हस्तांतरित किया गया था वह केवल 35% बढ़ा हुआ मुआवज़ा का ब्याज था। न तो अचल संपत्ति का कोई हस्तांतरण किया गया, न ही किया जा सकता, न ही अचल संपत्ति के संबंध में किरायेदारों के पास निहित किसी भी अधिकार और शीर्षक की कोई स्वीकृति दी गई, जिसे ट्रांसफर डीड के तहत ट्रांसफर किया जा सकता था।"
न्यायालय ने माना कि एक बार जब भूमि सरकार में निहित हो गई तो मूल भूमि मालिकों द्वारा भूमि या हित या अधिकारों के किसी और ट्रांसफर का कोई सवाल ही नहीं था। ट्रांसफर डीड की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए न्यायालय ने माना कि भूमि में अधिकारों और हित के ट्रांसफर को केवल विलेख के विवरण से ही देखा जा सकता है, जिससे इसे ट्रांसफर डीड की परिभाषा के अंतर्गत लाया जा सके।
न्यायालय ने पाया कि विकास जैन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि ट्रांसफर डीड होने के लिए संपत्ति का वास्तविक ट्रांसफर ऐसे डीड में लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने माना कि ट्रांसफर डीड के माध्यम से मुआवजे में ब्याज का ट्रांसफर भूमि पर अधिकारों का ट्रांसफर नहीं था, जो केवल राज्य में निहित था। कलेक्टर स्टाम्प, आगरा द्वारा जारी नोटिस और उसके अनुसार कार्यवाही रद्द कर दिया गया।
केस का टाइटल: योगेंद्र कुमार कुशवाह बनाम कलेक्टर और 2 अन्य