ईमेल/व्हाट्सएप के माध्यम से चेक ड्रॉअर को भेजा गया डिमांड नोटिस वैध: इलाहाबाद हाइकोर्ट

Update: 2024-02-13 09:52 GMT

इलाहाबाद हाइकोर्ट ने माना कि चेक के अनादरण के लिए परक्राम्य लिखत (Negotiable Instrument) की धारा 138 के तहत 'ईमेल या व्हाट्सएप' के माध्यम से चेक जारीकर्ता को भेजा गया डिमांड नोटिस वैध नोटिस है और वही होगा। यदि यह सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (Information And Technology Act) की धारा 13 की आवश्यकता को पूरा करता है तो इसे उसी तिथि पर भेजा गया माना जाएगा।

आईटी अधिनियम (IT Act) की धारा 13 में प्रावधान है कि जैसे ही इलेक्ट्रॉनिक रूप में नोटिस प्रवर्तक के नियंत्रण से बाहर एक कंप्यूटर संसाधन में दर्ज किया जाता है, इसे भेजा माना जाता है। इसके अतिरिक्त जैसे ही इलेक्ट्रॉनिक रूप में नोटिस दर्ज किया जाता है। निर्दिष्ट कंप्यूटर संसाधन या प्राप्तकर्ता के कंप्यूटर संसाधनों में प्रवेश करता है। फिर इसे पहुंचा माना जाता है।

इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए न्यायालय ने धारा 138 एनआई अधिनियम (NI Act ) के प्रावधान (B) को पढ़ा और ध्यान दिया कि हालांकि यह प्रावधान लिखित रूप में नोटिस देने का प्रावधान करता है। इसमें नोटिस भेजने का कोई विशिष्ट तरीका प्रदान नहीं किया गया है। भले ही धारा 94 एनआई एक्ट को ध्यान में रखा जाए तो यह भी नहीं कहा जा सकता कि नोटिस अनिवार्य रूप से डाक से भेजना होगा।

इस पृष्ठभूमि में आईटी अधिनियम (IT Act) की धारा 4 का हवाला देते हुए न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि धारा 138 एनआई अधिनियम (NI Act) नोटिस में ईमेल या व्हाट्सएप भी शामिल होगा यदि यह बाद के संदर्भ के लिए उपलब्ध रहता है।

अदालत ने कहा,

“आईटी की धारा 4 अधिनियम बहुत स्पष्ट रूप से प्रदान करता है कि इस तरह के कानून में कुछ भी शामिल होने के बावजूद, जो लिखित रूप में नोटिस प्रदान करता है, उसमें इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रदान किया गया या उपलब्ध कराया गया नोटिस भी शामिल होगा, जो बाद के संदर्भ के लिए उपलब्ध होना चाहिए। इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म शब्द को आईटी की धारा 2(1)(R) में परिभाषित किया गया, जो मीडिया, मैग्नेटिक, ऑप्टिकल, कंप्यूटर मेमोरी, माइक्रो फिल्म, कंप्यूटर जनित माइक्रो फिचे या इसी तरह के डिवाइस में उत्पन्न, भेजी, प्राप्त या संग्रहीत कोई भी जानकारी प्रदान करता है। अत: NI Act की धारा 138 में उल्लिखित नोटिस के प्रावधान से यह स्पष्ट है। यदि यह बाद के संदर्भ के लिए उपलब्ध रहता है तो एक्ट में ईमेल या व्हाट्सएप भी शामिल होगा।”

इस संबंध में न्यायालय ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1972 (Evidence Act 1972) की धारा 65(B) का भी उल्लेख किया, जो इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की स्वीकार्यता को स्वीकार करती है।

NI Act की धारा 138 के तहत नोटिस की डाक डिलीवरी के संबंध में जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने कहा कि अदालत यह मान सकती है। साक्ष्य अधिनियम और सामान्य खंड अधिनियम (General Clause Act ) की धारा 27 कि धारा 114 के मद्देनजर भेजने की तारीख से दस दिनों के भीतर डाक नोटिस जारीकर्ता को भेज दिया गया होगा।

न्यायालय ने कहा,

“डिजिटलीकरण और कंप्यूटरीकरण के वर्तमान समय में डाक की डिलीवरी इतनी तेज हो गई है कि यदि शिकायत सेवा की तारीख का उल्लेख नहीं किया गया तो अदालत यह मान सकती है कि सही ढंग से संबोधित रजिस्टर्ड डाक अधिकतम 10 दिनों के भीतर प्राप्तकर्ता को भेज दी गई। ऑनलाइन पोस्ट ट्रैकिंग सिस्टम शुरू होने के बाद रजिस्टर्ड पोस्ट की डिलीवरी की तारीख जानना बहुत आसान हो गया। व्यवसाय के सामान्य क्रम में यदि सही ढंग से संबोधित किया गया हो तो रजिस्टर्ड पत्र 3 से 10 दिनों के भीतर वितरित किया जाता है।”

एकल न्यायाधीश ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (कानपुर नगर) की अदालत में लंबित समन आदेश के साथ-साथ शिकायत मामले (NI Act की धारा 138 के तहत) की पूरी कार्यवाही रद्द करने की मांग करने वाले राजेंद्र द्वारा दायर आवेदन को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं।

मामला संक्षेप में

यह आवेदक का मामला था कि विवादित शिकायत स्वयं दोषपूर्ण है, क्योंकि उसे नोटिस की सेवा की तारीख से 15 दिनों की समाप्ति से पहले दायर किया गया।

NI Act की धारा 138 के तहत चेक बाउंस की तारीख से 30 दिनों के भीतर नोटिस भेजा जाना चाहिए और यदि चेककर्ता रसीद की तारीख से 15 दिनों के भीतर राशि का भुगतान करने में विफल रहता है। नोटिस के अनुसार, अगले एक महीने के भीतर उस संबंध में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।

यह तर्क दिया गया कि 13 जुलाई, 2022 को चेक बाउंस होने के बाद 23 जुलाई 2022 को ऑपोजिट पार्टी नंबर 2 द्वारा आवेदक को कानूनी नोटिस भेजा गया। उसके बाद नोटिस की सेवा के लिए कोई तारीख बताए बिना शिकायत दर्ज की गई। 31 अगस्त, 2022 को दायर किया गया। इसलिए शिकायत मामला रद्द करने की आवश्यकता है, क्योंकि इसे 15 दिनों की समाप्ति से पहले दायर किया गया।

दूसरी ओर एजीए ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता द्वारा चेक जारीकर्ता को भेजे गए नोटिस की तामील की तारीख का शिकायत में उल्लेख करना आवश्यक नहीं है।

उन्होंने कहा कि बचाव पक्ष चाहे चेक जारी करने वाले को नोटिस दिया गया हो या नहीं पर सुनवाई के दौरान विचार किया जा सकता है। यह शिकायत रद्द करने का आधार नहीं हो सकता है।

कोर्ट की टिप्पणियां

पक्षकारों को सुनने के बाद न्यायालय ने विचार के लिए निम्नलिखित प्रश्न तय किए:

क्या नोटिस की सेवा की तारीख से पंद्रह दिनों की समाप्ति से पहले दायर की गई शिकायत परक्राम्य लिखित अधिनियम की (Negotiable Instrument Act) धारा 138 के परंतुक के खंड (C) के तहत दोषपूर्ण है?

क्या कानून के अनुसार NI Act की धारा 138 के तहत उसके खिलाफ दायर शिकायत में भुगतानकर्ता को नोटिस की तामील की तारीख का उल्लेख करना आवश्यक है?

पहले प्रश्न का उत्तर देने के लिए न्यायालय ने सी. सी. अल्वी हाजी बनाम पालापेट्टी मुहम्मद और अन्य 2007 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि यदि शिकायतकर्ता रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से नोटिस भेजता है और सेवा की कोई तारीख का उल्लेख नहीं किया जाता है। फिर भी अदालत साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के साथ-साथ सामान्य खंड अधिनियम की धारा 27 के तहत यह मान सकती है कि नोटिस उस समय पर दिया गया, जब रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से भेजा गया पत्र व्यवसाय के सामान्य क्रम में वितरित किया गया होगा।

अब इस सवाल का जवाब देने के लिए कि वह समय सीमा क्या होगी, जिसमें अदालत व्यवसाय के सामान्य पाठ्यक्रम में रजिस्टर्ड पत्र की डिलीवरी मान सकती है, अदालत ने कहा कि डिजिटलीकरण और कंप्यूटरीकरण के वर्तमान समय में अदालत यह मान सकती है कि यदि शिकायत में सेवा की तारीख का उल्लेख नहीं किया गया तो एक्ट 10 दिनों की अवधि के भीतर प्राप्तकर्ता को सही ढंग से संबोधित रजिस्टर्ड डाक भेज दी जाएगी।

इसे देखते हुए अदालत ने मामले के तथ्यों पर ध्यान देते हुए कहा कि शिकायतकर्ता ने 23 जुलाई, 2022 को नोटिस भेजा था। इसलिए नोटिस डिलीवरी के लिए दस दिन मानते हुए आवेदक के पास भुगतान करने के लिए 2 अगस्त, 2022 निर्धारित 15 दिन के अंदर चेक राशि देने तक का समय था।

उसके बाद अदालत ने कहा शिकायत 17 अगस्त 2022 के बाद दर्ज की जा सकती है और क्यूंकि मौजूदा मामले में शिकायत 31 अगस्त को दायर की गई। अदालत ने फैसला सुनाया कि शिकायत खंड (सी) के तहत धारा 138 के प्रावधान के साथ-साथ एनआई अधिनियम की धारा 142(1)(बी) भी दोषपूर्ण नहीं है।

इसे देखते हुए न्यायालय ने राज्य के सभी मजिस्ट्रेटों को निम्नलिखित निर्देश जारी किए:

जहां NI Act के तहत शिकायत की गई अधिनियम दायर किया गया तो संबंधित मजिस्ट्रेट/न्यायालय शिकायत के साथ पोस्ट ट्रैकिंग रिपोर्ट दर्ज करने पर जोर देगा, यदि रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से भेजा गया। 15 दिन का वैधानिक नोटिस चेक के बेईमान भुगतानकर्ता के लिए गैर-सेवा की दलील लेने की कोई गुंजाइश न रहे।

ईमेल या व्हाट्सएप के माध्यम से भेजा गया नोटिस यदि IT Act की धारा 13 की आवश्यकता को पूरा करता है। NI Act की धारा 138 के तहत भी एक वैध नोटिस होगा। चेक जारी करने वाले पर कार्रवाई करें और इसे प्रेषण की तारीख पर ही तामील माना जाएगा।

तदनुसार आवेदन खारिज कर दिया गया।

अपीयरेंस

आवेदक के वकील- सुनील कुमार, चंदन सिंह, नरेंद्र सिंह

विरोधी पक्ष के वकील- जी.ए.

केस टाइटल- राजेंद्र बनाम यूपी राज्य और अन्य

Tags:    

Similar News