सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स, लखनऊ इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट के तहत 'इंडस्ट्री' नहीं: हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स, लखनऊ, इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट, 1947 की धारा 2(j) के तहत इंडस्ट्री नहीं है। बता दें, उक्त प्लांट्स काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च, नई दिल्ली का हिस्सा/संस्थान है।
1947 के एक्ट के तहत 'इंडस्ट्री' की परिभाषा इस प्रकार है:
"2(j) "इंडस्ट्री" का मतलब कोई भी बिजनेस, ट्रेड, काम, मैन्युफैक्चरर या मालिकों का पेशा है। इसमें कर्मचारियों का कोई भी पेशा, सर्विस, रोजगार, हस्तशिल्प, या इंडस्ट्री का काम या धंधा शामिल है।"
19 साल पुरानी याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस इरशाद अली ने कहा:
"सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स, लखनऊ एक पूरी तरह से रिसर्च और साइंटिफिक संगठन है, जो काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के तहत काम करता है। इसलिए यह इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट, 1947 की धारा 2(j) के तहत 'इंडस्ट्री' की परिभाषा में नहीं आता है।"
सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स, लखनऊ के कर्मचारियों ने अपने रोजगार के संबंध में इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल एक्ट, 1947 के प्रावधानों के तहत रीजनल लेबर कमिश्नर (सेंट्रल), कानपुर के सामने सुलह की कार्यवाही शुरू की थी।
सुलह की कार्यवाही विफल होने के बाद मामला सेंट्रल गवर्नमेंट इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल-कम-लेबर कोर्ट, कानपुर को भेजा गया, जिसने 25.09.2005 को सामान्य फैसला सुनाया, जिसमें सबूतों पर विचार नहीं किया गया और इस मुद्दे पर भी फैसला नहीं किया गया कि सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स, लखनऊ/CSIR, नई दिल्ली इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट, 1947 की धारा 2(j) के तहत 'इंडस्ट्री' हैं या नहीं।
इस फैसले को कर्मचारियों और मालिक दोनों ने चुनौती दी।
सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स, लखनऊ/CSIR, नई दिल्ली के वकील ने तर्क दिया कि यह एक पूरी तरह से रिसर्च सुविधा है, जो किसी भी ट्रेड, बिजनेस या कमर्शियल गतिविधियों में शामिल नहीं है। इसलिए इसे इंडस्ट्री नहीं कहा जा सकता। इसलिए इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल-कम-लेबर कोर्ट के पास कर्मचारियों द्वारा उठाए गए विवादों में फैसला सुनाने की शक्ति नहीं थी। इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल एक्ट, 1985 की धारा 14(2) के तहत जारी 31.10.1986 की नोटिफिकेशन के आधार पर CSIR को एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल एक्ट, 1985 के दायरे में लाया गया। इसलिए सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स, लखनऊ भी एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल एक्ट, 1985 के तहत आएगा।
फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी बनाम के.जी. शर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि 'फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी' एक इंडस्ट्री नहीं है, क्योंकि यह जो संगठित रिसर्च का काम करती है, उसे व्यापार और व्यवसाय करने के बराबर नहीं माना जा सकता, “क्योंकि यह ऐसी सेवाएं पैदा और वितरित नहीं कर रही है, जो इंसानों की ज़रूरतों और इच्छाओं को पूरा करने के लिए हों, जैसा कि आमतौर पर समझा जाता है।”
उपरोक्त पर भरोसा करते हुए जस्टिस अली ने कहा कि संबंधित सोसाइटी मुख्य रूप से औषधीय और सुगंधित पौधों से संबंधित वैज्ञानिक रिसर्च में लगी हुई और कोई व्यापार या व्यवसाय नहीं कर रही थी।
आगे कहा गया,
“संस्थान का उद्देश्य व्यापार या व्यवसाय करना या लाभ कमाना नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय हित और सार्वजनिक कल्याण के लिए रिसर्च करना है। C.I.M.A.P. द्वारा किया गया काम इस प्रकार प्रकृति में अकादमिक और वैज्ञानिक है और इसे किसी भी वाणिज्यिक या औद्योगिक उद्यम के बराबर नहीं माना जा सकता।”
तदनुसार, कोर्ट ने फैसला सुनाया कि सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स, लखनऊ, जो काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च, नई दिल्ली का घटक/संस्थान है, इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट, 1947 की धारा 2(j) के तहत एक इंडस्ट्री नहीं है।
Case Title: Central Institute of Medicinal and Aromatic Plants and Ors. Versus Sri Rishi Dev Mishra and Other [WRIT - C No. - 1005010 of 2006]