Cyber Crime | बैंक अधिकारियों का आपराधिक जांच में सहयोग करना दायित्व: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-04-29 05:20 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बैंक अधिकारियों को साइबर अपराधों (Cyber Crime) की आपराधिक जांच में पूरा सहयोग करना चाहिए।

जस्टिस अजय भनोट की पीठ ने आलोक झा द्वारा दायर दूसरी जमानत याचिका को अनुमति देते हुए कहा,

"बैंक अधिकारियों से कानून का पालन करने वाले नागरिक होने की उम्मीद की जाती है, जो पुलिस द्वारा की जा रही आपराधिक जांच में सहयोग करने के लिए कानून के दायित्व के तहत हैं।"

साइबर अपराध के मामले में आरोपी पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420, 406, 419, 467, 468, 471, 411 और आईटी अधिनियम की धारा 66 डी के तहत मामला दर्ज किया गया।

अदालत की यह टिप्पणी राज्य के वकील की उस दलील के जवाब में आई, जिसमें बैंक अधिकारियों के कथित असहयोग के कारण जांच एजेंसी के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया।

यह दावा किया गया कि बैंक अधिकारी महत्वपूर्ण सबूतों को छुपा रहे हैं, जिससे न्याय की प्रगति में बाधा आ रही है।

यह देखते हुए कि साइबर अपराध का खतरा बहुत स्पष्ट है, न्यायालय ने पुलिस अधिकारियों से उन बैंक अधिकारियों के खिलाफ उचित आपराधिक कार्यवाही शुरू करने को कहा जो जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं।

न्यायालय ने कहा,

“कानून के तहत पुलिस के पास सबूत छिपाने या अपराध की जांच में बाधा डालने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई करने का पर्याप्त अधिकार है। एजीए के पास उपलब्ध निर्देश संतोषजनक नहीं हैं।”

प्रथम दृष्टया टिप्पणी में एकल न्यायाधीश ने पुलिस अधिकारियों के ढुलमुल रवैये और पेशेवर और संपूर्ण तरीके से आपराधिक जांच करने में उनकी विफलता पर चिंता व्यक्त की। अदालत ने इसे परेशान करने वाले पहलू के रूप में उजागर किया, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है।

न्यायालय ने आगे यह कहते हुए कि अपराध की गंभीरता पुलिस को कुशल और त्वरित जांच करने की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं करती है, एजीए को संबंधित अधिकारियों से निर्देश प्राप्त करने के लिए कहा।

न्यायालय ने यह भी याद किया कि हाल के मामले में, जिसमें जाली बैंक अकाउंट खोलने वाले व्यक्तियों की जांच नहीं की गई और उनकी पहचान स्थापित नहीं की गई, उसने इस मामले में खराब जांच के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की।

केस टाइटल- आलोक झा बनाम यूपी राज्य। लाइव लॉ (एबी) 269/2024

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