इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत रद्द करने के लिए आधार बनाने हेतु अभियुक्तों के विरुद्ध नई एफआईआर दर्ज करने की प्रवृत्ति पर ध्यान दिया

Update: 2024-09-23 07:49 GMT

 Allahabad High Court

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक प्रवृत्ति पर ध्यान दिया, जिसमें अग्रिम/नियमित जमानत दिए जाने के बाद अभियुक्त के विरुद्ध नई शिकायतें दर्ज की जाती हैं, जिससे जमानत रद्द करने के लिए आधार बनाया जा सके।

जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने धारा 493, 323, 504, 506 आईपीसी के तहत दर्ज 2023 की एफआईआर में आरोपी को दी गई अग्रिम जमानत (अगस्त 2023 में हाईकोर्ट द्वारा) को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

संदर्भ के लिए, आरोपी पर उक्त एफआईआर तब दर्ज की गई, जब महिला (सूचनाकर्ता) ने आरोप लगाया कि आरोपी ने उससे शादी किए बिना लगभग चार साल तक उसे अपनी पत्नी के रूप में रखा लेकिन आखिरकार उसने उससे शादी करने से इनकार किया।

अगस्त 2023 में आरोपी को इस मामले में हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत दी गई।

उसके बाद सूचनाकर्ता-महिला ने मार्च 2024 में उसके खिलाफ एक और एफआईआर दर्ज की जिसमें दावा किया गया कि आरोपी ने दिसंबर 2023 में जबरन उसके घर में घुसकर उसे धमकाया और उसके साथ बलात्कार किया।

इन आरोपों के आधार पर महिला ने तत्काल जमानत रद्द करने की याचिका दायर की।

याचिका पर विचार करते हुए न्यायालय ने पाया कि यद्यपि आवेदक- महिला ने आरोपी के खिलाफ एक और एफआईआर दर्ज की लेकिन उसकी मेडिकल जांच नहीं की गई। उसके द्वारा लगाए गए बलात्कार के प्रयास के बाद के आरोप का प्रथम दृष्टया समर्थन करने के लिए कोई सामग्री नहीं थी।

न्यायालय ने आगे कहा कि बलात्कार के गंभीर आरोप वाली एफआईआर दर्ज करना, जो मेडिकल साक्ष्य सहित किसी भी साक्ष्य द्वारा समर्थित नहीं है, प्रथम दृष्टया संकेत देता है कि आवेदक ने केवल अग्रिम जमानत रद्द करने का आधार बनाने के लिए एफआईआर दर्ज की थी।

इसके मद्देनजर न्यायालय ने अग्रिम जमानत रद्द करने के लिए आवेदन पर विचार करने का कोई अच्छा आधार नहीं पाते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी।

केस टाइटल - राबिया बनाम राज्य उत्तर प्रदेश के माध्यम से प्रधान सचिव गृह लोक सेवा आयोग और अन्य 2024

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