इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कथित पाकिस्तान समर्थक फेसबुक पोस्ट मामले में जमानत देने से किया इनकार

Update: 2025-07-01 07:25 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फेसबुक पर पाकिस्तान समर्थक पोस्ट शेयर करने के आरोपी 62 वर्षीय व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने कहा कि उदार और सहिष्णु न्यायिक दृष्टिकोण के कारण इस तरह के राष्ट्र विरोधी कृत्य आम बात हो गई है।

जस्टिस सिद्धार्थ की पीठ ने अंसार अहमद सिद्दीकी नामक व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया। सिद्दीकी पर फेसबुक पर जिहाद का प्रचार करने, पाकिस्तान जिंदाबाद कहने और पाकिस्तानी भाइयों का समर्थन करने की अपील करने के आरोप में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 197 और 152 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि पोस्ट ने न केवल राष्ट्रीय भावनाओं को ठेस पहुंचाई, बल्कि यह भारत की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ भी है। इसने भारतीयों की राष्ट्रीय भावनाओं को ठेस पहुंचाई है, क्योंकि कथित पोस्ट पहलगाम आतंकी हमले के ठीक बाद की गई थी।

मामले में जमानत की मांग करते हुए आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल ने 3 मई, 2025 को फेसबुक पर केवल एक वीडियो शेयर किया था और वह एक वृद्ध व्यक्ति है, जिसकी आयु लगभग 62 वर्ष है। वह मेडिकल इलाज करवा रहा है, इसलिए उसे जमानत दी जा सकती है।

अदालत की टिप्पणियां

पीठ ने शुरुआत में संविधान के अनुच्छेद 51-ए का हवाला दिया, जिसमें प्रावधान है कि भारत के प्रत्येक नागरिक को संविधान का पालन करना चाहिए और इसके आदर्शों और संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना चाहिए तथा भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखना चाहिए और उसकी रक्षा करनी चाहिए।

इस प्रकाश में कथित कृत्य को देखते हुए पीठ ने इस प्रकार टिप्पणी की:

"स्पष्ट रूप से आवेदक का कृत्य संविधान और उसके आदर्शों के प्रति अपमानजनक है। साथ ही उसका कृत्य भारत की संप्रभुता को चुनौती देने और समाज विरोधी और भारत विरोधी पोस्ट शेयर करके भारत की एकता और अखंडता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने के बराबर है।"

न्यायालय ने कहा कि यद्यपि आवेदक स्वतंत्र भारत में जन्मा सीनियर सिटीजन है, लेकिन उसका 'गैर-जिम्मेदाराना' और 'राष्ट्र-विरोधी' आचरण उसे अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार नहीं देता।

पीठ ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा:

"इस देश में ऐसे अपराध करना आम बात हो गई है, क्योंकि न्यायालय राष्ट्र-विरोधी मानसिकता वाले लोगों के ऐसे कृत्यों के प्रति उदार और सहिष्णु हैं।"

इस प्रकार, न्यायालय ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी।

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