2018 से पुलिस हिरासत से लापता युवक पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने DGP को फटकारा; कहा—'अगर युवक को मार दिया गया है, तो SP को भी बख्शा नहीं जाएगा'
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस की कड़ी आलोचना करते हुए पुलिस हिरासत से 2018 में गायब हुए एक व्यक्ति के मामले को न्याय प्रणाली का “घोर उपहास” बताया है।
जस्टिस जे.जे. मुनीर और जस्टिस संजीव कुमार की खंडपीठ ने राज्य के डीजीपी को सख्त चेतावनी देते हुए कहा कि यदि detenue/कॉपस को “खत्म” कर दिया गया है, तो इसकी जिम्मेदारी सिर्फ किसी जूनियर अधिकारी पर नहीं थोपी जा सकती और ऐसे हाल में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक (SP) को भी बख्शा नहीं जा सकता।
यह टिप्पणियाँ 2018 में दायर उस हैबियस कॉर्पस याचिका की सुनवाई के दौरान की गईं, जिसे शिव कुमार के पिता ने दायर किया था। शिव कुमार को सितंबर 2018 में एक अपहरण मामले में पुलिस द्वारा उठाए जाने का आरोप है, जिसके बाद से वह दिखाई नहीं दिए। पिता के अनुसार, थाने जाकर पूछने पर इंस्पेक्टर ने आश्वासन दिया था कि लड़की का बयान होने के बाद बेटे को छोड़ दिया जाएगा। लड़की ने मजिस्ट्रेट के सामने बयान देकर अपहरण से इनकार कर दिया और कहा कि वह घर से अपनी मर्जी से गई थी—लेकिन शिव कुमार फिर कभी घर नहीं लौटे।
22 आदेशों वाली ऑर्डर-शीट “पुलिस की बचने-बचाने की कहानी जैसी”
25 नवंबर को कोर्ट ने मामले की समयरेखा पर गहरी असंतोष जताते हुए कहा कि हाईकोर्ट की ऑर्डर-शीट “पुलिस की टालमटोल की किताब” जैसी पढ़ाई देती है। सात वर्षों तक पुलिस ने दावा किया कि शिव कुमार “लापता” हैं और यह भी कहा कि वह नेपाल भाग गए होंगे। अदालत ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि पुलिस “इस कोर्ट को गुमराह कर रही है” ताकि कॉपस को प्रस्तुत न करना पड़े।
कोर्ट ने कहा:
“उपहास इसलिए, क्योंकि एक व्यक्ति जिसे 2018 में अपराध के सिलसिले में पुलिस स्टेशन में हिरासत में लिया गया था, 2025 में भी लापता है। पुलिस हिरासत से इस तरह गायब हो जाना असहनीय है।”
FIR दर्ज करने में तीन साल की देरी पर भी नाराज़गी
अदालत ने इस बात पर भी कड़ी आपत्ति जताई कि शिव कुमार की गुमशुदगी पर FIR लगभग तीन साल बाद—मार्च 2021 में—रिकॉर्ड की गई, वह भी हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद। FIR में एक SI और अन्य पुलिसकर्मियों पर अपहरण और आपराधिक साज़िश (धारा 364, 120-B IPC) के तहत मामला दर्ज हुआ।
DGP का हलफ़नामा — लेकिन कोर्ट “बिल्कुल अप्रभावित”
मामले की धीमी प्रगति पर कोर्ट ने DGP से व्यक्तिगत हलफ़नामा मांगा था। 28 नवंबर को DGP राजीव कृष्ण ने हलफ़नामा दायर करके बताया कि ADG (गोरखपुर ज़ोन) की अध्यक्षता में SIT गठित की गई है। लेकिन कोर्ट इस “देर से हुई कार्रवाई” से अप्रभावित रही और कहा कि “आठ साल पुराना रूल निसी” अभी भी “बिना दिशा के तैर रहा है।”
10 दिन की अंतिम मोहलत
कोर्ट ने पुलिस को कड़े शब्दों में 10 दिनों की अंतिम समयसीमा दी और स्पष्ट किया कि अब कोई और विकल्प नहीं बचा है।
कोर्ट ने दो टूक कहा:
“रूल निसी का जवाब सिर्फ दो तरीकों से दिया जा सकता है—
- या तो कॉपस को प्रस्तुत करके,
- या ठोस सबूत देकर कि वह अब इस दुनिया में नहीं है या देश छोड़ चुका है।
तीसरा कोई रास्ता नहीं है।”