Limitation Act | लंबे विलंब शामिल नहीं, केवल अपवादात्मक मामलों में ही क्षमादान दिया जा सकता है: इलाहाबाद हाइकोर्ट ने धारा 37 के तहत दायर याचिका खारिज की
जस्टिस शेखर बी. सराफ की इलाहाबाद हाइकोर्ट की एकल पीठ ने कहा कि परिसीमा अधिनियम (Limitation Act ) की धारा 5 में लंबे विलंब शामिल नहीं हैं तथा केवल अपवादात्मक मामलों में ही क्षमादान दिया जा सकता है, जहां अपीलकर्ता ने लापरवाही से नही बल्कि सद्भावनापूर्वक कार्य किया हो।
पीठ ने चार वर्ष की देरी के बाद दायर अपील खारिज कर दी।
मामला
अपीलकर्ता ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 (Arbitration and Conciliation Act 1996) की धारा 37 के तहत अपील दायर की, जो मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत जारी आदेश से उत्पन्न हुई। उल्लेखनीय रूप से अपील चार साल की महत्वपूर्ण देरी के बाद दायर की गई।
प्रतिवादी ने महाराष्ट्र सरकार (जल संसाधन विभाग) के मामले में कार्यकारी अभियंता बनाम बोरसे ब्रदर्स इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स प्राइवेट लिमिटेड (2021) 6 एससीसी 460 के मामले में निर्धारित मिसाल का हवाला दिया। इस मिसाल से आकर्षित होकर इसने यह तर्क दिया कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 37 के तहत अपील दायर करने में इतनी लंबी देरी की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
हाइकोर्ट द्वारा अवलोकन
हाइकोर्ट ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण बनाम संपता देवी और अन्य 2023 (12) ADJ 787 में अपने निर्णय का हवाला दिया, जो समान तथ्यों और परिस्थितियों से निपटती है। इसने माना कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 37 के तहत अपील आम तौर पर आदेश की तारीख से 60 दिनों के भीतर दायर की जानी चाहिए, जैसा कि वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 की धारा 13(1ए) द्वारा निर्धारित किया गया।
हालांकि असाधारण मामलों में जहां निर्दिष्ट मूल्य 3,00,000.00 रुपये से कम है। धारा 37 के तहत अपील सीमा अधिनियम की अनुसूची के अनुच्छेद 116 और 117 द्वारा शासित होगी।
इसके अलावा हाइकोर्ट ने मध्यस्थता अधिनियम की धारा 37 के तहत दायर अपीलों पर सीमा अधिनियम की धारा 5 की प्रयोज्यता पर जोर दिया। इसने नोट किया कि जबकि वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम की धारा 13(1ए) स्पष्ट रूप से निर्धारित 60-दिन की अवधि से परे देरी की माफी को संबोधित नहीं करती है, परिसीमा अधिनियम की धारा 5 को लागू किया जा सकता है।
इसने स्पष्ट किया कि परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत 'पर्याप्त कारण' शब्द में लंबी देरी शामिल नहीं है। केवल असाधारण मामलों में ही क्षमा प्रदान की जा सकती है, जहां अपीलकर्ता ने सद्भावनापूर्वक कार्य किया हो और लापरवाही से नहीं।
हाईकोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अपील दायर करने में देरी केवल तभी बर्दाश्त की जा सकती, जब मजबूत औचित्य प्रदान किए गए हों। हालांकि, वर्तमान मामले में हाईकोर्ट को देरी के लिए क्षमा प्रदान करने के लिए कोई ऐसा बाध्यकारी कारण नहीं मिला।
परिणामस्वरूप हाईकोर्ट ने अपील को परिसीमा द्वारा वर्जित मानते हुए खारिज कर दी।
केस टाइटल- उत्तर प्रदेश राज्य और 5 अन्य बनाम राजवीर सिंह और अन्य